भारत जैन, दिल्ली:
आज से 45 साल पहले लोकतंत्र की हिमायत करने वालों की सबसे बड़ी शत्रु मानी जाती थी इंदिरा गांधी। आज सब माफ हो गया है। इंदिरा गांधी ने कभी मनमोहन सिंह की तरह यह भी नहीं कहा था कि History will be kinder to me क्योंकि इंदिरा गांधी को मालूम था कि भूल हुई है। वह शर्मिंदा थीं पर यह कबूल करने का नैतिक साहस नहीं था उनमें। आज राजनीति में जो गिरावट हम देख रहे हैं उसकी शुरुआत इंदिरा के शासनकाल में ही हुई थी। पहले तो जिस तरह से उन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया वही गलत था। क्या योग्यता थी इंदिरा गांधी की जब उन्हें कांग्रेस के सिंडीकेट ने प्रधानमंत्री के पद के लिए चुना ? कोई चुनाव नहीं लड़ा था उन्होंने खुद स्वयं भी। बस नेहरु की बेटी और ' गूंगी गुड़िया ' ( डॉक्टर लोहिया के शब्दों में ) जो उनकी भरी चाबी से चलेगी , यही सोच थी सिंडिकेट की। उसके अलावा कोई और योग्यता थी उनमें ? दिखी तो नहीं थी पहले!
बाद में दिखी थी लड़ने की योग्यता। पार्टी के वरिष्ठ सिपहसलार हों, विरोधी दल हों या पाकिस्तान हो। सबसे बेखौफ लड़ने का माद्दा था उनमें। पाकिस्तान के विभाजन पर ही टिकी है उनकी महानता ! गांधी के देश में युद्ध में विजय पर टिकी है महानता ? वह युद्ध भारत की तो मजबूरी थी पर इंदिरा गांधी के के लिए मौका था अपने पिच पर अपना हुनर दिखाने का। इसके अलावा कांग्रेस पार्टी को परिवार की पूंजी बनाने वाली इंदिरा गांधी ही थी जो अंत में कांग्रेस के कमजोर होने का कारण बनीं। आज जो दुर्दशा है देश की कांग्रेस के कमजोर होने के कारण उसकी नींव तभी रखी गई थी। Committed Judiciary ( प्रतिबद्ध न्यायपालिका ) की बात तभी शुरू हुई थी। आज बात नहीं है पर चुपके- चुपके हो रहा है सब कुछ। इंदिरा गांधी ही थी जिन्होंने पार्टी में हाईकमान कल्चर को स्थापित किया। पार्टी में एक नेता की निरंकुशता और देश में निरंकुशता बहुत दूरी नहीं होती यह हमने तब भी देखा था और आज भी देख रहे हैं।
बंगाल में राजनीतिक हिंसा का सिलसिला उन्हीं के समय में शुरू हुआ था जब सिद्धार्थ शंकर रे की सरकार ने नक्सलवादियों के खिलाफ जमकर हिंसा की थी। यह सिलसिला आज तक चल रहा है- चुनावों में जितनी हिंसा बंगाल में होती है उतनी देश में कहीं नहीं होती परंपरा बन गई है यह । कुछ लोग पब्लिक सैक्टर को मजबूती देने का श्रेय इंदिरा गांधी को देते हैं। बैंकों का राष्ट्रीयकरण उन्होंने ही किया था। पर यह केवल एक राजनीतिक खेल था गरीबों का मसीहा बनने का। कोई वामपंथी सोच नहीं थी। कांग्रेस विभाजन के बाद वामपंथियों के समर्थन से सरकार भी चलाई एक साल से अधिक इसी छवि के सहारे। उनके समय में ' कोटा- परमिट- लाइसेंस' राज चरम पर था। जमकर भ्रष्टाचार हो रहा था। अंबानी जैसे पूंजीपति उसी युग की देन हैं । 1971 के लोकसभा और 1972 के विधानसभा चुनाव में जबरदस्त सफलता के बाद देश में कुछ ही समय में अव्यवस्था इसी सिस्टम के गलत परिणामों के कारण फैली थी । 1991 में आर्थिक संकट की जो स्थिति बनी उसी नीति का दीर्घकालीन परिणाम था। इसी कारण पूंजीवादी सोच और बाजारीकरण को मौका मिला देश में। कहा जाता है कि नेहरू - इंदिरा के युग में स्थापित पब्लिक सैक्टर को बेचा जा रहा है। बात सही है। पर उन्हें खोखला करने का और अकुशल करने का कारण-भ्रष्टाचार- उसी समय तेजी से विकसित हुआ था। घाटे में जाता देख कर बेचने का सिलसिलातो 1991 में नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की नीति थी उस समय के आर्थिक संकट के कारण। आज तक चल रही है- बस एयरपोर्ट, बंदरगाह और रेलवे स्टेशन नहीं बेचे जा रहे थे, जो आज हो रहा है। पर बेचने की शुरूआत की स्थिति बनी इंदिरा गांधी के निष्फल और भ्रष्ट तंत्र के कारण। इंदिरा गांधी समाजवादी नहीं थी केवल अवसरवादी थीं।
दूसरे दलों की सरकार को राष्ट्रपति शासन लगा कर या किसी और तरीके से गिराने का सिलसिला भी तभी शुरू हुआ था। आंध्र प्रदेश में एन टी रामा राव और कश्मीर में फारूक अब्दुल्लाह की सरकार को गिराने का काम इंदिरा गांधी के शासन के अंतिम समय में हुआ। कश्मीर में लोगों के मन में लोकतंत्र और भारत के प्रति अविश्वास की शुरुआत यहीं से हुई थी जिसके परिणाम हम आज तक भुगत रहे हैं। पंजाब में अकाली दल को कमजोर करने के लिए भिंडरांवाले और जैल सिंह को आगे लाना उन्हीं का दृष्टि दोष था, जिसकी कीमत उनको अपनी जान से भी देनी पड़ी थी। आज केवल भाजपा और संघ को अधिक काला साबित करने के लिए इंदिरा गांधी को महान साबित किया जा रहा है। जो इंदिरा गांधी ने किया वही और संगठित तरीके से आज किया जा रहा है । हिंदुत्व उनके एजेंडे में नहीं था बस और उनके पास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा कोई संगठन नहीं था और ना सोच थी। एक अनाड़ी संजय था जिसकी बेवकूफी से ही उनका 1977 में पतन हुआ । आज कोई संजय नहीं है बल्कि शाह और योगी जैसे शागिर्द हैं मोदी जी के। पर इंदिरा गांधी का महिमामंडन ठीक नहीं है। आज जो कुछ गलत हो रहा है उसका बहुत बड़ा कारण है इंदिरा गांधी स्वयं। इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।
(लेखक गुरुग्राम में रहते हैं। संप्रति स्वतंत्र लेखन।)
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