द फॉलोअप डेस्क
इस्लाम धर्म में कई त्योहार मनाए जाते हैं, लेकिन ईद-उल-अजहा को बहुत खास और पाकीजा पर्वों में गिना जाता है। इसे ईद-उल-जुहा, बकरीद या कुर्बानी का पर्व भी कहा जाता है। यह त्योहार मुस्लिम समुदाय के लिए त्याग, समर्पण और इंसानियत की भावना का प्रतीक है। बकरीद के मौके पर लोग जरूरतमंदों को दान देते हैं और एक-दूसरे को इस पर्व की मुबारकबाद देते हैं। यह दिन पैगंबर हज़रत इब्राहीम की अल्लाह के प्रति निष्ठा और बलिदान की याद में मनाया जाता है।
कब मनाई जाएगी बकरीद?
सऊदी अरब की सुप्रीम कोर्ट ने चांद दिखने के बाद बकरीद की तारीख का ऐलान कर दिया है। सऊदी में मंगलवार, 27 मई को जुल हिज्जा का चांद नजर आया, जो इस्लामिक कैलेंडर का आखिरी और बेहद पाक महीना होता है। इस साल सऊदी अरब में हज यात्रा 4 जून से शुरू होगी और अराफात का दिन 5 जून को पड़ेगा। इसके अनुसार, वहां ईद-उल-अजहा भारत में 7 जून को मनाई जाएगी। भारत में आमतौर पर सऊदी अरब से एक दिन बाद ईद मनाई जाती है, ऐसे में भारत में बकरीद 7 जून को मनाए जाने की संभावना है, हालांकि इसका अंतिम ऐलान चांद देखने के बाद किया जाएगा।
क्यों खास है बकरीद का त्योहार?
हर त्योहार के पीछे एक पौराणिक या ऐतिहासिक कथा होती है। बकरीद का संबंध पैगंबर इब्राहीम की उस परीक्षा से है, जिसमें उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अपनी सबसे प्रिय वस्तु, यानी अपने बेटे की कुर्बानी देने का संकल्प लिया। जैसे ही उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने की कोशिश की, अल्लाह ने उन्हें रोक दिया और उनकी जगह एक जानवर की कुर्बानी स्वीकार कर ली। तभी से इस दिन कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, बकरीद के मौके पर जानवर की कुर्बानी दी जाती है और उसका मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है—एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को, दूसरा रिश्तेदारों को और तीसरा हिस्सा अपने लिए रखा जाता है। इस परंपरा के जरिए भाईचारे और इंसानियत का संदेश दिया जाता है।