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बीजेपी की हार के पीछे प्रमंडलीय प्रभारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में, समीक्षा बैठक में और क्या निकलकर आया  

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द फॉलोअप डेस्क 
विधानसभा चुनाव में बीजेपी की शर्मनाक हार के लिए समीक्षा बैठक चल रही है। झारखंड भाजपा प्रदेश कार्यालय में 2 दिवसीय समीक्षा बैठक चल रही है। बैठक की अध्यक्षता संगठन के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष कर रहे हैं। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, संगठन महामंत्री कर्मवीर सिंह और कार्यकारी अध्यक्ष रवींद्र राय सरीखे नेता भी इसमें मौजूद हैं। बैठक में हारे हुए प्रत्याशियों ने बताया कि बीजेपी के प्रत्याशी अधिकतर सीट पर अपने ही लोगों के भितरघाट से हारे हैं। इसमें प्रदेश स्तर से लेकर प्रमंडल स्तर तक के कुछ नेताओं की भूमिका पर उंगली उठी। बूथ से लेकर जिला स्तर के संगठन और कुछ जिला अध्यक्षों व प्रभारियों की भूमिका पर सवाल उठाये गये।  


कई नेताओं ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि पूरे विधानसभा में कई प्रमंडलीय प्रभारियों की भूमिका संदिग्ध रही। कुछ नेता जो कि खुद टिकट पाने के आकांक्षी थे, वे टिकट नहीं मिलने पर जुगाड़ से प्रभारी बन गये। कहा कि पार्टी की ओऱ से भेजा गया पूरा पैसा भी बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं तक नहीं पहुंची। वहीं दबी जुबान से, नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया गया कि कुछ जिला प्रभारियों ने प्रत्याशियों या संभावित प्रत्याशियों से पैसे की भी मांग की। प्रत्याशियों से 15 लाख तक मांगे गये।  
बता दें कि विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में भाजपा ने 6 प्रमंडलीय प्रभारी बनाये थे। पलामू प्रमंडल के लिए विकास प्रीतम, कोल्हान प्रमंडल के लिए आदित्य साहू, द छोटानागपुर प्रमंडल के लिए गणेश मिश्र, हजारीबाग के लिए मनोज सिंह, धनबाद के लिए प्रदीप वर्मा औऱ संथाल परगना प्रमंडल के लिए बालमुकुंद सहाय को प्रभारी बनाया गया था। लेकिन किसी भी प्रमंडल में बीजेपी प्रत्याशियों को अपेक्षित जीत नहीं मिली।   
समीक्षा बैठक में कार्यकर्ताओं की नाराजगी खुलकार सामने आयी है। इस चुनाव में भाजपा के कई बड़े नेताओं को हार का सामना करना पड़ा। नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी, मुख्य सचेतक बिरंची नारायण, विधायक अनंत ओझा, भानु प्रताप शाही, रणधीर सिंह, बाबूलाल सोरेन, कमलेश सिंह, नारायण दास, नीलकंठ सिंह मुंडा, कोचे मुंडा, अमित मंडल, गीता कोड़ा और सीता सोरेन जैसे दिग्गज नेता चुनाव हार गए। 


बैठक में कई नेताओं ने बताया कि भाजपा की हार का एक बड़ा कारण स्थानीय मुद्दों की अनदेखी और बाहरी नेताओं को टिकट देना रहा। इसके खिलाफ शिकायत के बाद भी प्रमंडलीय प्रभारियों ने कोई कारगर कदम नहीं उठाया। उन्होंने अपने शीर्ष नेताओं तक स्थानीय समस्याओं और असंतोष को नहीं पहुंचाया। बता दें कि इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव परिणामों की समीक्षा होगी। इसके बाद संगठन में कुछ बदलाव भी संभव हैं। 

कई नेताओं ने कहा कि भाजपा को भाजपा के लोगों ने हराया। इसमें कुछ प्रमंड प्रभारियों ने भी भूमिका निभाई। कुछ ने कहा कि शाही का हारना प्रदेश नहीं बल्कि भाजपा के चिंता का विषय है। पार्टी को इस पर चिंतन और मंथन करना चाहिए और अनुशासनात्मक एवं कठोर कदम उठाना चाहिए। ये बात भी निकल कर सामने आय़ी कि भ्रमण के लिए जो चुनाव प्रभारी आये, वो एसी रुम में ही रुके रहे। चुनाव में खानापूर्ति करते रहे जो भाजपा के लिए चिंता का विषय है। बतौर सबूत इन होटलों का बिल देखा जा सकता है। 

हारे हुए कुछ प्रत्याशियों ने कहा कि चुनाव में पदाधिकारी व कार्यकर्ताओं के बीच जो  समन्वय बना रहना चाहिए था वो अभी भी संगठन में नहीं दिख रहा है। झारखंड में दलित और आदिवासी का कोई क्रांतिकारी नेता चाहिए जो आदिवासी के वोटो को बटोर सके। पलामू प्रमंडल में जीती हुई 3 सीट भाजपा हार गयी, इन सभी क्षेत्रों में बागियों ने भाजपा को नुकसान पहुंचाया। बागियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। 


 

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