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सरकार के निर्देशों का पालन करने में बस संचालकों को हो रहा दोहरा नुकसान

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विवेक आर्यन, रांची : 
बस किराया कम करने का झारखंड सरकार का निर्देश बस संचालकों पर भारी पड़ रहा है। यात्रियों की कम संख्या और बढ़े हुए डीजल के दाम के कारण उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है। यही वजह है कि राजधानी के बस स्टैंड में सरकारी निर्देशों का पालन पूरी तरह नहीं हो पा रहा है। लगभग सभी बस संचालकों ने लॉकडाउन के दौरान बढ़े हुए दर को कम तो किया है, लेकिन कई संचालक ऐसे भी हैं, जो सामान्य दर से ज्यादा भाड़ा ले रहे हैं। रविवार को द फॉलोअप की ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान संचालकों ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उनके नुकसान की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। बता दें कि झारखंड सराकर ने शुक्रवार को निर्देश देते हुए कहा था, कि बस यात्रियों से वही भाड़ा लिया जाएगा, जो लॉकडाउन के पहले लिया जाता था। इसके लिए सरकार ने बकायदा भाड़े की सूची भी जारी की है। 

आठ महीनों में 15 रुपये बढ़े हैं डीजल के दाम – 
बस संचालकों ने बताया कि मार्च के पहले डीजल की कीमत 60 रुपये प्रति लीटर के आस-पास थी। लेकिन आज डीजल 75 रुपये प्रति लीटर के पार है। समझाते हुए उन्होंने कहा कि अगर रांची से कोडरमा जाने में पहले 6 हजार रुपये का डीजल जलता था, तो अब 9 हजार रूपये का जल रहा है। इसके अलावा पहले जहां सीट से अधिक सवारी होते थे, आज 10-12 सवारी ही आते हैं। लोकल पैसेंजर न के बराबर हैं। कंडक्टर को यह भी उम्मीद नहीं है कि रास्ते में कोई सवारी मिल जाएगा। 

लॉकडाउन की अपेक्षा कम हुआ भाड़ा, लेकिन उतना नहीं, जितना सरकार का निर्देश – 
यात्रियों से बातचीत करने और टिकट देखने पर पता चला कि लॉकडाउन में जितना भाड़ा बढ़ा था, उससे कम तो किया गया है, लेकिन फिर भी सामान्य भाड़े की अपेक्षा अभी भी ज्यादा पैसे लिए जा रहे हैं। हालांकि यह बस संचालक के निर्णय के आधार पर अलग-अलग है। 

केस 1 – 
रांची से कोडरमा जा रही एक बस में 4 लोग बैठे हुए थे। चालक ने बताया कि वे कई दिनों से सिर्फ 10 या 12 सवारी लेकर जा रहे हैं, जबकि उनके बस में 50 से अधिक लोगों के बैठने के लिए सीटें हैं। 10 लोगों से अगर सामान्य भाड़ा लिया जाए, तो बस संचालन का आधा खर्च भी नहीं निकल पाएगा। यह भी कहा कि बस मालिक को नुकसान होने के कारण उन्हें भी कम पैसे मिल रहे हैं। लेकिन उनके पास काम करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। 

केस 2 – 
रांची से गया जा रही बस के कंडक्टर नें बताया कि वे एक भी रुपये ज्यादा नहीं ले रहे हैं। लेकिन इससे उन्हें काफी नुकसान हो रहा है। ट्रेन नहीं चलने के कारण यात्री कम आ रहे हैं। भाड़ा कम करने के पहले इन बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए था। बस स्टैंड से बस के निकल जाने के बाद भी उसमें महज 5 लोग बैठे थे। 

केस 3 - 
सिमडेगा जाने वाली बस के लिए टिकट काट रहे व्यक्ति ने बताया कि सामान्य तौर पर भी छह महीने में भाड़ा बढ़ जाता है। ऐसे में आठ महीने पुराना भाड़ा लेना संभव नहीं है। इन आठ महीनों में डीजल के दाम भी बढ़े हैं। उन्होंने बताया कि उनका नुकसान ना हो तो वे खुद भी अधिक भाड़ा नहीं लेंगे।