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देश की बिंदी-9: जब सिताबदियारा बन गया सीता-बदियारा और नोएडा को बंदर खा गया !

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शंभु नाथ चौधरी, रांची:

हिन्दी दिवस गुजर गया है, पर हिन्दी को लेकर कुछ ऐसे प्रसंग याद आ रहे हैं जिन्हें साझा करने से खुद को रोक नहीं पा रहा। किसी भी भाषा में मात्राओं में मामूली फेरबदल से शब्दों या वाक्यों के अर्थ कई बार इस तरह बदल जाते हैं कि आप या तो हंसेंगे या सिर पीट लेने की इच्छा होगी। हिन्दी लिखने-बोलने में भी थोड़ी सी चूक से बहुधा विचित्र और हास्यास्पद स्थिति पैदा हो जाती है। सबसे पहला और पिछले साल का प्रसंग है। हरिवंश जी दोबारा राज्यसभा के उपसभापति चुने गये थे। वह सिताबदियारा गांव के रहनेवाले हैं। वही सिताबदियारा, जो स्व. लोकनायक जयप्रकाश नारायण का भी गांव है। हरिवंश जी के निर्वाचन का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वह जेपी के गांव ‘सीता-बदियारा’ के रहनेवाले हैं ! इसे मानवीय चूक मानें या कुछ और, लेकिन अगर कोई दूसरा होता तो कदाचित् हरिवंश जी उन्हें सही करने की कोशिश करते कि ‘दियारा’ का अपना अर्थ है और इसका उच्चारण ‘बदियारा’ नहीं किया जा सकता। सोनिया गांधी भी जिस रोमन स्टाइल में हिंदी बोलती हैं, उससे कई बार लोग हंसी नहीं रोक पाते। ढलते-ढलते बहुत ढलने के बाद भी उनका हिन्दी उच्चारण ऐसा है कि बहुधा शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं।

 

Katkamsandi, Hazaribagh : कटकमसांडी: कटकमसांडी BDO ने पंचायत प्रतिनिधियों  के साथ की समीक्षा बैठक, दिए कई दिशा निर्देश | Public App


कटकमसांडी बनाम कटक-मसांडी
हजारीबाग में एक प्रखंड है-कटकमसांडी। यह हजारीबाग जिला मुख्यालय से कोई 18-20 किलोमीटर दूर है, लेकिन कुछ साल पहले तक यह ऐसे बियावान इलाके के रूप में जाना जाता था, जहां कोई भी सरकारी मुलाजिम नहीं जाना चाहता था। अफसर-कर्मचारी को दंडित करना होता था, तो उसका तबादला कटकमसांडी करने-कराने की धमकी दी जाती थी। एक बार, दक्षिण भारत क्षेत्र से आनेवाले एक आईएएस की पोस्टिंग हजारीबाग उपायुक्त के रूप में हुई। उन्हें जब किसी काहिल अफसर-कर्मचारी को धमकाना होता तो वह यूं कहते- आप नहीं सुधरेंगे तो आपको सीधे ‘कटक’-‘मसांडी’भेज दिया जायेगा ! कटक-मसांडी का यह किस्सा हजारीबाग में कई लोग सुनाते हैं।

 

JNAC and Mango Municipal Corporation closed for three days
 

मैं मैंगो में हूं, आप कहां हैं ?
जमशेदपुर का मशहूर इलाका है- मानगो। यहां दुकानों-प्रतिष्ठानों में साइनबोर्ड पर जगह-जगह ‘MANGO’  लिखा दिख जायेगा। अब बाहर का कोई शख्स पहली बार जमशेदपुर आय़ेगा तो साइनबोर्ड पर लिखे शब्द का उच्चारण स्वाभाविक तौर पर मैंगो ही करेगा। कुछ साल पहले मैं जमशेदपुर में एक अखबार की लांचिंग के सिलसिले में था। कानपुर से आये मेरे एक सीनियर ने मुझसे फोन पर कहा कि- मैं मैंगो पहुंच गया हूं, आप कितनी देर में पहुंचेंगे ? एक पल को मेरा दिमाग चकराया कि यह मैंगो कौन सी जगह है, पर अगले ही पल समझ में आ गया कि वह मानगो पहुंच गये हैं और मुझे भी तत्काल वहां पहुंचना है।

 


 

नोएडा को बंदर खा गया !
अखबारों और टीवी में हिन्दी की टांग तोड़ने वाले हादसे अक्सर पेश आते हैं। दिल्ली में रहनेवाले पत्रकार मित्र उदय चंद्र सिंह ने कुछ साल पहले अपने एक आर्टिकल में ऐसे ही कई हादसों का जिक्र किया था। आर्टिकल का शीर्षक था- नोएडा को बंदर खा गया !
किसी आपात स्थिति की वजह से उस रोज नोएडा पूरी तरह बंद था। एक न्यूज चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज के तौर पर बार-बार स्क्रॉल चला- नोएडा को बंदर खा गया !  दर्शक चौंक उठे, नोएडा को बंदर कैसे खा सकता है?  माजरा जल्द ही समझ में आ गया। टीवी पर स्क्रॉल चलाने का जिम्मा न्यूजरूम के जिस बंधु का था, उन्होंने लिखना चाहा होगा-‘नोएडा को बंद रखा गया’। बार स्पेस का सही इस्तेमाल न करने की वजह से उन्होंने ‘बंद रखा’को ‘बंदर खा’  लिखा। मजे की बात यह कि ये स्क्रॉल काफी देर तक टीवी स्क्रीन पर चिपका रहा।

 


 

कौन सा लड्डू है, जो खाये वह भी पछताये और जो न खाये वह भी ?
‘मायापुरी’एक दौर में बेहद लोकप्रिय फिल्म पत्रिका थी। इसमें एक कॉलम आता था- ‘आपके सवाल, जूही चावला के जवाब’ । एक पाठक ने जूही चावला से सवाल पूछा था- वह कौन सा लड्डू है, जो खाये वह भी पछताये और जो न खाये वह भी ?  इसपर जो जवाब छपा था, उसमें बड़े ही आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल हुआ था। शब्द जननांग से संबंधित था। टाइपिंग की गलती रही हो या फिर कंपोजिटर या डेस्क वाले पत्रकार की शरारत, लेकिन इस मामले को लेकर हजारीबाग के पत्रकार अर्जुन सोनी ने तब स्थानीय न्यायालय में ‘मायापुरी’ पत्रिका के प्रकाशक-संपादक और जूही चावला के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया था। बाद में पत्रिका के प्रबंधन के लोग हजारीबाग आये। उन्होंने माफी मांगी, तब अर्जुन जी ने यह मामला वापस लिया।


खबर जूतों की सेल की !

अमर उजाला में हमारे एक सीनियर ऐसे ही एक हादसे का जिक्र किया करते थे। बनारस के एक अखबार में व्यवसाय वाले पन्ने पर एक दिन ऐसी हेडलाइन छप गयी, जिसके लिए अगले दिन संपादक को माफी मांगनी पड़ी। खबर जूतों की सेल से जुड़ी हुई थी। हेडिंग होनी चाहिए थी- बनारस में जूतों की सेल लगी। टाइपिंग और प्रूफ रीडिंग के स्तर पर हुई चूक की वजह से जूतों में ‘जू’ की बजाय इसी वर्ग का दूसरा अक्षर छप गया। अखबार बाजार में गया तो जबर्दस्त हंगामा हुआ। इस महाभारत में अखबार की किसकी बलि चढ़ी होगी यह तो नहीं पता, लेकिन अखबार की किरकिरी कितनी हुई होगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नही है।

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देश की बिंदी-3: संविधान लागू होने के 3 साल बाद 1953 के 14 सितम्बर को पहला हिन्दी दिवस मना

देश की बिंदी-4: राजभाषा के रूप में देवनागरी में लिखी हिंदी को मिली मान्यता का उत्सव

देश की बिंदी-5: मात्र सरकारी औपचारिकता बनकर क्‍यों रह जाता है हिंदी दिवस

देश की बिंदी-6: सबसे तेज़ी से बढ़ता हिन्दी का कथित अखबार क्‍यों अपनाता है हिंग्लिश

देश की बिंदी-7: संपादकजी कहिन: बदलती रहेगी तो बहती रहेगी हिंदी

देश की बिंदी-8: मीडिया पर हिंदी का स्वरूप विकृत कर देने का आरोप कितना उचित

 

(लेखक जन-सरोकारों से जुड़े झारखंंड के वरिष्‍ठ पत्रकार हैं। संप्रति न्‍यूज़ विंग के संपादक।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।