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Jharkhand News : बेरोजगारी! आपकी कल्पना से भी ज्यादा भयावह हैं हालात, देखिये रिपोर्ट

नौकरी ले लो नौकरी। ढेर सारी नौकरी। अच्छी-अच्छी नौकरी। ताजा-ताजा नौकरी। हर साल 2 करोड़ नौकरी। हर साल पांच लाख नौकरी। नियुक्ति वर्ष वाली नौकरी। आत्मनिर्भर भारत वाली नौकरी। युवाओं....जल्दी करो। लेलो--लेलो नौकरी। नौकरी नहीं ले पाए तो बेरोजगारी भत्ता ले लो। कुछ ऐसे ही हुक्मरान आपको सपने बेचते हैं और आप खुली आंखों से कौड़ी के भाव ये सपना खरीद भी लेते हैं। 

सपनों में हुक्मरान कितनी नौकरियां बेच देते हैं। कोई कहता है कि पहली कैबिनेट में ही 20 लाख नौकरी देंगे तो कोई कहता है 40 लाख नौकरी। कितना कमाल का डाटा है ना। चुनावी रैली में कड़ी धूप, बारिश या शीतलहरी के बीच खड़े आपकी आंखें चौंधिया जाती होंगी, लेकिन हकीकत बहुत स्याह है। हकीकत ये है कि बेरोजगारी की वजह से हजारों युवाओं ने आत्महत्या की है। ये खड़ा मैं जो भी कह रहा हूं, वो कल्पना नहीं है। झूठ नहीं है। बल्कि मैं वही कह रहा हूं जो सरकार भी मानती है। 

बीते 2 साल में बेरोजगारी की वजह से परेशान होकर 9 हजार से ज्यादा युवाओं ने आत्महत्या की है। बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, हाल ही में राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि 2018 से 2020 के बीच 9 हजार 140 युवाओं ने बेरोजगारी की वजह से आत्महत्या की है। उन्होंने वार्षिक आंकड़ा भी पेश किया। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में 2 हजार 741 युवाओं ने आत्महत्या की। 2019 में 2 हजार 851 युवाओं ने आत्महत्या की। 2020 में 3 हजार 548 युवाओं ने आत्महत्या की। इन सब की आत्महत्या का कारण बेरोजगारी थी। ध्यान रखियेगा। ये लोग आंकड़े नहीं हैं,. इंसान थे। जिनका सपना था। उम्मीदें थीं। उम्मीदों के साथ ये लोग भी पोलिंग बूथ की लाइनों में लगे। वादों पर भरोसा करके वोट किया। रोजगार के आपके दिखाये सपनों से अपना भविष्य देखा। 

कुछ साल पहले पीएम का एक बयान याद कीजिए। एक टीवी चैनल में उनका इंटरव्यू चल रहा था। एंकर ने रोजगार पर सवाल पूछा। पीएम ने तपाक से जवाब दिया। आपके स्टूडियो के बाहर कोई पकौड़े का ठेला लगाता है। रोजाना 400-500 रुपये कमाता है। वो रोजगार नहीं है क्या। चलिए, मान लेते हैं। स्वरोजगार है लेकिन सभी लोग तो पकौड़ा नहीं तल सकते ना। पीएम की बात को तर्कसंगत मान भी लेते लेकिन तब, जब सरकारी विभागों में सभी पद ठसाठस भरे होते। पर क्या ऐसा है। ऐसा बिलकुल नहीं है। 

हाल ही में केंद्र के कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने केंद्र सरकार के अलग-अलग विभागों में खाली पदों का ब्योरा दिया था। बताया कि 01 मार्च 2020 तक केंद्र सरकार के विभागों में 8 लाख 72 हजार 243 पद खाली थे। 01 मार्च 2019 तक 9 लाख 10 हजार 153 पद खाली थे, वहीं 01 मार्च 2018 तक 6 लाख 83 हजार 823 पद खाली थे। भारतीय रेलवे में भी लाखों पद खाली हैं। हाल ही में केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी बैष्णव ने लोकसभा में बताया कि रेलवे के अलग-अलग विभागों में 2 लाख 65 हजार 547 पद खाली हैं।

इस केंद्र सरकार ने सेना को अपनी प्राथमिकता में रखा है। आपको हैरानी होगी कि यहां भी लाखों पद खाली हैं। दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय सेना के तीनों अंगों को मिलाकर कुल 1 लाख 22 हजार 555 पद खाली हैं। इसमें अधिकारी से लेकर सिपाही तक के पद शामिल हैं। रेलवे और भारतीय सेना, दोनों ऐसे क्षेत्र हैं जहां भारतीय मध्य वर्ग से आने वाला युवा नौकरी पाने की चाह रखता है। किसी कंक्रीट से भरे मैदान में पसीने बहाता है। 10 बाई 10 के किसी कमरे में प्रतियोगी परीक्षाओं के काम आने वाली पत्रिकायें रटता है। सालों तहरी खाकर जीवन गुजार देता है कि, एक दिन सब अच्छा होगा। 

बात देश के दूसरे सबसे बेरोजगार राज्य झारखंड की। 7 दिसंबर 2021 यानी झारखंड में नियुक्ति वर्ष का आखिरी महीना। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि पैसा ही कमाना है ना। खाली नौकरिये से पैसा मिलता है क्या। आप कोई और रोजगार नहीं कर सकते क्या। अंडा बेचिये। मुर्गी पालन कीजिए। स्वरोजगार कीजिए। स्वरोजगार। सुनने में बहुत अच्छा लगता है। सरकार के हिसाब से सबको सरकारी नौकरी नहीं दी जा सकती, तो हमारे हिसाब से सब स्वरोजगार भी नहीं कर सकते। सबको सरकारी नौकरी नहीं दे सकते वाली बात तभी तर्कसंगत लगती है जब विभागों में सभी पद भरे हों। पर, क्या ऐसा है। 

14 मार्च 2021 को नवभारत टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड सरकार के कई विभागों में कुल 5 लाख 25 हजार स्वीकृत पद हैं। इनमें से 3 लाख 39 हजार पद खाली हैं। योजना सह वित्त विभाग के मुताबिक झारखंड में अलग-अलग विभागो में महज 1 लाख 95 हजार 255 लोग ही काम कर रहे हैं। 3 लाख 39 हजार 860 पद खाली हैं। इसकी वजह से सरकारी काम बुरी तरह से प्रभावित होता है। अधिकारियों और कर्मचारियों पर अतिरिक्त भार पड़ता है। बीते 20 साल में महज 6 बार जेपीएससी की परीक्षा आयोजित की जा सकी है। जेएसएससी सीजीएल की भर्ती प्रक्रिया रद्द की गई। दोबारा भर्ती निकाली गई है। जिस साल को सरकार ने नियुक्ति वर्ष घोषित किया था, उसी में पंचायत सचिव सहित 7 नियुक्ति प्रक्रिया रद्द की जा चुकी है। 7वीं से 10वीं जेपीएससी परीक्षा भी अधर में लटकी है। हजारों की संख्या में छात्र सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं। 

आखिर में बात पकौड़ा, मुर्गी पालन और अंडा बेचने वाली रोजगार योजना की। दरअसल, इसके बारे में कहने को कुछ ज्यादा है ही नहीं। स्वरोजगार हवा में नहीं होता। इसके लिए पूंजी लगती है। दरअसल, सरकारों के पास कोई ठोस रोडमैप है ही नहीं। कौशल विकास केंद्र। छोड़िये। इस पर कभी और बात करेंगे। पकौड़ा बेचना खुदरा व्यवसाय है, जो नोटबंदी की बली चढ़ गया। केवल पकौड़ा ही नहीं, नोटबंदी ने तमाम ठेले-खोमचे वालों की कमर तोड़ दी। नोटबंदी के अगले कुछ महीनों तक नगदी की कमी रही। कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। वैसे पकौड़ा बेच भी लेते लेकिन अब तो सरसों का तेल खरीदना भी आसान नहीं रहा। 

तो फुर्सत में कभी सोचियेगा। मुद्दा क्या है। बाकी तो क्या है। करोड़ों का नया संसद भवन बनता रहेगा। मंत्रियों के लिए बंगले बनेंगे। फॉर्च्यूनर खरीदा जाता रहेगा। इन सबको राष्ट्र और राज्य की तरक्की का नाम दे दिया जायेगा। अब भी नहीं समझे तो डियर पब्लिक। रोजाना 2 जीबी डाटा और आईपीएल विद टाटा। हैव फन