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सोशल साइट पर फ़िज़ुुल बोलने-लिखने और दिखाने पर आख़िर कौन लगाएगा लगाम

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डॉ. वेदप्रताप वैदिक, दिल्‍ली:

सर्वोच्च न्यायालय ने आज वेब पोर्टल्स और यू ट्यूब चैनलों पर चल रहे निरंकुश स्वेच्छाचार पर बहुत गंभीर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा है कि संचार के इन माध्यमों का इतना जमकर दुरुपयोग हो रहा है कि उससे सारी दुनिया में भारत की छवि खराब हो रही है। देश के लोगों को निराधार खबरों, अपमानजनक टिप्पणियों, अश्लील चित्रों और सांप्रदायिक प्रचार का सामना रोजाना करना पड़ता है। यह राय भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना ने उस याचिका पर बहस के समय प्रकट की, जो जमीयते-उलेमा-ए-हिंद ने लगाई थी।

ज़रा याद करें कि कोरोना को फैलाने के लिए उस समय तबलीगी जमात को किस कदर बदनाम किया गया था। अदालत ने सरकार से अनुरोध किया है कि जैसे अखबारों और टीवी चैनलों के बारे में सरकार ने आचरण संहिता और निगरानी-व्यवस्था कायम की है, वैसी ही व्यवस्था वह इन वेब पोर्टलों और यू ट्यूब चैनलों के बारे में भी करे। जाहिर है कि यह काम बहुत कठिन है। जहाँ तक अखबारों और टीवी चैनलों का सवाल है, वे आत्म-संयम रखने के लिए स्वतः मजबूर होते हैं। यदि वे अपमानजनक या अप्रामाणिक बात छापें या कहें तो उनकी छवि बिगड़ती है, दर्शक-संख्या और पाठक-संख्या घटती है, विज्ञापन कम होने लगते हैं और उनको मुकदमों का भी डर लगा रहता है लेकिन किसी भी पोर्टल या यू ट्यूब या व्हाटसाप या ई-मेल पर कोई भी कुछ भी लिखकर भेज सकता है। उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। करोड़ों लोग इन साधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। सरकार को अपने तकनीकी विशेषज्ञों को सक्रिय करके ऐसी विस्तृत नियमावली तैयार करनी चाहिए कि उसका उल्लंघन होने पर एक भी मर्यादाहीन शब्द इन संचार साधनों पर न जा सके।

यदि चला जाए तो दोषी व्यक्ति के लिए कठोरतम सजा का प्रावधान किया जाए। इसका अर्थ यह नहीं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदियां लगा दी जाएं और नागरिकों पर सरकार अपनी तानाशाही थोप दे। लेकिन नागरिकों को भी सोचना होगा कि वे मर्यादा का पालन कैसे करें। आजकल हमारे टीवी चैनलों ने भी अपना स्तर कितना गिरा लिया है। वे अपनी सारी शक्ति दर्शकों को उत्तेजक दंगल दिखाने में खर्च कर देते हैं। किसी भी विषय पर विशेषज्ञों का गंभीर विचार-विमर्श दिखाने की बजाय वे पार्टियों के भौंपुओं को अड़ा देते हैं। उसका असर आम दर्शकों पर भी होता है और फिर वे अपनी बेलगाम टिप्पणियां विभिन्न संचार साधनों पर दे मारते हैं। संचार-साधनों का यह दुरुपयोग नहीं रूका तो वह कभी भी किसी बड़े सांप्रदायिक दंगे, तोड़-फोड़, आगजनी और हिंसा का कारण बन सकता है।

(लेखक दैनिक नवभारत टाइम्‍स के साथ न्‍यूज एजेंसी भाषा के संपादक रहे हैं। संप्रति भारतीय विदेश नीति और भारतीय भाषा सम्‍मेलन के अध्‍यक्ष के साथ स्‍वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।