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रोजगार की तलाश में गये युवक ने दुर्घटना में गंवाया पैर, पत्नी ने भी छोड़ा साथ

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द फॉलोअप टीम, पलामू: 

पलामू जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर पांकी प्रखंड के ताल पंचायत का आबुन गांव की बात कहना जरूरी है। गांव में रोजगार का कोई साधन नहीं है। गांव के युवा यहां से निकल कर बड़े-बड़े महानगरों में रोजगार की तलाश में जाते हैं। इसी गांव से 2013 में दर्जनों युवक रोजगार के लिए गुजरात गये थे जहां एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम मिला।

रोजगार की तलाश में गया युवक दिव्यांग हुआ
युवकों को रोजगार तो मिला लेकिन किसी की जिंदगी खत्म हो गई। एक युवक पूरा अपाहिज हो गया। गुजरात में हाई लेवल ब्रिज का निर्माण करा रही कंपनी का स्लैब टूटकर गिरने से 6 लोगों की मौके पर ही मौ'त हो गई और एक का दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गया।  हालात इतने खराब थे कि इलाज के दौरान पैर का'टना पड़ा। पीड़ित युवक का नाम दिकदार सिंह है। 28 वर्षीय दिकदार सिंह के कंधों पर पत्नी और 3 बेटियों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी है। 

दिकदार को नहीं मिला दिव्यांगता सर्टिफिकेट
मिली जानकारी के मुताबिक दिक़दार सिंह का दिव्यांगता सर्टिफिकेट भी अभी तक नहीं बनाया गया है। इनके साथ काम करने गये इनके बड़े भाई की मौके पर ही मौ'त हो गई थी उनकी विधवा भाभी घर में ही अपने बच्चों का पालन पोषण मजदूरी करके करती है। दुर्घटना में मा'रे गए श्रमिकों के परिजनों को आज तक सरकारी मुआवजा नहीं मिला है। आश्रितों को किसी भी प्रकार की सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला। महिलाएं विधवा पेंशन की आस लगाए हुए है। 

मृतकों के आश्रितों को नहीं मिली सरकारी मदद
आश्रितों ने अब प्रखंड कार्यालय से लेकर मुखिया के घर तक दौड़ लगाते हुए थक हार कर अब उम्मीद ही छोड़ दी है। इनकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस गांव से प्रखंड मुख्यालय की दूरी 20 किलोमीटर है। किसी भी समस्या के लिए प्रखंड मुख्यालय जाने-आने में निर्धन परिवारों का काफी पैसा लगता है। दुर्घटना में घायल होने के बाद 1 साल तक दिकदार गुजरात में ही अपने मालिक के घर में रहा। मालिक ने नौकर रख कर के दिकदार की देखभाल करवाई। दिकदार ने बताया कि वहां उनके जीजा भी काम करते थे। वो अक्सर उनका हालचाल पूछने आते थे। आखिरकार दिकदार ने जीजा से कहा कि उसे घर ले जाये। दिकदार को घर ले आया गया। 

मुआवजे में मिला 1 लाख रुपया इलाज में हुआ खर्च
दिकदार ने बताया कि उसे बतौर मुआवजा 1 लाख रुपया भी मिला था जो इलाज और बच्चों की परवरिश में खत्म हो गया। उनकी पत्नी भी इन्हें छोड़ कर के अपने मायके चली गई है। ससुर का कहना है कि ऐसे दिव्यांग  के साथ मेरी बेटी का जीवन गुजर-बसर कैसे होगा। दिकदार सिंह पर 3 बेटियों का परवरिश का जिम्मा है, लेकिन ससुर का कहना है कि वे उनका पालन-पोषण कर लेंगे लेकिन बेटी को ससुराल नहीं भेजेंगे। दिकदार का कहना है कि बुरे वक़्त में एक पत्नी साथ खड़ी रहती है लेकिन  यहां तो उल्टा हो रहा है। बुरे समय में पत्नी दिव्यांग दीकदार सिंह को छोड़ कर के अपने मायके में रह रही है। पड़ोसियों के द्वारा दिए हुए खाने से दिक़दार सिंह का दिन गुजर रहा है।

पड़ोसियों के भरोसे चल रही है दिकदार की जिंदगी
पड़ोसी सुबह-शाम खाने को दे देते हैं। दिकदार सिंह ने कहा कि किसी भी जनप्रतिनिधि या प्रशासनिक अधिकारी ने उसकी सुध नहीं ली। अगर एक अंत्योदय राशन कार्ड बन जाता तो 35 किलो राशन से खाने का इंतजाम हो जाता। दिव्यांग पेंशन मिल जाता तो दैनिक जरूरतें पूरी हो जाती। एक ट्राई-साइकिल मिल जाता तो आस-पास में जाने में दिक्कत नहीं होती। दिकदार सहित मृ'तकों के आश्रितों को अभी भी सरकारी सहायता का इंतजार है।