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सब के उदय के पक्षधर रहे सर्वोदय के नायक संत विनोबा भावे

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कैलाश रावत, भोपाल: 

महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भारत रत्न गांधीवादी भूदान आंदोलन के संत विनायक नरहरि विनोबा भावे (11 सितंबर 1895 -15 नवंबर 1982)  ‌जिस जमीन का छठवां हिस्सा मांगते, तो लोग खुशी खुशी दे देते थे। महात्मा गांधी के विचारों को कार्य रूप में परिणत करने के लिए संत विनोबा भावे ने सर्वोदय भूदान पर कार्य किया। सर्वोदय का सीधा सरल अर्थ सब का उदय। सर्वोदय की विशेषता उसकी समन्वयक प्रवृत्ति है। सभी विचारों को अच्छे से ग्रहण करना और दोषों को छोड़ देना। यदि हमको हितों का विरोध प्रतीत होता है तो इसका कारण हमारी गलत धारणा और हमारा गलत आचार ही है। परंतु यदि हम मानव हितों की एकता में विश्वास करें तो हम सर्वोदय की वास्तविकता के निकट पहुंच सकते हैं। सर्वोदय में मानवता निहित है। मानव आत्मा पवित्र स्वतंत्रता समानता न्याय तथा भाई बंधु के आदर्शों में हमें अधिक महत्व देना चाहिए। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने सोशलिस्ट पार्टी के पचमढ़ी सम्मेलन में संत विनोबा भावे के भूदान आंदोलन की भूरी-भूरी प्रशंसा की और सोशलिस्ट पार्टी समाजवादी विचारधारा से जुड़े लोगों से सहयोग करने की अपील की। सम्मेलन में डॉ राम मनोहर लोहिया भी मौजूद थे। जयप्रकाश नारायण की सलाह पर सर्वोदय एवं भूदान आंदोलन में सोशलिस्ट पार्टी के नेता समाजवादी विचारधारा से जुड़े चिंतक विचारक ने सर्वोदय का भूदान आंदोलन का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग किया एवं सर्वोदय में आचार्यकुलम में शामिल भी हुए। डॉ राम मनोहर लोहिया संत विनोबा भावे का बहुत सम्मान करते थे। सोशलिस्ट नेताओं ने सर्वोदय और भूदान आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। विचारधारा में कोई अंतर नहीं था। इसलिए समाजवादी नेता चिंतक और विचारक स्वयं को सर्वोदय भूदान आंदोलन से अपनी निकटता महसूस करते हैं।

 

सर्वोदय मार्क्सवाद, श्रम संघवाद, समाजवाद और समाजवादी विचारधारा से भिन्न है, तो सर्वोदय केवल यह मानकर चलता है किस प्रकार कोई वर्ग भेद समाज तथा सामाजिक जीवन में अस्वाभाविक है। मनुष्य में प्रकृति से प्रेम और सहयोग की भावनाएं प्रबल है। अतः संख्या के आधार पर दोष और वर्ग आधार समाज विभाजित करना सर्वथा अनुचित है। सर्वोदय मनुष्य के नैतिक मूल्यों में विश्वास करता है, उसके आध्यात्मिक मूल्यों का जयघोष करता है फेबियनवाद भी सर्वोदय की आदर्श को नहीं छू सका फेबियन बाद व्यक्ति से सब के कल्याण के लिए अपना बलिदान देने का अनुरोध नहीं करता। आचार्य कुल और सर्वोदय का लक्ष्य कुछ या बहुत से व्यक्तियों का उत्थान नहीं अधिकतम संख्या में भी उत्थान नहीं वर्ना  सबके उत्थान का है। ऊंचे का भी नीचे का। भी सबल का भी बुद्धिमान का भी और बुद्धिहीन का भी सर्वोदय संपूर्ण समाज के उत्थान को अपना लक्ष्य मानता है। आचार्यकुलम अपनी इसी विशेषता के कारण उपयोगितावाद से भी श्रेष्ठ है जो अधिकतम संख्या के अधिकतम सुख को अपना लक्ष्य मानता है। 

 

 

संत विनोबा भावे का आचार्य कुल बिल्कुल नहीं मानता कि उनके अपने विचार छोड़कर बाकी विचारों का प्रचार बंद कर दिया जाए।  कम्युनिस्ट समाजवादी अन्य विचारधाराएं अपने-अपने विचार जनता के सामने रखें। मैं भी अपना विचार जनता के सामने रख लूंगा। दूसरी विचारधारा के लोग अपना विचार भी जनता के सामने रखें जनता को जो पसंद आए वह स्‍वीकार कर लेगी आखरी फैसला जनता की अदालत में होता है। जनता और जनमत  सर्वोपरि होता है। मेरे द्वारा बताया गया रास्ता पकड़ना और ना पकड़ना इसका फैसला भी जनता करेगी। संत विनोबा भावे आचार्य कुल ने जनता की स्वतंत्रता पर अधिक बल दिया। उन्होंने सत्ता को जनसेवा में प्रयुक्त किए जाने के उद्देश्य के साथ-साथ व्यक्तियों को संबल और स्वावलंबी बनाना आवश्यक माना है। विनोबाजी जनता को स्वावलंबी बनाकर उसे अपनी शक्ति के प्रति जागृत करना चाहते थे। दक्ष व्यक्तियों द्वारा शिक्षा से जनता की सहायता करने पर बल देते हैं ताकि जनसमुदाय उन्हें उत्तर में सहयोग प्रदान कर सके। स्वतंत्रता समानता न्याय तथा  बंधुत्व के आदर्श को हमें अत्याधिक अधिक  महत्व देना चाहिए आर्थिक समानता की अवधारणा को विनोबा भावे ने अधिक महत्व दिया है। आर्थिक समानता के बिना अच्छे समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। विनोबाजी की धारणा है कि आवश्यकता तथा इच्छाओं को बहुत करने के स्थान पर उनका परिसीमन करना चाहिए ताकि समाज और समन्वय एवं संतोष का वातावरण बने। प्रकृति ने हमारी आवश्यकताओं के अनुरूप सब वस्तुओं को उत्पन्न किया है। अतः प्रत्येक व्यक्ति द्वारा केवल अपनी आवश्यकता अनुसार वस्तुओं का प्रयोग किया जाए। संग्रह ना किया जाए तो विश्व में कोई व्यक्ति सुधा पीड़ित अथवा अन्य रोग से पीड़ित नहीं रह सकता। विनोबा भावे ने गांधीजी के रोटी रोजी सिद्धांत का अक्षरशः पालन किया है। प्रत्येक व्यक्ति अपने प्रयत्न से अपना भोजन जुटाए। कुटीर एवं केंद्रीकृत उद्योग की व्यवस्था करे। अपनी योजना के द्वारा सर्वोदय हमें इस आदर्श को प्राप्त करने की क्षमता प्रदान करता है। वर्तमान समय काल परिस्थितियों में भयावह आर्थिक स्थिति सुधारने का एकमात्र सहारा गांधीजी और विनोबा जी के बताए हुए स्वरोजगार स्वावलंबन ही है।

 

संत विनोबा भावे खादी को सर्वोदय समाज और स्वराज शक्ति का सबसे असरकारक साधन मानते थे। लोक कल्याण के लिए खादी ग्राम उद्योग गांधी जी के दिखाए पथ को सबसे सुगम रास्ता माना है। गांव में चरखा चले, गांव में कपास पैदा हो और गांव में ही बनाई हो कपड़े पहनने की व्यवस्था होनी चाहिए। वर्तमान समय काल परिस्थितियों में अच्छे मिलों के बने रेमंड्स ग्वालियर शूटिंग का कपड़ा सस्ता है। खादी उससे कई गुनी महंगी है। सूत कपास चरखा अब तो गांधी आश्रम गांधी भवन में भी नहीं है। 1 या2 नग केवल शो पीस के लिए रखे हैं। कहीं पर खादी का उत्पादन नहीं हुआ है। जहां खादी ग्राम उद्योग चल रहे हैंंं। सरकारी सहायता प्राप्त करने के लि। खादी पहनने का मतलब यह कि स्वदेशी वस्तु पहनना। आज कपड़ा मिल स्वदेशी है। इन सब बातों पर सर्व सेवा संघ सर्वोदय मंडल को विचार करना चाहिए। खादी का कपड़ा इतना महंगा हो गया है कि आम आदमी की पहुंच से बाहर है। समाजवादी चिंतक विचारक डॉ राम मनोहर लोहिया ने गांधीवाद को तीन भागों में बांटा था। पहला खांटी गांधीवादी, दूसरा सरकारी गांधीवादी और तीसरा कुजात गांधीवादी। महात्मा गांधी की बात को मानने वाले गांधी के सिद्धांत और आचरण पर चलने वाले खांटी गांधीवादी, गैर लाइसेंसी गांधीवादी डॉ राम मनोहर लोहिया स्वयं को मानते थे। महात्मा गांधी के सच्चे अनुयाई गांधीवादी विचारधारा को मानने वाले गैर सरकारी संरक्षण प्राप्त और गैर लाइसेंसी संत विनोबा भावे गांधीवाद के सच्चे अनुयाई थे। विनोबा भावे ने  हरिजनोहार तेलगाना में साम्यवादी प्रभाव के विरुद्ध भूमिहीन किसानों की समस्या का निवारण, नई तमिल राष्ट्रभाषा, हिंदी का प्रचार-प्रसार, भूदान यज्ञ कांचन, मुक्ति ग्रामदान, संपत्ति दान, गोवध निषेध आदि मानवोचित कार्य विनोबा भावे के अथक परिश्रम और त्याग परिणाम है।

आचार्य विनोबा भावे ने जनता की स्वतंत्रता पर अधिक बल दिया। उन्होंने सत्ता को जनसेवा में प्रयुक्त किए जाने के उद्देश के साथ-साथ व्यक्तियों को सवल और स्वावलंबी बनाना आवश्यक माना। वे जनता को स्वावलंबी बनाकर उसे अपनी शक्ति के प्रति जागृत करना चाहते थे। दक्ष व्यक्तियों द्वारा  शुभेच्छा से जनता की सहायता करने पर बल देते हैं। जनता को स्वयं अपने पैरों पर खड़ा होना। व्यक्ति अपनी संपूर्ण शक्ति योगिता समाज के हित में प्रयुक्त करें और समाज उस व्यक्ति के भरण पोषण का उत्तर दायित्व निभाए। आर्थिक समानता की अवधारणा को विनोबा जी ने अत्याधिक महत्व दिया। आर्थिक समानता के बिना अच्छे समाज की कल्पना करना निरर्थक है। आवश्यकता अथवा इच्छाओं को बहुगुणित करने के स्थान पर उनका परिसीमन करना चाहिए ताकि समाज में समन्वय एवं संतोष का वातावरण बने। प्रकृति ने हमारी आवश्यकता के अनुरूप सब वस्तुओं को उत्पन्न किया है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को केवल अपनी आवश्यकता अनुसार उपयोग किया जाए। संगह ना  किया जाए तो विश्व में कोई व्यक्ति अन्य प्रकार से पीड़ित नहीं रह सकता अपनी आवश्यकता से अधिक अधिग्रहण अपराध है चोरी है। विनोबा भावे गणितीय समानता के स्थान पर औचित्य पूर्ण अथवा ऐसी समानता चाहते थे जैसे कि हाथ के पांच उंगलियां होती हैं। पांचों बराबर ना होते हुए भी और सहयोग से एक साथ मिलकर अनेक कार्य संपादित करती हैं। उंगलियों में अंतर इतना अधिक नहीं की छोटी उंगली 1 इंच लंबी हो और सबसे बड़ी 1 फुट लंबी विनोबा जी के इस दृष्टांत का तात्पर्य है कि पूर्ण समानता असाध्य है तो असंतुलित असमानता भी हानिप्रद मानी जानी चाहिए। वे समानता की विभेदक समानता भी कह सकते हैं। विनोबा जी ने गांधी जी के रोटी रोजी सिद्धांत का पूर्ण समर्थन किया।

जहां तक सर्वोदय तथा समाजवाद के मध्य की संबंध की बात है तो कुछ लोगों की मान्‍यता यह है कि ना केवल सर्वोदय की भावना समाजवादी है बल्कि यह समाजवाद का सर्वोत्तम रूप है। किंतु दूसरी ओर जो लोग कार्ल मार्क्स से प्रेरणा प्राप्त करते हैं और वर्ग संघर्ष को समाजवाद का मूल तत्व समझते हैं।  लेकिन एक जीवन पद्धति तथा सामाजिक संगठन के सिद्धांत के रूप में समाजवाद का वर्ग संघर्ष कोई अंग नहीं है। यह तो उस पद्धति का अंग है जिसके द्वारा मार्क्स और उनके अनुयायियों के मतानुसार समाजवादी समाज की स्थापना अपरिहार्य है। यदि समाजवाद की स्थापना इसके बिना भी हो सकती है तो वर्ग संघर्ष को समाजवादी जीवन पद्धति का एक अभिन्न अंग नहीं माना जा सकता। सर्वोदय के सिद्धांत का महत्व बात में है कि हमें बिना वर्ग संघर्ष के ही समतावादी समाज के लक्ष्य की ओर अग्रसर करता है। कुटीर उद्योग तथा विकेंद्रीकरण उद्योग भवन था की अपनी योजना के द्वारा सर्वोदय हमेशा आदर्श को प्राप्त करने की क्षमता प्रदान करता है सर्वोदय में समानता स्वतंत्रता भाई बंधुओं को प्राप्त किया जाता है और मानव व्यक्तित्व के विकास से कोई खतरा नहीं रहता है इसका सबसे बड़ा गुनाह है कि यही एक अच्छे समाज का मापदंड मनुष्य को बनाता है इसमें व्यक्ति की गरिमा में विकास विश्वास और समाज सेवा पर आग्रह का सम्मिश्रण है। यह वर्तमान व्यवस्था को नई सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन करने के लिए आध्यात्मिक साधनों के प्रयोग पर बल देता है। सर्वोदय समाज सच्चे अर्थों में समाजवादी है। क्योंकि इसका मूल प्रेम और भाईचारे में है और प्रत्येक के लिए समानता और स्वतंत्रता चाहता है। भूदान आंदोलन के माध्यम से लाखों-करोड़ों एकड़ जमीन जमीदारों से दान में लेकर गरीबों को बांटी गई। बुंदेलखंड चंबल में डाकू समस्या का उन्मूलन हुआ।

 

भूदान यज्ञ के प्रणेता भारत रत्न विनोबा भावे 

गोपाल राठी, पिपरिया:

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी कहे जाने वाले आचार्य विनोबा भावे मूलत: एक सामाजिक विचारक थे, जिन्होंने भूदान आंदोलन के जरिए समाज में भूस्वामियों और भूमिहीनों के बीच की गहरी खाई को पाटने का एक अनूठा प्रयास किया। विनोबा भावे अपने युवाकाल में ही महात्मा गांधी के समीप आ गए थे। विनोबा को गांधी की सादगी ने जहां मोह लिया, वहीं राष्ट्रपिता ने विनोबा के भीतर एक विचारक और आध्यात्मिक व्यक्तित्व के लक्षण देखे। इसके बाद विनोबा ने आजादी के आंदोलन के साथ-साथ महात्मा गांधी के सामाजिक कार्यो में सक्रियता से भाग लिया। भूदान आंदोलन की चर्चा करते हुए गांधीवादी आर्यभूषण भारद्वाज ने बताया कि विनोबा इसे आंदोलन न कहकर यज्ञ कहना पसंद करते थे। उन्होंने कहा कि आंदोलन में भागीदारी करनी पड़ती है जबकि यज्ञ में आहूति देनी पड़ती है। लिहाजा भूदान में अधिक भूमि रखने वाले भूस्वामियों को अपनी भूमि की आहूति देनी पड़ती थी। विनोबा के साथ जुड़े रहे भारद्वाज ने बताया कि भावे एक स्वतंत्र विचारक थे। उन्होंने कई विषयों पर गांधी से हटकर स्वतंत्र चिंतन किया और उनका चिंतन आकर्षक होने के साथ-साथ व्यावहारिक भी था। विनोबा का जन्म 11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के एक गांव में हुआ। शुरुआती शिक्षा के बाद वह संस्कृत के अध्ययन के लिए ज्ञान नगरी काशी गए।

 

काशी में उन्होंने समाचारपत्रों में महात्मा गांधी का बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दिया गया भाषण पढ़ा। इस भाषण ने विनोबा के जीवन की दिशा बदल दी क्योंकि इससे पहले वह महात्मा बनने के लिए हिमालय या क्रांतिकारी बनने के लिए बंगाल जाने वाले थे। उन्होंने पत्र लिखकर महात्मा गांधी से मिलने का समय मांगा। महात्मा गांधी से पहली ही मुलाकात के बाद दोनों का गहरा संबंध जुड़ गया। बापू ने उन्हें अपने वर्धा आश्रम का जिम्मा सौंप दिया। उन्होंने गांधी दर्शन के साथ तमाम प्रयोग किए। इस दौरान उनकी आध्यात्मिक साधना भी चलती रही। देश की आजादी के आंदोलन में विनोबा कई बार जेल गए। 1940 में महात्मा गांधी ने उन्हें पहला वैयक्तिक सत्याग्रही घोषित किया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने धूलिया जेल में गीता पर मराठी में लिखी पुस्तक ‘गीताई’ को अंतिम रूप दिया। इसी प्रकार विभिन्न जेलों में उन्होंने अपनी कई पुस्तकों की रचना की जिनमें ‘स्वराज्य शास्त्र’, ‘स्थितप्रज्ञ दर्शन’ शामिल हैं। विनोबा स्वयं कई भाषाओं के न केवल ज्ञाता थे बल्कि वह लोगों को भी कई भारतीय भाषाएं सीखने के लिए प्रेरित करते थे।विनोबा के नेतृत्व में तेलंगाना आंदोलन के दौरान क्षेत्र की एक हरिजन बस्ती में भूदान आंदोलन की नींव पड़ी। भूमिहीन मजदूरों की समस्या के हल के रूप में भूदान आंदोलन की लोकप्रियता पूरे देश में जल्द ही फैलने लगी। इस आंदोलन के तहत उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, तमिलनाडु, केरल आदि राज्यों में कई भूमि स्वामियों ने अपनी भूमि दान की। विनोबा के व्यक्तित्व का एक अन्य बड़ा पक्ष उनकी पदयात्राएं थी। उन्होंने लगातार 13 वर्ष पूरे भारत की पदयात्राएं की। विनोबा ने चंबल घाटी में दस्यु समस्याओं को दूर करने के लिए दस्यु उन्मूलन प्रयासों में भी सक्रियता से योगदान दिया।
विनोबा ने 25 दिसंबर 1974 से अगले एक वर्ष तक मौन व्रत रखा था। इसी दौरान देश में आपातकाल लगाया गया था। मौन रहते हुए विनोबा ने इसे ‘अनुशासन पर्व’ की संज्ञा दी थी। इसके कारण विनोबा राजनीतिक विवाद में आ गए। उनका निधन 15 नवंबर 1982 को हुआ। विनोबा को 1958 में प्रथम मैग्सायसाय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से 1983 में मरणोपरांत सम्मानित किया। जय जगत l

(लेखक कैलाश रावत मध्य प्रदेश के जिला निवाड़ी के निवासी हैं।  आचार्य कुल के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव हैं। जबकि गोपाल राठी समाजवादी चिंतक हैं।)

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