प्रकाश कुमार, पटना:
लालू प्रसाद यादव, भारत और विशेषकर बिहार की राजनीति का एक ऐसा नाम जिसे आप चाहकर भी कभी इग्नोर नहीं कर सकते हैं। लालू यादव का आज जन्मदिन है, लालू जी आज अपने 73 बसंत पूरे कर चुके हैं। लालू यादव एक अरसे से बिहार की राजनीति के धूमकेतु बने हुए हैं! सत्ता का खेल उनके चारों तरफ चलता रहता है। 73 वर्षों में उन्होंने लगभग 50 बरस राजनीति करते हुए बिता दिए फिर चाहे पटना विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति हो या फिर भारतीय संसद तक का सफर लालू जहां भी गए अपनी एक अमिट छाप छोड़ते गए। सन 1977 से 1990 तक कई बार भारतीय संसद के सदस्य रहे, बिहार में प्रतिपक्ष के नेता रहे और फिर 1990 में जो हुआ उसने भारतीय लोकतंत्र में एक गहरी छाप छोड़ दी। गोपालगंज जिले के एक छोटे से गांव में गरीब किसान के घर जन्मा एक बालक संयुक्त बिहार का मुख्यमंत्री बना।
जिसका विरोध किया उस पार्टी के सबसे मजबूत सहयोगी भी रहे
1977 में जिस कांग्रेस पार्टी का विरोध करते हुए लालू यादव पहली बार संसद पहुंचे थे। 90 के अंत तक लालू प्रसाद यादव उसी कांग्रेस के सबसे मजबूत सहयोगी बनकर उभरे। वही लालू जो आज पानी पी पीकर भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को कोसते नजर आते हैं कभी कभी इसी विद्यार्थी परिषद के सहयोग और समर्थन से पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। लालू यादव ने जब पहली बार बिहार में सरकार बनाई तो उनकी सरकार को समर्थन दे रही थी वही भारतीय जनता पार्टी जिसका आज सबसे मुखर रूप से विरोध वो स्वयं करते हैं।
बिहार में रही एंग्री यंग मैन की छवि
लालू यादव आज बेशक एक सजायाफ्ता मुजरिम हैं उनपर न सिर्फ अलग-अलग किस्म के घोटालों के आरोप हैं। लालू यादव यूं तो सक्रिय राजनीति से 2013 से ही दूर बैठे हैं परंतु आज भी बिहार की राजनीति में उनकी हालत बहुत जोरों से सुनाई देती है। एक दौर था जब लालू बिहार में एंग्री यंग मैन की छवि रखा करते थे बतौर नेता प्रतिपक्ष उनके सवालों और तीखे व्यंग्य बाणों से सत्ता पक्ष न सिर्फ असहज हो जाया करता था बल्कि कई ऐसे मौके भी आए जब सत्ता पक्ष को निशब्द होकर उनकी मांगों को चुपचाप मानना पड़ा। लालू जब बिहार के मुख्यमंत्री बने तो पूरे एक्शन में दिखा करते थे कभी खुद कहीं छापेमारी करने निकल जाते तो कभी अफसरों की खड़े-खड़े क्लास लगा दिया करते।
चाहकर भी इग्नोर नहीं कर सकते
वक्त बदला द्वार बदले हालात बदले पर लालू यादव का अंदाज कभी नहीं बदला शायद यही कारण है कि लालू यादव को आप लाख चाहकर भी इग्नोर नहीं कर सकते हैं। सरकार भाजपा के समर्थन से चल रही थी लालकृष्ण आडवाणी रथ पर सवार होकर भारत नापने चले थे। उन्हें इस बात का भान भी ना रहा होगा कि कल का बना मुख्यमंत्री उनके रथ को रोकने में कामयाब हो जाएगा। रातों-रात एक्शन में आए लालू यादव ने समस्तीपुर जिले के तत्कालीन डीएम और वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार में मंत्री बने बैठे आरा के सांसद आरके सिंह को लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। आडवाणी जी को गिरफ्तार कर लिया गया हर किसी को या लग रहा था कि अब लालू यादव की सरकार चंद पलों की मेहमान है साथ ही आडवाणी को रोकने का खामियाजा पूरे बिहार को भुगतना होगा। दंगे फसाद और सामाजिक सौहार्द बिगड़ने की संभावनाएं प्रबल थी परंतु लालू यादव के लिए तो यह जैसे अपने राजनीतिक और प्रशासनिक कौशल का जौहर दिखाने का एक अवसर था। लालू यादव ने न सिर्फ अपनी सरकार बचा ली बल्कि इतने बड़े भूचाल के बाद भी बिहार में एक भी विवाद का कोई अशुभ समाचार नहीं मिला। इस घटना ने लालू यादव को पॉलीटिकल स्टार बना दिया। पूरे भारत में लालू यादव का लोहा माना जाने लगा। लालू अब लाल किले की ओर देखने लगे थे देश के हालात भी कुछ ऐसे ही थे। खैर हम उन विवादों की तरफ ना जाए तो ही बेहतर।
सवर्णों के विरुद्ध कथित नारा
लालू और विवाद तो जैसे चोली और दामन हैं। कुछ लोगों की मानें तो लालू यादव ने तथाकथित रूप से एक बयान दिया जिसने आज तक लालू यादव का पीछा नहीं छोड़ा बकौल कुछ पॉलिटिकल पंडित लालू यादव ने कभी किसी सभा में कहा था, "भूरा बाल साफ करो।" एक नारे का बिहार की सियासत में कई अर्थ निकाला गया। विरोधियों ने इसे सवर्ण विरोधी नारा बताया तो सहयोगियों ने लालू यादव की पैरोकारी करते हुए यह कहा की लालू का अर्थ यह था कि राजनीति से बूढ़े हो चुके राजनेताओं की सफाई का वक्त है।
कई राजनीतिक एनालिस्टों कि मानें तो लालू यादव का इशारा बिहार की चार सवर्ण जातियों की ओर था भू- भूमिहार, रा- राजपूत, बा- ब्राम्हण और ल- लाला (कायस्थ)। वहीं कुछ अन्य जानकारों के हिसाब से लालू ने ऐसा कुछ कहा ही नहीं। जब बरसो बाद लालू यादव से इस बाबत पूछा गया तो लालू यादव ने साफ कहा, "हमने जब ऐसा कहा था तब हमसे क्यों नहीं पूछा गया अब इस प्रश्न का कोई मतलब शेष नहीं है" और उनकी इस चुप्पी ने न जाने कितनी बातें और कितनी पहेलियों को जन्म दे दिया।
सच तो यही है...
उस नारे में कितना सच है और कितना फसाना इसका हिसाब और इंसाफ तो वक्त करेगा, हम इसे इतिहास के पाले में छोड़े चलते हैं।और कुछ हो ना हो परंतु यह तो सत्य है कि लालू यादव ने पिछड़ों दलितों शोषित वंचित तो गरीबों को मुख्यधारा से जोड़ने का जो काम किया है वह शायद कभी किसी सरकार किसी नेता ने नहीं किया और यही सबसे बड़ा कारण है कि आज भी लालू यादव उस तबके के सबसे बड़े और सबसे चहेते नेता बने हुए हैं।
(लेखक बिहार में मंत्री रहे समाजवादी नेता मुनीश्वर सिंह के पौत्र हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में जनसंचार परास्नातक के छात्र हैं। सोशल साइट पर नियमित लेखन)
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