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देवी दुर्गा शक्ति स्वरूपा : सलीमा टेटे- समर्पण और संघर्ष की विजयगाथा

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Zeb Akhtar
भारतीय महिला हॉकी की नई सनसनी सलीमा टेटे को इसी वर्ष एशियाई हॉकी महासंघ ने एशिया महादेश का एथलेटिक्स एंबेस्डर बनाया है। किसने सोचा था कि झारखंड के एक छोटे से गांव की रहने वाली किसान की बेटी कभी इस मुकाम तक पहुंचेगी। सलीमा इससे पहले भी ओलंपिक, कॉमनवेल्थ और वर्ल्ड कप जैसी कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अपने शानदार प्रदर्शन से देश-दुनिया में अपनी काबलियत का लोहा मनवा चुकी थीं लेकिन, बहुत कम लोग जानते हैं कि यहां तक पहुंचने के लिए सलीमा को किन परेशानियों का सामना करना पड़ा। दरअसल, सलीमा की जिंदगी सही मायनों में गरीबी और अभाव के महिषासुर को परास्त करने की कहानी है जो किसी भी कमजोर और हार चुके आदमी को ताकत देती है। द फॉलोअप  की इस खास सीरीज में आज हम आपको इसी सलीमा की कहानी सुनाने जा रहे हैं। 

घर में मैच देखने के लिए टीवी तक नहीं था
सलीमा टेटे का परिवार आज भी सिमडेगा के बड़की छापर गांव में कच्चे मकान में रहता है। यह जानकर हैरानी होगी कि सलीमा जब टोक्यो ओलंपिक में जीत का परचम लहरा रही थीं तब उनके घर में मैच देखने के लिए टीवी तक नहीं था। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने सलीमा टेटे के घर में स्मार्ट टीवी और इंवर्टर लगवाया। आपको बता दें कि टोक्यो ओलंपिक में उनके खेल की तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं। वर्ष 2001 में जन्मी सलीमा टेटे ने बड़की छापर के उबड़-खाबड़ मैदान में ही हॉकी खेलना शुरू किया था। उस समय उनके पास न जूते होते थे ने हॉकी स्टिक। वो हाथ से बनी बांस की स्टिक और बॉल से खेलती थी। सलीमा के पिता सुलक्सन टेटे और भाई अनमोल लकड़ा खेत में आज भी खुद से हल-जोतकर चावल और सब्जियों की खेती करते हैं। इसी से परिवार का भरण-पोषण होता है। 

रसोइया मां की बेटी है सलीमा
सलीमा की मां सुबानी टेटे रसोइया हैं। परिवार में सलीमा के अलावा उनकी 4 अन्य बहनें इलिसन, अनिमा, और महिमा टेटे हैं। महिमा राज्य स्तरीय हॉकी प्रतियोगिता खेलती रही हैं। सलीमा को इस मुकाम तक पहुंचाने में उनकी बड़ी बहन अनिमा का खास योगदान रहा है। उन्होंने सलीमा के खर्च को पूरा करने के लिए सिमडेगा से लेकर बेंगलुरू तक में लोगों के घरों में बरतन धोने का काम किया है। उनके पिता के पास कई बार सलीमा को देने के लिए पैसे नहीं होते थे। तब वो गांव के फादर और आस-पड़ोस के लोगों से कर्ज लेते थे और बाद में इसे मजदूरी कर चुकाते थे। ये जानना भी कम रोचक नहीं है कि सलीमा के पिता भी हॉकी खिलाड़ी रहे हैं। सलीमा ने उन्हीं के मार्गदर्शन में हॉकी का ककहरा सीखा।

ऐसे हुई हॉकी की शुरुआत
पिता सुलक्सन टेटे अक्सर सलीमा को गांव की टीम से सिमडेगा के लठ्ठा खम्हन हॉकी प्रतियोगिता में खेलने ले जाते थे। ये सिलसिला 2011 से शुरू हुआ। लठ्ठा खम्हन में ही सलीमा को एक बार बेस्ट खिलाड़ी का अवार्ड भी मिला था। वह सलीमा टेटे के जीवन का पहला अवार्ड था। इसके बाद नवंबर 2013 में सलीमा का चयन आवासीय हॉकी सेंटर सिमडेगा के लिए कर लिया गया। इसी साल दिसंबर में रांची में हो रहे SGFI राष्ट्रीय विद्यालय हॉकी प्रतियोगिता के लिए झारखंड टीम की ओर सलीमा का चयन हो गया। यहीं पर सलीमा पर हॉकी कोच प्रतिमा बरवा की नजर पड़ी। सही मायने बरवा ही वो शख्स थीं, जिन्होंने पहली बार सलीमा के जुनून और जिद को पहचाना। बरवा ने उन्हें ट्रेनिंग देना शुरू किया। सलीमा को 2014 में राष्ट्रीय सब जूनियर महिला प्रतियोगिता में पहली बार झारखंड की टीम में चुना गया। इस साल टीम पुणे से सिल्वर मेडल लेकर लौटी थी। इसके बाद सलीमा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 

2016 में सीनियर महिला टीम के लिए चुनी गयी

सलीमा टेटे 2016 में पहली बार जूनियर भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए चुनी गयीं और इसी साल अंडर 18 एशिया कप के लिए जूनियर भारतीय महिला टीम में उनको उपकप्तान बनाया गया था। उनकी टीम ने कांस्य पदक हासिल किया। 2016 नवंबर में सीनियर महिला टीम के लिए सलीमा चुनी गयी और पहली बार देश से बाहर आस्ट्रेलिया खेलने गयीं। 2019 यूथ ओलंपिक में वो जूनियर भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान बनीं। इस साल टीम सिल्वर मेडल जीतकर लौटीं। 2019 में ही उनकी प्रतिभा का लोहा मानते हुए हॉकी बोर्ड ने उनका चयन सीनियर भारतीय महिला हॉकी टीम में स्थायी खिलाड़ी के तौर पर किया। तब से लेकर आज तक सलीमा टेटे कई राष्ट्रीय प्रतियोगिता में झारखंड और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भारतीय टीम की ओर से  खेलती रही हैं। उनकी छोटी बहन महिमा टेटे भी झारखंड के लिए खेलती हैं। फिलहाल सलीमा रांची रेलवे में कार्यरत है। 

घायल हुईं, लेकिन मैदान नहीं छोड़ा
सलीमा को नजदीक से जानने वाले बताते हैं कि सलीमा शुरू से ही हॉकी के प्रति जुनूनी रही है। आपको बता दें कि सब जूनियर नेशनल प्रतियोगिता में मैदान में ही सलीमा सिर में चोट लगने क कारण घायल हो गयी थी। एक और मैच के दौरान उसकी अंगुली फ्रैक्चर हो गई थी। फिर भी उन्होंने मैदान नहीं छोड़ा। कोई भी फील्ड हो, ऐसे जुनून का मिलना दुर्लभ है। सलीमा टेटे के संघर्ष और दुश्वारियों का अंदाजा इस एक बात से भी लगाया जा सकता है कि जब उन्हें कोरिया में हॉकी फेडरेशन ने इमर्जिंग प्लेयर ऑफ द ईयर चुना तो सलीमा ने कहा था, मैं बेहद सम्मानित महसूस कर रही हूं। एशिया के एथलीटों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।