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रूस की सैर इन वन क्‍लिक-7: कितना बदल सका विभक्‍त USSR को लेनिन के बाद का समय

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सुभाष चन्द्र कुशवाहा, लखनऊ:

रूस की यात्रा से वापस आ गया। बहुत से मित्रों की कुछ जिज्ञासाओं का उत्तर दे पाना सम्भव न था क्योंकि मेरी यात्रा का कार्यक्रम बेहद थकाऊ था। सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक। यात्रा के दौरान, जब गाइड शांत रहते, तभी कुछ लिख पाता था। जितनी भाग-दौड़ 11 दिनों में कर पाया और जितना देख पाया, उसे समेटते हुए कोशिश करूंगा और कुछ जिज्ञासाओं का उत्तर जल्द दे पाऊं। वैसे इतने बड़े मुल्क के लिए महिनों कम पड़ जाएंगे पर अपनी एक सीमा थी। मौसम बेहद प्रतिकूल हो गया था। लगातार बारिश। तेज हवाएं। 3-4 डिग्री सेल्सियस तक तापमान। इस अवधि में मुल्क में बहुत कुछ घटा है। अभी उसी को बाँचने में लगा हूँ।

 

Sergiyev Posad में सुबह-सुबह । शहर जिनके नाम पर है-सेरगिएव का पूरा परिवार.  

रूस में परम्परागत रूप से चाय प्रस्तुत करने का तरीका। केतली को गुड़िया से ढँक कर लाया जाता।

चित्र में चेखव, अपने परिवार के साथ।

चेखव के शयनकक्ष जैसी  घड़ी, टेलीफोन, कुर्सी, समोवर। एक रात उनके द्वारा उपयोग किए गए सामानों, बाथरूम, आदि का उपभोग करने का मौका भी मिला।

Soviet Era Theme Park

 

Vdnhah वदेहा, का निर्माण, स्टालिन का विचार था। 1935 में इसका निर्माण शुरू कराया। 16 राज्यों को गोल्ड मेडल के रूप में दर्शाया गया है।

अलग-अलग राज्यों की पवेलियन चारों ओर बनी हैं। बाद में इसको कलात्मक रूप दिया गया। किसान क्रांति के प्रतीक को आज भी सम्मान प्राप्त है।

 

 आप इसे बाहर से पूरा देख सकते हैं। मैंने एक 13 मिनट का वीडियो बनाया है। इसकी डिजाइन Oltarzhevsky ने की थी।
Formidable and unprecedented in scale, the project of the All-Union Agricultural Exhibition (VSKhV), later renamed VDNKh, was established in 1935. The exhibition was originally supposed to open by the 20th anniversary of the Soviet regime in 1937, and was to last for only 100 days. However, the construction was not completed in time, and the work continued for two more years, while the pavilions were remade to stand for five years (and eventually rebuilt to become permanent).इसे भी पढ़िये:

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(यूपी सरकार की उच्च सेवा से रिटायर्ड अफसर सुभाष चंद्र कुशवाहा लेखक ,इतिहासकार और संस्कृतिकर्मी हैं। आशा, कैद में है जिन्दगी, गांव हुए बेगाने अब (काव्य संग्रह), हाकिम सराय का आखिरी आदमी, बूचड़खाना, होशियारी खटक रही है, लाला हरपाल के जूते और अन्य कहानियां (कहानी संग्रह) और चौरी चौरा विद्रोह और स्वाधीनता आन्दोलन (इतिहास) समेत कई पुस्तकें प्रकाशित। कई पत्रिकाओं और पुस्तकों का संपादन। संप्रति लखनऊ में रहकर स्वतंत्र लेखन। अभी वह रूस की यात्रा पर हैं।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।