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नेहरु संग्रहालय, इंदिरा गांधी कला केंद्र, लालबहादुर शास्त्री स्मृति प्रतिष्ठान और जामिया मिल्लिया की विदेशी फंडिंग पर लगी रोक

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द फॉलोअप टीम, दिल्ली:

देश-दुनिया में कल्याणकारी काम  महज़ सरकारें हीं नहीं करतीं बल्कि बड़ी संख्या में गैर-सरकारी उपक्रम सक्रिय हैं, जो स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक क्षेत्राें में योगदान दे रही हैं। ये संस्थाएं नागरिकों के दान और देश-विदेश के चंदे पर चलती हैं। भारत में 22,762 संस्थाएं ऐसी हैं, जिन्हें बड़ी मात्रा में विदेशों से आर्थिक मदद मिलती है। दैनिक नवभारत टाइम्‍स के साथ न्‍यूज एजेंसी भाषा के संपादक रहे  वरिष्ठ पत्रकार डॉ वेदप्रताप वैदिक ने अपने ताजा लेख में इस मामले को विस्तार से बताया है कि सरकार ने ऐसी कई संस्थाओं का पंजीयन रद्द कर दिया है। भारत की हजारों संस्थाओं को मिलनेवाले विदेशी पैसे पर कड़ी निगरानी अब शुरु हो गई है। विदेशों की मोटी मदद के दम पर चलनेवाली संस्थाओं की संख्या ये संस्थाएं समाज-सेवा का दावा करती हैं।

 

 

वैदिक लिखते हैं कि जिन संस्थाओं के विदेशी पैसे पर रोक लगी है और जिनका पंजीकरण रोका गया है, वे सिर्फ गैर-सरकारी संस्थाएं ही नहीं हैं। उनमें नेहरु स्मृति संग्रहालय, इंदिरा गांधी कला केंद्र, लालबहादुर शास्त्री स्मृति प्रतिष्ठान और जामिया मिलिया जैसी संस्थाएं भी हैं, जो देश के बड़े-बड़े नामों से जुड़ी हुई हैं और जिन्हें सरकारी मदद भी मिलती रही है। इन संस्थाओं पर लगी रोक को शुद्ध राजनीतिक और सांप्रदायिक कदम भी बताया जा सकता है। मदर टेरेसा की संस्थाओं पर रोक को भी इसी श्रेणी में रखा जा रहा है लेकिन जब यह मामला संसद में उठेगा तो सरकार को यह बताना पड़ेगा कि इन संस्थाओं पर रोक लगाने के ठोस कारण क्या हैं? ये संस्थाएं सिर्फ इस कारण विदेशी पैसे का दुरुपयोग नहीं कर सकतीं कि इनके साथ देश के बड़े-बड़े लोगों के नाम जुड़े हुए हैं। 

 

वैदिक लिखते हैं कि विदेशी पैसे से चलनेवाली इन संस्थाओं में कई शिक्षा-संस्थाओं, अस्पतालों, अनाथालयों, विधवा आश्रमों आदि के अलावा ऐसे संगठन भी चलते हैं, जो या तो कुछ नहीं करते या सेवा के नाम पर धर्म-परिवर्तन और छद्म राजनीति करते हैं। पिछले कई वर्षों से यह आवाज उठ रही थी कि इन सब संस्थाओं की जांच की जाए। इन संस्थाओं का सरकार के साथ पंजीकरण अनिवार्य बना दिया गया था और इन्हें विदेशी पैसा लेने के पहले सरकार से अनुमति लेना जरुरी था। गृहमंत्रालय से इन्हें लायसेंस लेना अनिवार्य है लेकिन इस साल लगभग 6 हजार संस्थाओं का पंजीकरण स्थगित कर दिया गया है। 18 हजार से ज्यादा संस्थाएं अभी पंजीकरण के लिए आवेदन करनेवाली है। ऐसी 179 संस्थाओं का पंजीकरण रद्द हो गया है, जिनके हिसाब में गड़बड़ी पाई गई है या जो निष्क्रिय हैं या जिनकी गतिविधियां आपत्तिजनक मानी गई हैं। मदर टेरेसा की संस्था भी इनमें है। कई संस्थाओं के बैंक खाते भी बंद कर दिए गए हैं। इस पर सरकार के विरुद्ध कई नेता और संगठन काफी शोर मचा रहे हैं। यह स्वाभाविक है। विपक्षी नेताओं को तो हर उस मुद्दे की तलाश रहती है, जिस पर वे कुछ शोर मचा सकें लेकिन समाजसेवी संगठनों की तो सचमुच मुसीबत हो गई है। उनके कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा है। अस्पतालों में इलाज बंद हो गया है। अनाथ बच्चों को खाने-पीने की समस्या हो गई है।