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स्मृति शेष: चंबल को डकैतों से मुक्त कराने वाले भाईजी से 23 साल बाद हुई अंतिम मुलाक़ात

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हर किसी के भाईजी यानी गांधीवादी डॉ. सेलम नंजुंदैय्या सुब्बाराव (7 फ़रवरी 1929-27 अक्टूबर 2021) न जाने कितने लोगों के प्रेरणा स्त्रोत थे। आज 93 साल की उम्र में उनका देहावसान हो गया। पद्मश्री से सम्मानित डॉ. सुब्बाराव को 1995 में राष्ट्रीय युवा परियोजना को राष्ट्रीय युवा पुरस्कार, 2003 में राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, 2006 में 03 जमानालाल बजाज पुरस्कार, 2014 में कर्नाटक सरकार की ओर से महात्मा गांधी प्रेरणा सेवा पुरस्कार और नागपुर में 2014 में ही राष्ट्रीय सद्भावना एकता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। डॉ. सुब्बाराव ने ही जौरा में गांधी सेवा आश्रम की नींव रखी थी, जो अब श्योपुर तक गरीब व जरूरतमंदों से लेकर कुपोषित बच्चों के लिए काम कर रहा है। द फॉलोअप की ओर से उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। पढ़िये युवा पत्रकार-लेखक मुहम्मद जाकिर हुसैन का संस्मरण, जब उनकी आखिरी मुलाक़ात भाईजी से  6 जनवरी 2018 को दुर्ग रेलवे स्टेशन पर हुई थी।-संपादक

 

मुहम्मद जाकिर हुसैन, भिलाई:

मैं जिनके बगल में खड़ा हूं वो हैं 89 साल के नौजवान डॉ. सेलम नंजुंदैय्या सुब्बाराव (Subba Rao Salem Nanjundiah)। पूरी दुनिया में इन्हें भाईजी के नाम से जाना जाता है। गांधीवाद के आखिरी जीवंत प्रतीकों में से एक हैं भाईजी। उम्र के इस पड़ाव में भी नौजवानों को मात देने वाली ऊर्जा के चलते राष्ट्रीय युवा योजना (NYP) के तहत देश भर में राष्ट्रीय एकता शिविर लगातार आयोजित करते रहते हैं। अभी छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में शिविर लगना है, लिहाजा मुंबई मेल से भाई जी रायगढ़ जा रहे थे। एनवाईपी के सदस्य रघुनंदन पंडा (Raghunandan Panda) को यह खबर थी, लिहाजा उन्होंने मुझे फोन किया तो मैं भी भाई जी से मिलने दुर्ग रेलवे स्टेशन पहुंच गया। वहां देखा तो भिलाई स्टील प्लांट के सीईओ एम. रवि भी मौजूद हैं। ट्रेन पहुंचने में वक्त था, लिहाजा सीईओ एम. रवि से अनौपचारिक चर्चा चल रही थी। उन्होंने बताया शायद 1977 की बात है, जब भोपाल के बरखेड़ा स्थित विक्रम हायर सेकंडरी स्कूल में पढऩे के दौरान डॉ. सुब्बाराव का प्रेरक उद्बोधन सुना था। तब से उनसे मिलने की इच्छा थी, जो आज पूरी हो रही है। 


ट्रेन पहुंची तो खादी की बुश्शर्ट-हाफ पैंट में अपनी चिर-परिचित मुस्कान के साथ भाई जी नीचे उतरे। करीब 10 मिनट उनसे बातचीत हुई। सीईओ रवि ने उन्हें भिलाई आने का न्यौता भी दिया। हम लोग उनसे मिल कर रवाना हो रहे थे कि डॉ. डीएन शर्मा (Devendra Nath Sharma) भी दिख गए। ट्रेन छूट चुकी थी, इसलिए डॉ. शर्मा ने फोन पर भाई जी से बात कर शुभकामनाएं दे दी। सीईओ रवि जहां 41 साल बाद भाईजी से मिल रहे थे तो मैं करीब 23 साल बाद उनसे रूबरू हो रहा था। 1995 में कल्याण कॉलेज सेक्टर-7 से एक ग्रुप का चयन इंफाल (मणिपुर) में आयोजित राष्ट्रीय एकता शिविर के लिए हुआ था। जिसमें मेरे अलावा दिनेश ठाकुर (Dinesh Singh), एलके त्रिपाठी (Laddu Keshwer Tripathy), गोपेंद्र कोसरे(Gopendra Singh Kosare) और रघुनंदन पंडा भी थे। तब मैनें इंफाल में भाई जी का प्रेरक उद्बोधन सुना था। उसके बाद कल रेलवे स्टेशन में उनसे मुलाकात हुई। वैसे तो भाईजी की शख्सियत से बहुत से लोग परिचित हैं, लेकिन जिन्हें नहीं मालूम है उनके लिए बता दूं कि डॉ. सुब्बाराव स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, गांधीवादी विचारक और युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत हैं। 

इंटरनेट पर विश्व जागृति मिशन के निदेशक राम महेश मिश्र का एक आलेख देख रहा था,जिसमें उन्होंने लिखा है-कांग्रेस ने दो बार चाहा कि डॉ. सुब्बाराव को देश का राष्ट्रपति बनाया जाए। लेकिन उन्होंने साफ़  शब्दों में इंकार कर दिया। डॉ. सुब्बाराव के बारे में मेरे पत्रकार साथी विद्युत प्रकाश मौर्य (Vidyut P Maurya) ने अपने ब्लॉग में काफी विस्तार से जानकारी दी है। श्री मौर्य लिखते हैं-उनका सारा जीवन नौजवानों को राष्ट्रीयता, भारतीय संस्कृति, सर्वधर्म समभाव और सामाजिक उत्तरदायित्वों की ओर जोडऩे में बीत रहा है। वे सही मायने में एक मोटिवेटर हैं। उनकी आवाज में जादू है। शास्त्रीय संगीत में सिद्ध हैं। कई भाषाओं में प्रेरक गीत गाते हैं। उनके चेहरे में एक आभा मंडल है। जो एक बार मिलता है उनका हो जाता है। उन्हें कभी भूल नहीं पाता। कई पीढिय़ों के लाखों लोगों ने उनसे प्रेरणा ली है। कोई स्थायी निवास नहीं है। सालों वे घूमते रहते हैं। देश के कोने कोने में राष्ट्रीय एकता व सांप्रदायिक सद्भावना के शिविर लगाते रहते हैं। 


डॉ. सुब्बाराव की भूमिका चंबल घाटी में डाकूओं के आत्मसमर्पण कराने में भी रही है। उन्होंने डाकुओं से कई बार जंगल में जाकर मुलाकात की। अपने प्रिय भजन आया हूं दरबार में तेरे... गा कर डाकुओं का दिल जीता। उनके द्वारा स्थापित महात्मा गांधी सेवा आश्रम जौरा मुरैना (मप्र) में ही लोकनायक जय प्रकाश नारायण के समक्ष माधो सिंह, मोहर सिंह सहित कई सौ डाकुओं ने आत्मसमर्पण किया था। डॉ. सुब्बाराव का आश्रम इन डाकुओं के परिजनों को रोजगार देने के लिए कई दशक से खादी और ग्रामोद्योग से जुड़ी परियोजनाएं चला रहा है। विदेशों में भी डॉ. सुब्बाराव गांधीवाद का प्रसार-प्रचार करने में उम्र के इस पड़ाव मे भी सक्रिय रहते हैं। साल के कुछ महीने डॉ. सुब्बाराव विदेश में होते हैं। वहां भी कैंप लगाते हैं, खासकर अप्रवासी भारतीय परिवारों के युवाओं के बीच। इस क्रम में वे हर साल अमेरिका, जर्मनी, जापान, स्विटजरलैंड जैसे देशों की यात्राएं करते हैं। पुरस्कार-सम्मान से दूर रहने वाले व्यक्ति डॉ. सुब्बाराव ने पद्म पुरस्कारों के लिए बड़ी सदाशयता से ना कर दी थी। उन्हें जिंदाबाद किए जाने से सख्त विरोध है। वे कहते हैं जो जिंदा है उसका क्या जिंदाबाद। 

 


फोटो में रघुनंदन पंडा, बीएसपी के सीईओ एम. रवि, डॉ. सुब्बाराव और लेखक

 

(लेखक-पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन भिलाई में रहते हैं। इस्पात नगरी भिलाई के इतिहास पर उनकी बहुचर्चित किताब 'वोल्गा से शिवनाथ तक' हाल ही में प्रकाशित है।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। सहमति के विवेक के साथ असहमति के साहस का भी हम सम्मान करते हैं।