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Ground Report: कहां गया 200 करोड़ का पेयजल फंड! आज भी 'डाढ़ी का गंदा पानी' पीते हैं गढ़ाटोली के लोग

द फॉलोअप टीम, रांची: 

रिपोर्ट: सूरज ठाकुर/ऋषभ गौतम

हम लोग कभी चापाकल नहीं देखे हैं सर। गांव में कुआं भी नहीं है। कई बार आवेदन दिए लेकिन चापाकल भी नहीं लगा। क्या करें। डाढ़ी का पानी पीना पड़ता है। पानी गंदा है। इसके कपड़ा से छानते हैं लेकिन उससे क्या होगा। गर्म करके पीते हैं लेकिन हमेशा ऐसा करना संभव नहीं होता। इसी पानी से खाना-पीना बनता है। इसी को पीते हैं। नहाने के काम में भी यही पानी आता है। बोल-बोल के थक गए लेकिन कोई नहीं सुनता है। कुछ मदद मिल जाएगा तो अच्छा होगा। 

पानी लाने के लिए 2 किमी दूर जाना पड़ता है
ये कहना था गीता देवी का। गीता देवी सुबह उठती हैं और सबसे पहले देकची (पानी भरने का बर्तन) लेकर खेतों के बीच बने डाढ़ी से पानी लेने जाती है। इसके लिए गीता को कम से कम 2 किमी का लंबा सफर तय करना पड़ता है। द फॉलोअप की टीम भी वहां पहुंची। गांव के बाहर खेतों के बीच बने डाढ़ी पर पहुंचे तो देखा गीता देवी जैसी कई अन्य महिलाएं वहां पानी लेने के लिए आई हैं। देखकर हैरानी हुई कि कई बुजुर्ग महिलाएं भी पानी लेने पहुंची थी। हमने वहां महिलाओं से बात की। सुखमनी देवी नाम की महिला ने बताया कि पूरे दिन में कम से कम 3 बार यहां पानी लेने आना पड़ता है। इसी पानी का इस्तेमाल पीने के लिए होता है। खाना भी इसी पानी से बनता है। 

खेतों के बीच बना अस्थायी कुआं होता है डाढ़ी
डाढ़ी दरअसल, खेतों के बीच बना अस्थायी कुएं जैसा होता है जिसकी गहराई ज्यादा नहीं होती। गांव में बनी ये डाढ़ी पगडंडी के नीचे बनी थी। किनारों को चट्टानों से बांधा गया था जिसमें नमी की वजह से काई जम गई है। चट्टानों के बीच खर-पतवार भी उगा है। पानी में पत्तियां गिरकर सड़ रही थी। चूंकि, डाढ़ी नीचे खेत में बनी है और मेंड़ या पगडंडी ऊपर। इस समय बारिश का मौसम है। जब भी बरसात होती है तो मेंड़ के ऊपर से सारा गंदा पानी डाढ़ी में चला जाता है। महिलाएं उसी से पानी ले रही थीं। देखकर हैरानी हुई की गांव में लोग ऐसे हालात में जी रहे हैं। 

रांची से महज 20 किमी दूर पेयजल की सुविधा नहीं
गौरतलब है कि इस गांव का नाम गढ़ाटोली है। गढ़ाटोली गांव रांची जिला मुख्यालय से महज 20 किमी दूर नामकुम प्रखंड के सिलवई पंचायत के अंतर्गत आता है। सिलवई पंचायत के अंतर्गत गढ़ाटोली, सीसीपीढ़ी और पाहनटोली जैसे तकरीबन एक दर्जन से ज्यादा गांव है। इनमें से तकरीबन आधा दर्जन गांव में पेजयल की समुचित सुविधा नहीं है। गढ़ाटोली में 2 टोला है। नीचे गढ़ाटोली और ऊपर गढ़ाटोली। गांव में 2 डाढ़ी है और इसी से तकरीबन 1 हजार लोगों की आबादी की प्यास बुझती है। गांव वालों ने बताया कि, कभी-कभी तो लगता है कि हम इस देश और राज्य का हिस्सा हैं भी की नहीं। 

बुजुर्ग महिलाओं को पानी लाते देख घबराहट होगी
हमने पानी लेने आई इतवारी देवी नाम की बुजुर्ग महिला से बात की। इतवारी 2 देकची लेकर पानी लेने पहुंची थी। उनकी उम्र काफी ज्यादा है। पानी भरते हुए उनके हाथ कांप रहे थे। डाढ़ी से पानी भरने के बाद उनको चट्टानों से बनी पगडंडी के सहारे ऊपर मेंड़ तक आना था। उनकी हालत देख दिल घबरा रहा था। हमें लगा कि वो कैसे 2 देकची पानी लेकर ऊपर चढ़ सकेंगी। आगे 2 किमी का सफर भी तय करना था। इतवारी देवी ने हमें बताया कि घर के पुरुष काम पर गए हैं। बारिश का मौसम है इसलिए बच्चों को पानी लेने नहीं भेजती, कोई हादसा ना हो जाये। इतवारी के अलावा कई और भी बुजुर्ग महिलाएं पानी लेने पहुंची थी। राज्य गठन के 20 साल बाद ये हालत है। 

पुलिया नहीं होने की वजह से गांव में चापाकल नहीं
गांव की एक अन्य महिला सुनीता देवी ने बताया कि उनको गांव में रहते हुए तकरीबन 35 साल हो गए। तब से ऐसा ही हाल है। पूरा गांव दशकों से डाढ़ी का ही पानी पीता है। सुनीता ने बताया कि इसकी सबसे बड़ी वजह संपर्क का अभाव है। दरअसल, गढ़ाटोली सहित तकरीबन आधा दर्जन गांवों तक जाने के लिए एक नाला पार करना पड़ता है। इस नाले का नाम गूंगा नाला है। इस नाले को पार करने का मौजूदा उपाय जोखिम ही है क्योंकि इसे पैदल पार करना पड़ता है। बारिश में गांवों का संपर्क मुख्य सड़क से कट जाता है। सुनीता कहती है कि कई बार चापाकल और कुएं की मांग की गई है लेकिन नाले में पुलिया नहीं होने की वजह से पेयजल की व्यवस्था नहीं हो सकी। चापाकल के लिए बोरिंग करने वाले वाहन को गांव में जाना होगा। कुआं निर्माण के लिए भी सीमेंट, ईंट, रेत और छड़ की जरूरत है जो ट्रकों के जरिए ही वहां तक पहुंचाया जा सकता है। अब नाली में पुलिया ही नहीं बन सकी तो चापाकल भी नहीं बन रहा है। 

जन-प्रतिनिधि और प्रशासन ने नहीं सुनी फरियाद
ग्रामीण भुवनेश्वर ने बताया कि पुलिया और पेयजल की सुविधा की मांग को लेकर मुखिया, प्रखंड विकास पदाधिकारी और विधायक को कई बार आवेदन दिया जा चुका है। तकरीबन छह माह पूर्व सड़क निर्माण के लिए जमीन की नापी भी की गई थी लेकिन अभी तक काम शुरू नहीं हुआ। ग्रामीण मोहन ने बताया कि पहले कोविड का हवाला दिया गया औऱ अब मानसून का बहाना बनाया जा रहा है। हम लोग आवेदन पर आवेदन देते रहते हैं और जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों की तरफ से केवल आश्वासन मिलता है। भुवनेश्वर का कहना है कि डाढ़ी का गंदा पानी पीकर लोग अक्सर बीमार पड़ते हैं। गांव के अधिकांश लोग अक्सर डायरिया, हैजा, जॉंडिस और टाइफाइड जैसी कीटाणु जनित बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। कई लोग त्वचा संबंधी बीमारियों से भी ग्रसित हो जाते हैं। नामकुम स्थित नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र भी 8 किमी दूर है। सड़क नहीं होने की वजह से लोगों को खटिया पर लादकर ले जाना पड़ता है।  

200 करोड़ का फंड लेकिन फिर भी प्यासी आबादी
गौरतलब है आजादी के 74 वर्ष बीत चुके हैं। झारखंड राज्य का निर्माण हुए 20 साल का लंबा वक्त बीत चुका है। विकास के बड़े-बड़े वादे हैं। नया झारखंड बनाने का चुनावी संकल्प भी है। ऐसे में रांची स्थित मुख्यमंत्री आवास से महज 20 किमी दूर एक गांव में लोगों को पीने का शुद्ध पेयजल तक उपलब्ध नहीं है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए झारखंड के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग ने 200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। इसके तहत प्रदेश के प्रत्येक पंचायत में 5-5 चापाकल लगाने की योजना थी। इसी साल फरवरी-मार्च महीने में पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने कहा था कि पंचायतों में चापाकल लगाने का काम जल्दी ही शुरू किया जायेगा। गौरतलब है कि प्रत्येक पंचायत के मुखिया के अधिकार क्षेत्र में 100 चापाकल निर्माण है, बावजूद इसके हजारों की आबादी डाढ़ी के गंदे पानी से प्यास बुझा रही है। इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है।