विष्णु नारायण
बिहार की राजनीति में इन दिनों एक सवाल हर किसी की जुबान पर है- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बाद जदयू की कमान किसके हाथ होगी? क्या नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी कोई और होगा या उनके इकलौते बेटे निशांत कुमार ही उनकी राजनीति को आगे ले जाएंगे-वैसे तो इस बात को लेकर कोई आधिकारिक सूचना नहीं आई है, लेकिन गाहेबगाहे ऐसी बातें बिहार के सियासी गलियारे में जोर मारती रही हैं कि निशांत राजनीति की ओर रुख कर सकते हैं. हालांकि निशांत अपनी ओर से इस सवाल पर हमेशा से ही कन्नी काटते रहे हैं, और खुद को अध्यात्म से जुड़ा रखने की ही बातें कहते रहे हैं- तो चलिए इस लाख टके के सवाल के जवाब की तलाश में चलते हैं.
जैसे सीएम नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर तरह-तरह की चलती खबरों और विपक्ष के हमले के बीच जद (यू) के कार्यालय के बाहर एक पोस्टर अचानक से नुमाया होता है कि ‘बिहार करे पुकार, आइए निशांत कुमार’- वैसे तो यह पोस्टर पार्टी की ओर से अधिकृत पोस्टर नहीं है लेकिन राजनीति को जानने-समझने वाले बखूबी जानते हैं कि नाव को धार में उतारने से पहले पानी को थाह तो लगाया ही जाता है- नहीं तो अब तक पार्टी की ओर से किसी ने नकारा क्यों नहीं? वहीं जब पत्रकारों ने निशांत के राजनीति में आने को लेकर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव से सवाल किए तो उन्होंने आगे बढ़कर स्वागत की बात कह दी है—साथ ही कहा है कि निशांत उनके भाई हैं और उनके राजनीति में आने से उनकी पार्टी संघियों और भाजपावालों के चंगुल में जाने से बच जाएगी?
इसके अलावा उन्होंने सम्राट चौधरी, विजय सिन्हा और चिराग पासवान को भी आड़े हाथ लिया जो सीएम नीतीश के स्वास्थ्य को लेकर पूर्व में उनपर हमलावर रहे हैं – कहा पीएम मोदी तो डीएनए पर सवाल उठा चुके हैं।
निशांत कुमार: सादगी से सियासत की सुर्खियों तक
निशांत कुमार, नीतीश कुमार के इकलौते बेटे, जो अब तक सियासत से बच-बचकर चलने की कोशिशें करते रहे हैं- बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (BIT) मेसरा से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने वाले निशांत का झुकाव हमेशा अध्यात्म की ओर रहा है। 2007 में मां मंजू सिन्हा के निधन के बाद से वे अपने पिता के साथ पटना के मुख्यमंत्री आवास में रहते हैं, लेकिन सुर्खियों से हमेशा बचते रहे हैं। लेकिन समय बदलने के साथ ही बहुत कुछ बदलता है- जैसे पिछले कुछ महीनों से निशांत की सार्वजनिक मौजूदगी और बयानों ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। क्या यह संकेत है कि जदयू उन्हें नीतीश के उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार कर रही है? या यह सिर्फ कोरी गप्प है?
लॉन्चिंग की लहर: कब से उठ रही है मांग?
निशांत के सियासी सफर की चर्चा कोई नई नहीं है। जून, 2024 में जदयू के महासचिव परम हंस कुमार ने खुलकर कहा था कि निशांत को पार्टी और बिहार के हित में राजनीति में आना चाहिए। जून 2024 में जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से पहले भी यह मांग जोर पकड़ चुकी थी। उस वक्त पार्टी नेताओं ने निशांत को "युवा नेतृत्व" के तौर पर पेश करने की बात कही थी। फिर नवंबर 2024 में हरियाणा के एक शादी समारोह में नीतीश के साथ निशांत की मौजूदगी और उनके संजीदा जवाबों ने अटकलों को हवा दी।
2025 की शुरुआत में यह लहर और तेज हुई। जनवरी में निशांत अपने पैतृक गांव बख्तियारपुर में पिता के साथ स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्ति अनावरण कार्यक्रम में नजर आए। वहां उन्होंने पहली बार जनता से अपील की, " हो सकेगा तो पिताजी को, उनकी पार्टी को आप सब जनता फिर से वोट करें....पिताजी ने अच्छा काम किया है, उन्हें वोट दें और दोबारा मुख्यमंत्री बनाएं।"
इस बयान ने जदयू कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया। इसके बाद फरवरी 2025 में पटना में जदयू ऑफिस के गेट पर "बिहार करे पुकार, आइए निशांत कुमार" जैसे पोस्टर उत्साही समर्थकों द्वारा लगने शुरू हुए, जिसने साफ संकेत दिया कि निशांत की लॉन्चिंग अब महज चर्चा नहीं, बल्कि हकीकत के करीब है।
सियासी जानकारों का मानना है कि जदयू निशांत को तेजस्वी के युवा जोश की काट के तौर पर पेश करना चाहती है। तेजस्वी जहां 9वीं फेल हैं, वहीं निशांत इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हैं—यह अंतर जदयू के लिए एक बड़ा हथियार हो सकता है।
इसके अलावा, नीतीश के बाद जदयू को एकजुट रखने की चुनौती भी है। पार्टी का बड़ा वोट बैंक—अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी)—नीतीश की मौजूदगी से बंधा है। अगर नीतीश कमजोर पड़ते हैं, तो यह वोट बैंक बिखर सकता है। ऐसे में निशांत को लॉन्च करना जदयू के लिए मजबूरी भी है और जरूरी भी। एनडीए के सहयोगी नेता, जैसे केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी, भी निशांत की एंट्री का स्वागत कर चुके हैं।
नीतीश का परिवारवाद विरोध: क्या बदलेगा स्टैंड?
नीतीश कुमार हमेशा परिवारवाद के खिलाफ रहे हैं। उन्होंने लालू यादव और उनकी संतानों पर तंज कसते हुए कहा था कि वे अपने बेटे को कभी सियासत में नहीं लाएंगे। मगर अब हालात बदलते दिख रहे हैं। जदयू नेता श्रवण कुमार ने कहा कि ऐसे प्रगतिशील युवाओं का स्वागत है, फैसला नीतीश जी करेंगे। वहीं, मीडिया में चल रहे खबरों के मुताबिक निशांत ने सहमति दे दी है, बस नीतीश की ‘हरी झंडी’ का इंतजार है। क्या नीतीश अपने सिद्धांतों से समझौता करेंगे, या यह कदम बिहार और जदयू के भविष्य के लिए जरूरी है।
संशय का अंत : क्या होली के बाद होगा ऐलान?
मीडिया में चल रहे खबरों के मुताबिक, होली 2025 के बाद निशांत की औपचारिक लॉन्चिंग हो सकती है। जदयू कार्यकर्ताओं का उत्साह, पोस्टरबाजी और नेताओं के बयान इस ओर इशारा कर रहे हैं। अगर ऐसा हुआ, तो बिहार की सियासत में एक नया अध्याय शुरू होगा। निशांत के पास न सिर्फ नीतीश की साख है, बल्कि उनकी सादगी और शिक्षा भी उन्हें अलग पहचान दे सकती है। मगर सवाल वही है—क्या वे तेजस्वी जैसे धुरंधर को टक्कर दे पाएंगे? और क्या नीतीश इस "उत्तराधिकारी" को लेकर आलोचनाओं का सामना करेंगे? फिलहाल, बिहार की जनता और सियासी पंडित नजरें गड़ाए हुए हैं। नीतीश के बाद अब किसकी बारी है—यह सवाल जल्द ही जवाब मांग रहा है। क्या निशांत कुमार वह जवाब होंगे? समय ही बताएगा, लेकिन यह सनसनी अभी थमने वाली नहीं है।