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बिहार विधानसभा चुनाव के साथ जुड़ी है झारखंड की भावी राजनीति, कभी भी हो सकती है चुनाव की तारीख की घोषणा

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गौतम चौधरी 
बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही झारखंड की दो खाली पड़ी सीट पर  उपचुनाव कराए जा सकते हैं। इसके परिणाम पर झारखंड की राजनीति अपना असर छोड़ सकती है। सूत्र की मानें तो बिहार विधानसभा का चुनाव के साथ ही 26 अक्टूबर से 10 नवंबर के बीच झारखंड की दुमका और बेरमो में सीट पर उपचुनाव कराया जा सकता है। 

जल्द होगी तारीख की घोषणा
चुनाव आयोग से मिल रहे संकेत के अनुसार अब कभी भी बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा हो सकती है। इस लिहाज से हफ्ते भर बाद कभी भी उपचुनाव के तारीखों की घोषणा हो सकती है। यह घोषणा बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही होगी। दुमका सीट मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और बेरमो सीट कांग्रेस के राजेंद्र सिंह के निधन के कारण खाली हुई है।

पर्व-त्योहार के बीच होना है चुनाव
26 अक्टूबर से लेकर 10 नवम्बर के बीच चुनाव कराने के कई कारण हैं। चुनाव आयोग त्योहारों और बिहार में नई सरकार के गठन के हिसाब से कार्यक्रमों की प्रारंभिक रूपरेखा तैयार कर रहा है। इसकी औपचारिक घोषणा नहीं की गई है। बिहार में वर्तमान सरकार 30 नवंबर 2015 को बनी थी। इसलिए वैधानिक रूप से 29 नवंबर तक हर हाल में मतगणना के बाद चुनाव परिणाम आ जाने चाहिए। 13 नवंबर को धनतेरस, 16 नवंबर को दीपावली और 21 नवंबर को छठ है। छठ के बाद मात्र आठ दिन में 21 से 29 नवंबर के बीच मतदान और मतगणना दोनों कराना चुनाव आयोग के लिए बेहद कठिन होगा। 17 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच नवरात्र है। इस दौरान भी मतदान और मतगणना की प्रक्रिया से चुनाव आयोग परहेज करना चाहेगा। 17 अक्टूबर से पहले मतदान कराने के लिए अब समय नहीं बचा है। क्योंकि चुनाव घोषणा से मतदान के बीच कम से 45 दिन की अवधि होनी चाहिए। 17 सितंबर तक वैसे भी पितृपक्ष और उसके बाद मलमास है। इस कारण से चुनाव आयोग के लिए व्यवधान रहित अवधि केवल 26 अक्टूबर से 10 नवंबर के बीच का समय ही बचता है। 

उम्मीदवारों का दिल्ली दौरा शुरू
बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही चुनाव आयोग के लिए झारखंड में बेरमो और दुमका में उपचुनाव कराना मजबूरी है। यही कारण है कि दुमका और बेरमो उपचुनाव को लेकर राजनीतिक दलों की राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। दोनों विधानसभा क्षेत्रों में जमीनी कवायद से लेकर पार्टियों के वार रूम में अंकगणित के अलग-अलग फॉर्मूलों पर चुनौतियों की परीक्षा हो रही है। उम्मीदवारी की दावेदारी को लेकर पार्टियों के दरवाजे खटखाए जाने लगे हैं। भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों में तो दिल्ली दरबार तक की दौड़ प्रारंभ हो गयी है। सूत्रों की मानें तो दावेदार अपनी दावेदारी सुनिश्चित कराने के लिए कई बार दिल्ली की यात्रा कर आए हैं। 

हेमंत सरकार की साख का सवाल 
झारखंड के उपचुनाव के कई किरदार हैं। चुंकि दुमका सीट मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा खाली किया गया है, इसलिए हेमंत सोरेन इस सीट के बेहद महत्वपूर्ण किरदार हैं। यही नहीं मुख्यमंत्री और प्रदेश में यूपीए का चेहरा होने के कारण सत्ता पक्ष के उम्मीदवार की जीत के लिए बेरमो में भी दारोमदार मुख्यमंत्री सोरेन के ऊपर ही है। दुमका झामुमो के लिए प्रतिष्ठा की सीट है। उम्मीदवार के लिए जनसमर्थन बनाए रखने की जिम्मेवारी मुख्यमंत्री पर है। यही नहीं यह उपचुनाव मुख्यमंत्री का लिटमस टेस्ट भी है। यदि दोनों सीटों पर जीत मिल गई तो फिर मुख्यमंत्री सोरेन प्रभावशाली क्षत्रप बनकर उभरेंगे। यदि वे हार गए तो फिर प्रतिपक्षी भाजपा उनकी सत्ता तक को चुनौती दे सकती है। 

दोनों सीटों के लिए अहम किरदार की भूमिका में हैं बाबूलाल
झारखंड के इन दोनों विधानसभा सीटों के लिए पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी एक अहम किरदार की भूमिका में हैं। हाल ही में फिर से भाजपा में लौटे और आनन-फानन में विधायक दल का नेता बनाए जाने के बाद से बाबूलाल पूरी तरह से सक्रिय हैं। चूंकि वे भाजपा विधायक दल के नेता हैं और दुमका उनका कार्यक्षेत्र रहा है। हालांकि बाबूलाल इन दिनों कई प्रकार के राजनीतिक गतिरोध में फंसे हुए हैं। झारखंड विकास मोर्चा का उन्होंने भाजपा में विलय तो कर लिया है, लेकिन झारखंड विधानसभा में उन्हें मान्यता नहीं मिली है। इस कारण उनका प्रतिपक्ष के नेता पर भी विवद बरकरार है, लेकिन दुमका विधानसभा के लिए बाबूलाल अहम हैं। यह उपचुनाव बाबूलाल के भविष्य की राजनीति को भी तय करेगा। वैसे मरांडी के खुद भी दुमका से चुनाव लड़ने के कयास भी लगाए जा रहे हैं। हालांकि उन्होंने अभी इस बात से इन्कार किया है। 

रघुवर पर भी है नजर
इस पटकथा के एक किरदार पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता रघुवर दास भी हैं। रघुवर इसलिए महत्वपूर्ण किरदार हैं क्योंकि अपने मुख्यमंत्रित्व काल में दास ने संथालपरगना में झारखंड मुक्ति मोर्चा को कमजोर करने में रुचि दिखाई थी। रघुवर दास अभी भी भाजपा के लिए अपरिहार्य बने हुए हैं।  पिछले दिनों संपन्न प्रदेश कार्यसमिति के गठन में उन्होंने अपनी ताकत दिखाई है। वैसे दास को बेरमो से विधानसभा उम्मीदवार बनने की संभावना भी जताई जा रही है।

रेस में लूईस मरांडी भी 
दुमका उपचुनाव की एक अहम किरदार पूर्व मंत्री लूईस मरांडी भी हैं। यह इसलिए कि मरांडी, रघुवर सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। यही नहीं 2014 में उन्होंने झामुमो के कद्दावर नेता और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को मात दी थी। भाजपा इस बार भी लूईस मरांडी पर दांव खेल सकती है। बहरहाल, झारखंड का यह उपचुनाव इसलिए बेहद महत्वपूर्ण है कि इसी उपचुनाव के बाद झारखंड के भावी राजनीतिक उलटफेर का गणित सेट हो सकता है। इसलिए हेमत सोरेन हर हाल में दोनों सीट पर कब्जा जमाने की कोशिश में हैं। अब देखना है कि हेमंत सोरेन किस तरह से अपनी प्रतिष्ठा बचाते हैं, यह अहम सवाल है।