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याद आज़ाद : इंसानियत के ऐसे मसीहा जिन्होंने देश में फैलाया शिक्षा का उजियारा-रांची से भी कनेक्शन

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डाॅ. जंग बहादुर पाण्डेय, रांची:

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पै रोती है। 
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।।

उर्दू और फारसी के प्रसिद्ध शायर अल्लामा मो. इक़बाल की ये पंक्तियां महापुरुषों के प्रकाट्य की संकेतक हैं। सचमुच जब भारत जननी अंग्रेजों के आतंके सितम से करा रही थी, सर्वत्र अंधविश्वास, कुरीतियां कुविचार अपना साम्राज्य फैलाए हुए थे, तब इनसे भारतीय समाज को मुक्त कराने और भारत की यश: पताका संपूर्ण विश्व में फहराने के लिए एक महामानव ने अवतार ग्रहण किया था; जिसका नाम था मौलाना अबुल कलाम आजाद (11 नवंबर 1888- 22 फ़रवरी 1958)। इनका जन्म मक्का में हुआ था। इनके बचपन का नाम गुलाम मोहीउद्दीन रखा गया , बाद में उन्होंने अपना नाम अबुल कलाम रखा और आज़ादी के परवाने होने के कारण आज़ाद संज्ञा से विभूषित हुए। इनका संबंध एक ऐसे परिवार से था जहां सरस्वती और लक्ष्मी दोनों एक साथ विराजमान थी ।मां अरबी एवं पिता भारतीय थे ।यही कारण है कि दोनों संस्कृतियों की श्रेष्ठता इनके व्यक्तित्व में समाहृत थी। मौलाना आज़ाद होनहार बिरवान के होत चिकने पात को चरितार्थ करने वाले इंसान थे इनकी प्रारंभिक शिक्षा अरबी उर्दू में हुई। बचपन के 10 वर्ष उन्होंने मक्का में बिताए। सन 18 98 ई0में अपने पिता शेख खैरूद्दीन के साथ भारत वापस आए। इनके पिता अरबी और फारसी के अच्छे विद्वान थे। उन्होंने अरबी और फारसी की दर्जनों पुस्तकें लिखीं और उनके शागिर्दों की एक लंबी परंपरा थी। तुर्की के सुल्तान अब्दुल मजीद ने इनके पिता की विद्वता से प्रभावित होकर उन्हें कस्तुन्तुनिया बुला लिया था। जब उनका विवाह मक्का के बड़े आलिम शेख मोहम्मद ज़हीर की पुत्री से हुआ ,तब वे मक्का आ गए जहां 11 नवंबर 1888 को गुलाम मोहीउद्दीन का जन्म हुआ जो इतिहास में मौलाना अबुल कलाम आजाद के नाम से विख्यात हुए।

 

इनके पिता चाहते थे कि उनका बेटा अंग्रेजी की बजाए अरबी और फारसी में पढ़े और हुआ भी ऐसा ही ।दरजे  निजामी का कोर्स जो 10 वर्षों में पूरा होता था उसे मौलाना आजाद ने अपने लगन और कठिन परिश्रम से 4 वर्षों में ही पूरा कर लिया ।इसके साथ ही उन्होंने इतिहास, भूगोल, तर्कशास्त्र गणित, दर्शन आदि का भी ज्ञान प्राप्त किया ।इनके व्यक्तित्व के निर्माण में उनके पिता की सादगी एवं विद्वता का समावेश था ।वे ज्ञान पिपासु थे।उन्होंने 14 वर्ष की आयु में लिसानुस सिद्क  अर्थात सच्चाई की पुकार का संपादन किया ।देश और दुनिया की समस्याओं पर उन्होंने निर्भीकता से अपनी लेखनी चलाई ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली ने सर सैयद अहमद खान की जीवनी 'हयाते जावेद' लिखी तो मौलाना आजाद ने उस पर खुलकर आलोचना लिखी। 1904 में अंजुमन-ए-हिमायत-ए-इस्लाम' के लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता की, जिसमें धर्म के बौद्धिक आधारपर विद्वता पूर्ण एवं ओजस्वी भाषण दिया ।उसके बाद संपूर्ण दुनिया में उनकी विद्वता की धाक जम गई। 1905 में मौलाना आजाद ऑल हद अजहर विश्वविद्यालय में अर्थ शास्त्र की शिक्षा के लिए काहिरा गए 2 वर्ष बाद भारत आए। 1909 में इनके पिता का देहांत हो गया फिर भी इन्होंने  हिम्मत नहीं हारी और मिश्र इराक,इरान आदि  8 देशों का व्यापक दौरा किया और दुनिया की नई रोशनी एवं जज्बात लेकर भारत लौटे। उस समय स्वदेशी आंदोलन प्रारंभ हो चुका था। भारत को आजाद करने के लिए भारतीय जनमानस बन चुका था।

Rare Photos: Mahatma Gandhi with Maulana Abul Kalam Azad.

महात्मा गांधी के सानिध्य के कारण मौलाना आजाद राजनीति में आए और मील का पत्थर बन गए ।उस समय देश में मुसलमानों के बीच दो विचारधारा चल रही थी एक अलीगढ़ी विचारधारा जो अंग्रेजी शिक्षक की हिमायती थी और दूसरी गैर अलीगढ़ी विचारधारा जो जो अंग्रेजी शिक्षा और अंग्रेजों का खिलाफ कर रही थी। मौलाना आजाद दूसरी विचारधारा के पक्षधर थे। उन्होंने महसूस किया कि अंग्रेजों से भारत की मुक्त के लिए जन जागरण हेतु एक पत्रिका निकलनी चाहिए। एतदर्थ उन्होंने कोलकाता से 'अल हिलाल' उर्दू साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन 1 जून 1912 को शुरू किया। इसका उद्देश्य मुसलमान युवकों को क्रांतिकारी आनंदोलनों के प्रति उत्साहित करना और हिन्दू मुस्लिम एकता पर बल देना था।इसके प्रकाशन से देश के युवकों का ध्यान स्वाधीनता आंदोलन की ओर गया। अंग्रेज भी घबरा गए। अल हिलाल मौलाना आजाद के विचारों को समझने के लिए पर्याप्त हैं। उसने (अल हिलाल)हजारों लोगों की नींद छीन ली ।अल हिलाल के माध्यम से मौलाना आजाद एक वैचारिक क्रांति पैदा करना चाहते थे। प्रारंभ में तो कट्टरपंथी लोगों ने इसका का विरोध किया लेकिन बाद में उनकी विद्वता सच्चाई, इमानदारी राजनीतिक सूझबूझ और स्पष्टवादिता की सर्वत्र चर्चा होने लगी। कट्टरपंथी मुसलमानों में भी कौम का जज्बा और कौमी एकता की भावना जाग उठी। मौलाना आजाद का व्यक्तित्व एक निर्भीक शेर की तरह था । अल हिलाल ने अंग्रेजों की नींदे हराम कर दी। अंग्रेजी सरकार ने मौलाना आजाद को एक खतरनाक एवं दूरदर्शी व्यक्ति माना, फल स्वरूप 7 अप्रैल 1914 को मौलाना आजाद पंजाब संयुक्त प्रांत और मद्रास से निष्कासित कर दिए गए। वे कलकत्ता से नजरबंद कर रांची लाए गए ।अंग्रेजी सरकार की मंशा थी कि इनके क्रियाकलाप को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया जाए।

 

 

मौलाना अबुल कलाम आजाद का रांची कनेक्शन

 

1916 से 31 दिसंबर 1919 तक वे रांची में नजरबंद रहे। यहां हिंदू-मुस्लिम मित्रों के सहयोग से मदरसा इस्लामिया की स्थापना की। अपना छापाखाना और पत्नी के गहने तक बेच दिये। यहीं अंजुमन की शुरुआत की। इसके बाद 1921, 1940 में इन्हें गिरफ्तार करके देश के विभिन्न जिलों में रखा गया।मौलाना आजाद पूर्ण स्वतंत्रता के पक्षधर थे।  वे ऐसी स्वतंत्रता हरगिज़ नहीं चाहते थे जिसमें राष्ट्र की एकता एवं अखंडता,  प्रेम एवं सौहार्द्र का वातावरण नष्ट हो जाए । राष्ट्र को संबोधित करते हुए उन्होंने एक बार कहा था कि "अगर बादलों से उतरकर एक फरिश्ता कुतुब मीनार की चोटी पर खड़ा हो जाए और यह ऐलान करे कि हिंदुस्तान को आजादी आज ही मिल सकती है ।बशर्ते कि वह हिंदू मुस्लिम एतहाद से दस्तबरदार हो जाए तो मैं आजादी से दस्तबरदार हो जाऊंगा। चूकि अगर हमें आजादी नहीं मिली तो हिंदुस्तान का नुकसान होगा। लेकिन अगर हिंदू मुस्लिम एतहाद नहीं कर सका, तो पूरी इंसानियत का नुकसान होगा। मौलाना आजाद की यह  विचारधारा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी कल थी। वे सच्चे इंसान थे और हिंदू मुस्लिम एकता के परम हिमायती। मौलाना आजाद आजाद भारत के प्रथम तालीम वजीर थे।उन्होंने 11 वर्षों तक भारत की शिक्षा नीति का नेतृत्व किया।आजाद को ही भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान(आई.आई.टी.) और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग(यू.जी.सी.) की स्थापना का श्रेय है।साथ ही उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की, वे हैं
1. भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद(1950)
2.संगीत नाटक अकादमी(1953)
3.साहित्य अकादमी(1954)
4. ललित कला अकादमी(1954)
5. यू.जी.सी.(1956)

 

Greatest Blunder Of Maulana Azad That Changed India

 

मौलाना आजाद एक कुशल राजनीतिज्ञ थे । वे बड़ी ही चालाकी से अपनी योजना बनाते और उसका कार्यान्वयन करते थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उनकी राजनीतिक कुशलता के बारे में बयान किया है कि  "मैं केवल व्यावहारिक राजनीतिक ही नहीं जानता,  राजनीति का छात्र भी हूं। राजनीति की पुस्तकें मुझसे ज्यादा हिंदुस्तान में किसी और ने नहीं पढ़ी है।। मैं तीसरे चौथे साल यूरोप का दौरा भी करता हूं ,जहां राजनीति का निकट से अध्ययन करने का अवसर मिलता है। मैं समझता हूं कि मैंने राजनीति के ताजातरीन ज्ञान से जानकारी प्राप्त कर ली है।  लेकिन जब मैं हिंदुस्तान में मौलाना आजाद से बातें करता हूं, तो मालूम होता है कि वे अब भी मुझसे बहुत आगे हैं।" डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन दर्शन के निष्णात् विद्वान एवं विचारक थे। मौलाना आजाद को उन्होंने निकट से देखा और परखा था। मौलाना आजाद की राजनीतिक दूरदर्शिता के वे भी कायल थे। उन्होंने लिखा है कि "मौलाना आजाद एक बहुत बड़े राजनीतिक  चिंतक और विद्वान थे।  पक्के मुसलमान थे, वतन से उन्हें बेहद लगाव था। उनके जीवन के तमाम पहलुओं पर बहस करना संभव नहीं है। उन्होंने अपने सिद्धांत के खातिर बड़ी मुसीबतें  सही हैं। मौलाना की सेवाओं को याद करने का बेहतरीन तरीका यह है कि कॉम उनकी विचारधारा एवं आदर्शों को दिल से लगाए रखे, जिसे मौलाना ने हमेशा अपने सामने रखा।"

 भूतपूर्व राष्ट्रपति वी वी गिरि ने मौलाना आजाद के बारे में यह राय व्यक्त की थी कि मौलाना आजाद देश प्रेम और राष्ट्रीय संप्रभुता के हिमायती थे। उन्होंने अपनी सारी जिंदगी देश के लिए अर्पित कर दी थी। वे आला दर्जे के विद्वान और चिंतक थे ।उनके लिए कोई भी समस्या ऐसी नहीं थी जिसका समाधान उनके पास नहीं था। भारत प्रथम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी मौलाना आजाद के सागिर्दो में एक थे। मौलाना आजाद की राजनीतिक सूझबूझ से परिचित थे। उनके निधन पर उन्होंने कहा है कि हिंदुस्तान की रियासत में एक अजीब और बेमिसाल हस्ती से हम महरूम हो गए हैं। हजरत मौलाना बड़ी-बड़ी अंग्रेजी किताबें पढ़ते रहते थे, गरचे उन्होंने इस जुबान में गुफ्तगू करने की कभी कोशिश नहीं की।वे हिंदुस्तानियों के लिए ताकत का स्तंभ थे। मौलाना आजाद की काबिलियत एवं राजनीतिक सूझबूझ के कायल केवल देश के नेता ही नहीं, अपितु विदेशों के राष्ट्राध्यक्ष भी थे। 22 फरवरी 1958 को उनके आकस्मिक निधन पर सारा राष्टृ स्तब्ध  हो गया। मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति जमाल अब्दुल नासिर ने शोक व्यक्त करते हुए उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व की भूरी भूरी प्रशंसा व्यक्त की है- रोशनी की मीनार और अज्म व हौसला का सर चश्मा हमारी नजरों से ओझल हो गया। एहले मशरिक अपनी तारीक राहों को किस तरह चिराग से रोशन कर सकेंगे और मगरीब की सामग्री कूबतों से किस तरह अपना लोहा मनवा सकेंगे। वे अरब और एशियाई अकवाम की आजादी के सबसे बड़े अलंबरदार थे। पूरी दुनिया और एशिया ने  70 साल में जो कुछ हासिल किया ,वह  मौलाना अबुल कलाम आजाद की कोशिशों का ही नतीजा है।"

 

Maulana Azad Education Foundation - Photos | Facebook

इंग्लैंड के भूतपूर्व प्रधानमंत्री यक मिशन ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा था कि मैं जानता हूं कि दुनिया भर के वे तमाम लोग जो मौलाना आजाद को जानते हैं उनके मसविरे और दोस्ती से महरूम होने को बहुत महसूस करेंगे"। उपर्युक्त विद्वानों के सभी वक्तव्यों से जो तथ्य  सामने प्रकट होता है वह यही  कि मौलाना आजाद कुशल राजनीतिज्ञ और अब्बल दर्जे के इंसान थे। उनका सारा जीवन संघर्षमय रहा। उन्होंने देश हित के लिए अपनी सुख-सुविधाओं की तिलांजलि दे दी। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक इंडिया विंस फ्रीडम हिंदुस्तान की आजादी का जीवंत दस्तावेज है। उन्होंने सोए हुए भारतीयों को जगाया और उनमें उत्साह एवं जोश का संचार किया, जिसके फलस्वरूप भारतीय सिंहों  के गर्जन से घबराकर अंग्रेज भागे सात समुंदर पार और हमें नसीब हुई आजादी। वैसे तो वे अपनी उत्कृष्ट मेधा और वक्तृत्व कला के लिए जगत विख्यात हैं परंतु उन्होंने जो सबसे बड़ा काम भारतीयों के लिए किया वह है भारतीयों में राष्ट्रवाद का प्रस्फुटन एवं मुखरण। उन्होंने धर्म एवं राजनीति को मानवतावाद के साथ जोड़ा और एक नई  दृष्टि विकसित की। उन्होंने पहली बार यह कहा कि आप की समग्र उपलब्धियां बेकार एवं निरर्थक हैं जब आपका राष्ट्र दुखी है , लोग भूख की तड़प  से बेचैन हैं। इस समय हमारा सिर्फ एक ही दायित्व बनता है कि हम अपनी तमाम उपलब्धियों को दरकिनार करते हुए भारत मां को आजाद करें और जनता जनार्दन की सेवा में उनकी दुख मुक्ति में अपने आप को अर्पित कर दें। इस प्रकार वे राष्ट्र और जन को जोड़ने वाले महामानव मनीषी थे।  उनकी मान्यता थी कि सोचकर कदम बढ़ाओ और फिर हटो नहीं। दरिया में उतरने से पहले सब कुछ सोच लेना चाहिए। उतरने के बाद मौजों की शिकायत फजूल है। वे यह भी कहा करते थे कि अगर एक आदमी फौज की नौकरी नहीं करता तो यह कोई जुर्म नहीं। लेकिन अगर सिपाही बनकर लड़ाई से पीछे हटता है तो उसकी सजा मौत है।  बंगला के प्रसिद्ध कवि माइकेल मधुसूदन दत्त ने कहा है कि
 सोई धन्नो नरकुले, लोके जारे ना ही भूले।
(He is fortunate,Who is remembered by the people,even after his death.)
 धन्य उसी का है नर तन।
  करता याद जिसे जनमन।

 मौलाना आजाद  हमेशा अपने गुणों एवं कर्मों के कारण स्मरण किए जाते रहेंगे वे सच्चे अर्थों में इंसानियत के अग्रदूत एवं मसीहा थे।

 

(लेखक हिन्दी विभाग, रांची विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रह चुके हैं। )

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।