Zeb Akhtar
दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर खड़ी यह सांवली लड़की किसी पहचान की मोहताज नहीं है। नाम है विनीता सोरेन। झारखंड की विनीता सोरेन माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली देश की पहली आदिवासी महिला हैं। 26 जून 2012 को महज 25 साल की उम्र में एवरेस्ट फतह करने वाली विनीता ने उस महिषासुर को हराया जो हर इंसान में डर के रूप में मौजूद है। डर, जोखिम और असुरक्षा की भावना के रूप में हर इंसान में कब्जा जमाकर बैठे महिषासुर को हराकर विनीता ने दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर तिरंगा लहरा दिया। इस बात का गर्व ना केवल झारखंड बल्कि पूरे देश को है। झारखंड के छोटे से गांव से निकलकर दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर पहुंचने तक विनीता का सफर आसान नहीं था। विनीता को कई बार ऐसा लगा कि इस सफर की मंजिल ही नहीं है लेकिन हिम्मत, लगन और दुनिया जीत लेने के जुनून ने उनको बर्फीले पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचा दिया।
ऐसा था विनीता का बचपन
विनीता बताती हैं, मेरा जन्म सरायकेला के छोटे से गांव कैसलकोरा में हुआ। यहां लड़कियां पढ़ाई के साथ-साथ खेतों में काम करतीं। यदि पढ़ने-लिखने में अच्छी हैं तो टीचर या फिर नर्सिंग की ट्रेनिंग लेती। इससे परिवार की आर्थिक मदद हो जाती थी। शादी में भी मुश्किल नहीं आती थी। विनीता कहती हैं, हालांकि मेरा इरादा कुछ और था। टाटा स्टील, सीएसआर के तहत हमारे इलाके में एडवेंचर एक्टिविटी संचालित किया करता था। मैंने सोचा, यह अच्छी चीज है। मैं यही करूंगी लेकिन, घरवाले नहीं माने। बकौल विनीता उनकी फैमिली में या उनके आसपास कोई ऐसा नाम भी नहीं था जिसका उदाहरण देकर वो घरवालों को तैयार करती लेकिन वह जिद्दी थीं। विनीता की जिद के आगे घरवाले हार गए। विनीता ने एडवेंचर एक्टिविटी के जरूरी तीन-चार टेस्ट पास कर लिए। उन्हीं दिनों विनीता की मुलाकात माउंटेनियर बछेंद्री पाल से हुई। बछेंद्री पाल ने विनीता के अंदर छिपी जिद और जुनून को पहचाना। वो विनीता को एवरेस्ट फतह के लिए प्रोत्साहित करने लगीं।
इस तरह पूरा हुआ सपना
उन्हीं के मार्गदर्शन में विनीता ने एवरेस्ट पर चढ़ने की ट्रेनिंग ली। 20 मार्च 2012 में जमशेदपुर से शुरू हुआ ये सफर अंततः 26 जून 2012 में पूरा हुआ। इसी दिन सुबह 5 बजे विनीता के जीवन का वो यादगार पल आया जो आज दुनिया के लिए भी यादगार बन गया है। विनीता ने 2 साथियों के साथ एवरेस्ट फतह कर लिया था। तब उनकी आंखों में जीत के गर्व के साथ खुशी के आंसू भी थे। इसके बाद विनीता ने मुड़कर नहीं देखा। थार रेगिस्तान अभियान के तहत विनीता सोरेन गुजरात के भुज से पंजाब के बाघा बोर्डर तक 2 हजार किलोमीटर की जोखिम भरी कठिन यात्रा कर चुकी है। इसी के साथ उन्होंने अमेरिका के आकोंकागुआ शिखर को भी फतह किया है, जो कि विश्व के सात ऊंचे पर्वत शिखरों में से एक है।
रास्ते में आने वाले संघर्ष
एवरेस्ट फतह के अपने सफर को लेकर विनीता ने बताया कि अभियान के दौरान बहुत से ऐसे पल आए जब लगा बस, अब और नहीं! कभी मौसम ने साथ नहीं दिया तो कभी शरीर ने। 2 महीने मौसम ठीक होने का इंतजार करना पड़ा। 2 महीने बाद जब चढ़ाई की परमिशन मिली तो टीम को 2 हिस्सों में बांट दिया गया। विनीता ने बताया कि पर्वतारोहण में फिटनेस भी बहुत काम नहीं देता। सारा खेल स्टेमिना, आत्मविश्वास और मेंटल स्ट्रैंथ का है। भीषण ठंड और बर्फबारी के बीच कई बार कठिन पल आए। विनीता ने बताया कि अभियान के दौरान कुछ लोगों ने जान गंवा दी। कुछ पर्वतारोही जख्मी हो गए। कई लोग हिम्मत हारकर वापस लौट गए लेकिन, मैंने ठान लिया था कि चाहे हालात कुछ भी हों, मुझे उस ऊंची चोटी को जीतना ही है। विनीता ने इसके लिए 7 साल तक कड़ी मेहनत की थी। ना केवल परिवार बल्कि पूरे झारखंड की निगाहें विनीता पर थी। टाटा स्टील ने भी इस अभियान में साढ़े 7 लाख रुपये खर्च किए थे। विनीता की टीम को लुकला नाम का सबसे मुश्किल रास्ता दिया गया था।
...और जब एवरेस्ट को फतह किया
विनीता कहती हैं कि मेरे लिए सबसे कठिन पल था जब मैं अपने 2 साथियों के साथ बेस कैंप के ऊपर लोयला फेस के नीचे पहुंची। यह एवरेस्ट का सबसे खतरनाक फेज माना जाता है। यहां लगातार बर्फ टूटती है। विनीता और उनके साथी कई बार इन बर्फ के टुकड़ों से बचे भी। आखिरकार 26 जून 2012 का वह दिन आ गया जब सुबह तकरीबन 7 बजे विनीता तिरंगा थामे दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर खड़ी थीं। एवरेस्ट के जानलेवा भूगोल को हराने वाली विनीता का नाम इतिहास में दर्ज हो चुका था। विनीता, दुनिया के सातों सर्वाधिक ऊंचे पर्वत शिखर को जीतना चाहती हैं। इनमें से नेपाल का माऊंट एवरेस्ट और अमेरिका का आकोंकागुआ वह जीत चुकी हैं। बाकी 5 अगले 2-3 साल में जीत लेने की योजना है। दुर्गा शक्ति स्वरूपा विनीता यह भी कर लेंगी। विश्वास है।