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विश्व रेडियो दिवस 2021: वायलिन की धुन से शुरू हुआ था रेडियो, जानें इससे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें

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सूरज ठाकुर, रांची :
13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के तौर पर मनाया जाता है। तकनीक के स्तर पर संचार का पहला आधुनिक साधन रेडियो। इस स्टोरी में आपको बताएंगे कि रेडियो दिवस क्यों मनाया जाता है? पहली बार कब रेडियो दिवस मनाया गया? 13 फरवरी को रेडियो दिवस मनाए जाने के पीछे किन संस्थाओं का योगदान है? रेडियो दिवस मनाए जाने के मायने क्या हैं? इस दिन कौन सी गतिविधियां आयोजित की जाती हैं?

रेडियो से जुड़ी वो यादें जिनमें मुस्कुराने की वजह है
रेडियो, इससे ना जाने कितनी यादें जुड़ी हैं। जनवरी की गुनगुनी धूप में छत पर लेटे-लेटे क्रिकेट कमेंट्री सुनने की यादें। घर की महिलाओं का हर दोपहर सुस्ताते हुए सखी-सहेली सुनने की यादें। घर के वरिष्ठ पुरुषों का समाचार सुनने से जुड़ी यादें। यही नहीं, एक वक्त ऐसा भी था जब पूरा गांव इकट्ठा होकर चौपाल पर रेडियो पर आने वाले नाटक, संगीत और समाचार से संबंधित कार्यक्रम सुनता था। सखी सहेली, कृषि दर्शन, सदाबहार नगमें, जयमाला (जिसका प्रसारण फौजी भाइयों के लिए किया जाता था) राष्ट्रीय और प्रादेशिक समाचार सहित ना जाने कितने ही कार्यक्रम लोगों की यादों में हैं। बीते कई दशकों से रेडियो संचार का सबसे सशक्त माध्यम रहा है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के राष्ट्र के नाम पहले संबोधन, इंदिरा गांधी की हत्या की खबर, पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या जैसे कई एतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है रेडियो। 



वर्तमान में टेलीविजन और स्मार्टफोन के प्रसार ने भले ही रेडियो की उपयोगिता कम की हो लेकिन इसकी प्रासंगिकता आज भी बरकरार है। अंतरिक्ष कार्यक्रम, सैन्य अभियान, किसी आपदा के समय बचाव अभियान या फिर पुलिस व्यवस्था में वायरलेस की सुविधा बताती है कि रेडियो की जरूरत आज भी सशक्त रूप से बनी हुई है। चलिए जानते हैं कि कैसे रेडियो का विकास हुआ और फिर कैसे रेडियो दिवस मनाए जाने की शुरुआत हुई। 

कुछ ऐसे दुनिया में हुई थी रेडियो सेवा की शुरुआत
24 दिसंबर साल 1906 की शाम। कनाडाई वैज्ञानिक रेगिनॉल्ड फेसेंडन ने अपना वॉयलिन बजाया। अटलांटिक महासागर में उस वक्त तैर रहे तमाम जहाजों के रेडियो ऑपरेटरों ने इस संगीत को अपने-अपने रेडियो सेट पर सुना। ये रेडियो प्रसारण की औपचारिक शुरुआत थी। हालांकि अनौपचारिक रूप से रेडियो की शुरुआत जगदीश चंद्र बसु और गुल्येल्मो मार्कोनी ने साल 1900 में ही कर दी थी, लेकिन एक से अधिक व्यक्तियों तक एक साथ संदेश भेजने या ब्रॉडकास्टिंग की शुरुआत 24 दिसंबर 1906 की उस शाम ही हुई थी जब फेसेंडन द्वारा छेड़ी गई वायलिन की धुन अटलांटिक महासागर में तैर रहे जहाजों के रेडियो ऑपरेटर्स ने सुनी थी। ये रेडियो का औपचारिक जन्म था। 



साल 1918 में शुरू किया गया था पहला रेडियो स्टेशन
संगठित रूप से रेडियो सेवा की शुरुआत उस वक्त हुई जब साल 1918 में न्यूयॉर्क के हाईब्रिज इलाके में दुनिया का पहला रेडियो स्टेशन शुरू किया गया। रेडियो स्टेशन की नींव रखने वाले शख्स का नाम था ली द फॉरेस्ट। फॉरेस्ट ने ही साल 1919 में एक और रेडियो स्टेशन की शुरुआत की थी लेकिन, इस समय तक रेडियो सेवा को कानूनी मान्यता नहीं मिली थी। रेडियो को कानूनी मान्यता मिली साल 1920 में। नौसेना के रेडियो विभाग में काम कर चुके फ्रैंक कॉनार्ड ने पहली बार रेडियो स्टेशन शुरू करने की अनुमति हासिल की थी। रेडियो में विज्ञापन चलाने की शुरुआत हुई साल 1923 में।  ये तो हो गया रेडियो का इतिहास। अब जानते हैं कि विश्व रेडियो दिवस मनाने की शुरुआत कब और क्यों हुई?

कुछ यूं हुई थी विश्व रेडियो दिवस मनाने की शुरुआत
विश्व रेडियो दिवस प्रत्येक वर्ष 13 फरवरी को मनाया जाता है। स्पेन रेडियो अकेडमी ने साल 2010 में प्रस्ताव दिया था कि विश्व रेडियो दिवस मनाया जाना चाहिए। साल 2011 में यूनेस्को की महासभा के 36वें सत्र में 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 14 जनवरी 2013 को यूनेस्को की घोषणा को मंजूरी दी। तय किया गया कि प्रत्येक साल 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के तौर पर मनाया जाएगा। प्रत्येक वर्ष 13 फरवरी को यूनेस्को दुनिया भर के ब्रॉडकास्टर्स, संगठनों और रेडियो समुदायों के साथ मिलकर कई तरह की गतिविधियों और कार्यक्रमों का आयोजन करता है। 



इम्पीरियल रेडियो ऑफ इंडिया बना ऑल इंडिया रेडियो
अंत में थोड़ी रोशनी भारत में रेडियो सेवा की स्थिति पर भी डाल लेते हैं। साल 1936 में औपनिवेशिक भारत में सरकारी 'इम्पीरियल रेडियो ऑफ इंडिया' की शुरुआत हुई थी। आजादी के बाद इम्पीरियल रेडियो ऑफ इंडिया 'ऑल इंडिया रेडियो' या 'आकाशवाणी' के नाम से लोकप्रिय हो गया। ताजा स्थिति की बात करें तो भारत में आकाशवाणी के 420 रेडियो स्टेशन हैं। इनकी पहुंच देश के 92 फीसदी इलाके की 99.19 फीसदी आबादी तक है। जानने योग्य बात है कि आकाशवाणी से 23 भाषाओं और 14 बोलियों में पूरे देश में प्रसारण किया जाता है। यही नहीं, भारत में 214 सामुदायिक रेडियो प्रसारण केंद्र भी हैं जिन्हें सामान्यत 'कम्युनिटी रेडियो सर्विस' कहा जाता है। रेडियो संचार का कितना सशक्त माध्यम है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साल 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम के लिए रेडियो को चुना। 



दुनिया में जब संचार के नए उपकरण आ गए हैं। संचार व्यवस्था तीव्र हो चली है, उम्मीद है कि रेडियो आने वाले कई दशकों तक संचार का प्रासंगिक और सशक्त माध्यम बना रहेगा। उम्मीद है कि लोग अब भी पूरे परिवार के साथ बैठकर सदाबहार नगमें सुनेंगे। बिना देखे केवल कमेंट्री के जरिए मैच का आंखों देखा हाल जानेंगे। शोर के इस दौर में सही और सच्ची जानकारी आराम से पा सकेंगे। उम्मीद है कि रेडियो जिंदा रहेगा।