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क्या सच ही समुद्र से धरती सबसे पहले झारखंड में ही निकली थी, जानिये इसके राज़

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डॉ. नीतिश प्रियदर्शी, रांची:

झारखण्ड के सिंहभूम में सबसे पहले समुद्र से निकली थी धरती और सबसे पहले सुनामी भी आया था। रहस्यों से भरा हुआ है झारखण्ड।  भूवैज्ञानिक शोध नए-नए परतों को खोल रहा है।  कुछ दिन पहले एक शोध आया की अफ्रीका नहीं झारखण्ड के सिंहभूम में सबसे पहले समुद्र से निकली थी धरती।  इस ताज़ा शोध में उस व्यापक धारणा को चुनौती दी गई जिसमें जलप्रलय के बाद करीब 2.5 अरब साल पहले विभिन्न महाद्वीपों के समुद्र से निकलने के बारे में तमाम दावे किए गए थे।

 

 

ताज़ा शोध में कहा गया है की करीब 3.2 अरब साल पहले धरती पहली बार समुद्र से बाहर निकली थी और जो इलाका सबसे पहले निकला था , वह झारखण्ड का सिंहभूम इलाका हो सकता है। इस शोध में भारत , ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के भूवैज्ञानिक शामिल थे।  वैज्ञानिकों ने पाया की सिंहभूम के बलुआ पत्थर में प्राचीन नदी चैनल , ज्वार भाटा और तट करीब 3.2 अरब साल पुराने होने के भूगर्भीय संकेत मिले हैं। इससे पता चलता है धरती का यही इलाका सबसे पहले समुद्र से बाहर निकला था।

 


मोनाथ विश्वविद्यालय के  प्रमुख शोधकर्ता चौधरी प्रियदर्शी ने कहा की हमने यूरेनियम और छोटे छोटे खनिजों का विश्लेषण करके चट्टानों के उम्र का पता लगाया।  शोधकर्ताओं ने ग्रेनाइट चट्टानों का अध्यन किया जिससे सिंहभूम इलाके की महाद्वीपीय परत बनी  है  और इनका निर्माण व्यापक ज्वालामुखी विस्फोट से हुआ।  ये विस्फोट धरती के अंदर ३५ से ४५ किलोमीटर की गहराई में हुआ। विस्फोट का ये सिलसिला कई हज़ार साल तक जारी रहा।  इसके बाद मैग्मा कठोर हुआ और इस इलाके में एक मोटी महाद्वीपीय परत उभर के सामने आई।  अपनी मोटाई और कम घनत्व के कारण महाद्वीपीय परत समुद्र के पानी के बाहर आ गई।

 

 

वर्ष 2006  में भी  एक शोध आया था की विश्व का पहला भूकंप और  सुनामी झारखण्ड में १६०० मिलियन  वर्ष पहले  आया था।   इस शोध में भारत , पोलैंड और जापान के वैज्ञानिक शामिल थे।  वैज्ञानिकों ने झारखण्ड के चाईबासा फार्मेशन ( Chaibasa Formation) के अवसादी चट्टानों (sedimentary rocks) का विश्लेषण किया था। सिंहभूम की चट्टानें आज भी रहस्य बनी हुई हैं। रांची के आस पास भी प्राचीन समुद्र के अवशेष मिलने की संभावना है।

 

 

( लेखक पर्यावरणविद् हैं। संप्रति रांची विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।