प्रेमकुमार मणि, पटना:
तमिलनाडु सरकार इस वर्ष 17 सितम्बर को सामाजिक न्याय दिवस के रूप में मनाया। यह दक्षिण भारतीय महान नेता पेरियार रामासामी नायकर (1879-1973) का जन्मदिन है, जो अब तमिलनाडु में राजकीय उत्सव के रूप में आयोजित होगा। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमें अपने ही देश के दक्षिणी हिस्से के बारे में बहुत कम जानकारी है। हम उत्तर भारतीय भद्रजन आर्यावर्तीय मनोग्रंथि से इतने आत्ममुग्ध होते हैं कि दक्षिण को अपना उपनिवेश से अधिक कुछ नहीं समझना चाहते। जानता हूँ पहले की अपेक्षा अब कुछ जागृति आई है; लेकिन आज भी समाज का एक बड़ा तबका पेरियार और अन्य दक्षिण भारतीय नायकों के बारे में बहुत कम जानकारी रखता है। पेरियार का पूरा नाम है- इरोड वेंकटप्पा रामासामी, जिसे संक्षेप में ई .वी .रामासामी कहा जाता है। इरोड वह गाँव है, जहाँ पेरियार का जन्म हुआ। जन्म वर्ष था 1879, पुराना मद्रास और अब का तमिलनाडु प्रान्त. पेरियार केरल की एक प्रसिद्ध नदी है और रामासामी नायकर का उपनाम भी। नायकर एक जाति है, जिससे पेरियार का वास्ता था।
पेरियार का जन्म एक संपन्न व्यापारी परिवार में हुआ था, लेकिन वह गैरब्राह्मण थे और उनके तमिल समाज में ब्राह्मण-गैरब्राह्मण का भेद जबरदस्त था।समाज का प्रश्रयप्राप्त तबका ब्राह्मण था, जब कि बाकी सब उनके अधीनस्थ थे, जिनकी समाज में कोई इज्जत नहीं थी। दक्षिण में ब्राह्मण -गैरब्राह्मण का भेद उत्तरभारत के मुकाबले अधिक था। पेरियार जब युवा थे, तब उन्होंने उत्तर भारत के धार्मिक स्थलों की यात्रा की थी। बनारस में उन्हें जाति के आधार पर भोजन की पांत से अपमानित कर के उठा दिया गया। यह वर्णवादी समाज से उनकी पहली मुठभेड़ थी। पेरियार इसे कभी भूल नहीं सके। अपने व्यक्तिगत प्रतिरोध को आगे चल कर उन्होंने सामाजिक प्रतिरोध में बदल दिया। उनका जमाना वह था, जिसमें ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरुद्ध भारत का राष्ट्रीय मुक्ति संग्राम चल रहा था। 1920 में पेरियार भी कांग्रेस और गांधी के प्रभाव में आये। गांधी के नशामुक्ति आंदोलन में उन्होंने अपने पुश्तैनी हजारों ताड़ पेड़ों को कटवा दिया, क्योंकि उनसे ताड़ी चुलाई जाती थी। इस घटना से यह अवश्य पता चलता है कि वह हर काम को आवेग अथवा जोश के साथ करना चाहते थे। गांधी और कांग्रेस के साथ उनकी अधिक दिनों तक नहीं चली। 1925 में वह कांग्रेस से अलग हो गए।
पेरियार की औपचारिक पढाई बहुत कम हुई थी। उन्होंने जो पढाई की थी स्वध्याय से की थी। उनमें जिज्ञासा कूट-कूट कर भरी हुई थी। 1929 से 1934 तक उन्होंने यूरोप और सोवियत संघ की यात्रा की और वहां की सामाजिक स्थितियों का अध्ययन किया। यात्रा से लौट कर वह जस्टिस पार्टी से जुड़ गए।लेकिन 1937 के चुनावों में जस्टिस पार्टी कांग्रेस पार्टी से बुरी तरह पिट गई। जस्टिस पार्टी की पराजय से इसके बड़े नेता हतोत्साहित थे। इसी स्थिति में इस पराजित पार्टी का नेतृत्व पेरियार के हाथ लगा। 1939 में वह इस पार्टी के सर्वेसर्वा हो गए। लेकिन 1944 में पेरियार ने इस पार्टी को द्रविडार कझगम में बदल दिया। 1949 में अन्नादुरै के नेतृत्व में इस पार्टी का एक और विभाजन हुआ। अन्नादुरै ने अपने समर्थकों के साथ द्रविड़ मुनेत्र कझगम ( डी एम् के ) बना ली। अन्नादुरै पेरियार के राजनीतिक शिष्य थे। लेकिन 1948 में अपने 69 वर्षीय नेता के 31 वर्षीया सामाजिक कार्यकर्त्ता मणिअम्मा (1917-1978) से विवाह पर उनका मतभेद था। पेरियार की समस्या थी कि नेहरू आदि नेताओं की तरह अपने निजी संबंधों को छुपा कर नहीं रख सकते थे। ऐसा ही आम्बेडकर ने भी किया था। पेरियार और आम्बेडकर जैसे लोग नेता से अधिक दार्शनिक मुद्रा के थे। छुपा कर किया जाने वाला कोई भी काम उनके लिए अपराध था। पेरियार का अनेक रूपों में आज अध्ययन हो रहा है। यह सही है कि असमानता और शोषण के विरुद्ध उनका गुस्सा जबरदस्त था। उन्हें अनुभव हुआ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से गैर द्विज समूहों का राजनीतिक सरोकार जुड़ नहीं रहा है। ऐसी स्थिति में उन्हें महसूस हुआ कि कांग्रेस के प्रस्तावित स्वराज की पूरी पटकथा ब्राह्मणवादी ढाँचे में लिखी गई है। गांधी उसी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उन्होंने स्वराज के इस पाठ को सीधे तौर पर ठुकरा दिया। उनके विचारों का सम्यक अध्ययन होना अभी शेष है। जब यह होगा पेरियार के विचारों के कुछ नए आयाम उद्घाटित होंगे। मसलन उनकी प्रस्तावित राष्ट्रीयता कहीं अधिक वैज्ञानिक और भविष्णु प्रतीत होती है।
जातिवाद के विरुद्ध वह हमेशा रहे। वह पूरे तौर पर नास्तिक और वास्तविक अर्थों में धर्मनिरपेक्ष थे। उनके अनुसार आधुनिक लोकतान्त्रिक दुनिया में ईश्वर और धर्म का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। इस पर वह आजीवन रूढ़ बने रहे। आम्बेडकर ने बौद्ध धर्म और एक अन्य उत्तरभारतीय समाजवादी राममनोहर लोहिया ने हिन्दू पौराणिकता की नई व्याख्याएं की और इनकी प्रासंगिकता रेखांकित करने की कोशिश की। लेकिन पेरियार ने केवल और केवल मनुष्य और मानवीयता को रेखांकित किया। उन्होंने हमें यह बतलाया कि मनुष्य को इज्जत की दुनिया दे दो ; एक ऐसी दुनिया जहाँ उसका आत्मसम्मान चोट नहीं खाए बाकी सब चीजें वह अपनी सक्रियता से पैदा कर लेगा। मेरे अनेक युवा मित्रों ने समय -समय पर पेरियार के बारे में मुझ से जानना चाहा है। मेरा जवाब संक्षिप्त रहा है - फ्रायड ने मनुष्य को सेक्सकेंद्रित बताया।मार्क्स ने मानव समाज को अर्थकेंद्रित बताया। पेरियार और आंबेडकर जैसे लोगों ने उसमें संशोधन किया। इनलोगों ने बताया मनुष्य का चरित्र अस्मिता -केंद्रित है। उसे इज्जत की ज़िंदगी सुनिश्चित कर दो, शेष सब चीजें वह पैदा कर लेगा। पेरियार और आम्बेडकर का यही मानना था कि ब्राह्मणवादी-मनुवादी सामाजिक संहिता के साथ आधुनिक लोकतंत्र और वास्तविक राष्ट्रीयता की संगति नहीं बनेगी। इसलिए यह सुनिश्चित करना होगा कि जातपात और अवैज्ञानिक सोच समाप्त किया जाए . इसके बिना पर हम लोकतंत्र और समाजवाद स्थापित नहीं कर पाएंगे।
यह अजीब बात है कि पेरियार ने भगत सिंह के लेखन के प्रति दिलचस्पी दिखलाई थी। उनके नास्तिकता संबन्धी विचारों के वह कायल थे। राममनोहर लोहिया ने जब समाजवादी पार्टी बनाई, तब पेरियार और आंबेडकर में थोड़ी दिलचस्पी दिखलाई। लेकिन लोहिया की अकड़ यह थी कि वह खुद सीखने को उत्सुक नहीं होते थे, दूसरों को अपना पाठ पढ़ाना चाहते थे। उत्तर भारतीय समाजवादी नेताओं की सबसे बड़ी त्रासदी उनका गांधीवाद से नाभिनाल जुड़ाव था। कांग्रेस के गर्भ में पला-बढ़ा भारतीय समाजवादी आंदोलन गांधीवाद के व्यामोह से कभी मुक्त नहीं हो पाया। पेरियार और आम्बेडकर ने गांधीवाद की सीमाओं को समझा था और उनके व्यामोह से पूरी तरह मुक्त थे। पेरियार ने आजीवन समतामूलक समाज के लिए काम किया। उनकी कमियां हो सकती हैं और इस पर विचार करना बुरा भी नहीं होगा। लेकिन इससे उनका महत्व कम नहीं हो जाता। अपने समय में उन्होंने हासिए के लोगों के जनतांत्रिक हितों की वकालत की और उसके लिए संघर्ष किया।
(प्रेमकुमार मणि हिंदी के चर्चित कथाकार व चिंतक हैं। दिनमान से पत्रकारिता की शुरुआत। अबतक पांच कहानी संकलन, एक उपन्यास और पांच निबंध संकलन प्रकाशित। उनके निबंधों ने हिंदी में अनेक नए विमर्शों को जन्म दिया है तथा पहले जारी कई विमर्शों को नए आयाम दिए हैं। बिहार विधान परिषद् के सदस्य भी रहे।)
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