logo

देवी दुर्गा शक्ति स्वरूपा  : सुमराय टेटे- ध्यानचंद अवार्ड पाने वाली देश और झारखंड की पहली आदिवासी महिला

s_trte.jpg

Zeb Akhtar

इस तस्वीर को गौर से देखिए। ये सुमराय टेटे हैं। चेहरे पर जो हल्की सी मुस्कान है उसमें खुशी के साथ जिंदगी में कुछ कर गुजरने का जज्बा है। इस तस्वीर के अंदर कामयाबी के जितने किस्से सिमटे हुए हैं उससे कहीं ज्यादा संघर्ष की दास्तानें हैं। कदम-कदम पर मिलती नाकामियां हैं और हर मोड़ पर रास्ता रोकने के लिए तैयार खडे महिषासुर। लेकिन इन सबको परास्त किया है मजबूत इरादों वाली सुमराय टेटे ने। ये वही समुराय टेटे हैं जिनको खेलों के सबसे प्रतिष्ठत सम्मान ध्यानचंद अवॉर्ड से नवाजा गया है। सुमराय इस सम्मान को हासिल करने वाली देश और झारखंड की पहली आदिवासी महिला हैं। द फॉलोअप  की इस खास सीरीज में हम आपको आज इसी सुमराय टेटे की कहानी सुनाने जा रहे हैं। 

कठिनाइयों से भरा बचपन 

साल 1979 में सुमराय टेटे का जन्म झारखंड, सिमडेगा के कसीरा मेरोंगटोली गांव में हुआ था। जहां उस समय न ढंग की सड़कें थी, न आने-जाने की व्यवस्था, न शिक्षा के लिए बेहतर स्कूल और ना हेल्थ की बुनियादी सुविधाएं। ऐसे माहौल में खेल की दुनिया का सितारा बनना तो दूर की बात थी, उस समय सुमराय टेटे के परिवार को जीने के लिए भी कठिन संघर्ष पड़ता था। लेकिन सुमराय ने इन्हीं परिस्थितियों में खुद को साबित किया। न सिर्फ अपना, अपने परिवार का बल्कि देश का नाम भी हॉकी की दुनिया में रौशन किया। उन दिनों को याद करते हुए सुमराय टेटे ने एक बार कहा था, “ये सिर्फ मेरी बात नहीं है, ऐसे कठिन वातावरण में भी झारखंड की आदिवासी लड़कियों का खेल की दुनिया में स्टार बनने के पीछे एक ही राज है। हॉकी उनके रग रग में बहती है। शायद यही वजह है कि 90 के दशक से ही छोटानागपुर की आदिवासी लड़कियों की नेशनल टीम में मौजूदगी रही है। तब से लेकर आज तक मेरी तरह करीब 70 लड़कियां हॉकी इंडिया में अपने टैलेंट का लोहा मनवा चुकी हैं। आपको ये जानकार हैरत होगी कि इनमें से ज्यादतर लड़कियां गरीब परिवारों से आती हैं।“ 

ऐसे हुई हॉकी की शुरुआत 
सुमराय टेटे की इन बातों से पता चलता है कि वे खुद भी इसकी अपवाद नहीं हैं। ये अलग बात है कि बांस की बल्ली और चमड़े के बाल से हॉकी की शुरूआत करने वाली सुमराय टेटे का संघर्ष बचपन से ही शुरू हो गया था।   
सुमराय टेटे बताती हैं कि उनके परिवार को 2 वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ता था। मां संतोषी टेटे हाउसवाइफ थीं। चाचा सिमोन टेटे हॉकी  खिलाड़ी थे। सुमराय टेटे के अंदर हॉकी को लेकर रुचि अपने चाचा को खेलते देख कर ही जगी। इसके बाद कभी बांस तो कभी लकड़ी की स्टिक और लेदर बॉल से हॉकी खेलना शुरू किया। शौक के तौर पर शुरू हुआ ये सफर जुनून में तब बदल गया जब स्कूल के कोच थियोडर खेस और जगेश्वर मांझी की नजर सुमराय टेटे पर पड़ी। दोनों ने समुराय टेटे के टैलेंट को पहचाना और यहीं से टेटे की हॉकी का असल सफर शुरू हुआ।

बरियातू के ग‌र्ल्स हॉकी सेंटर में दाखिला

स्थानीय प्रतियोगिताओं में समुराय हॉकी स्टिक से जादूगरी दिखाने लगी। समुराय टेटे के पिता बरनबास एक मुलाकात में बताते हैं कि उन दिनों उनके गांव से गुजर रही शिखा नदी पर पुल नहीं हुआ करता था। समुराय नाव पर बैठकर प्रैक्टिस करने जाती थी। इसी दौरान एक जिला स्तरीय प्रतियोगिता में सुमराय टेटे पर बरियातू हॉकी सेंटर के कोच नरेंद्र सिंह सैनी की नजर पड़ी। उन्होंने समुराय के जुनून और जादूगरी को पहचाना और उसे बरियातू के ग‌र्ल्स हॉकी सेंटर में दाखिला दिला दिया। ये 1990 का समय था जब सुमराय टेटे की असल ट्रेनिंग शुरू हुई। सेंटर से 1200 रुपये की स्कॉलरशिप तो मिलती थी लेकिन उससे हॉस्टल का सारा खर्च चलाना मुश्किल होता था। तब सुमराय के पिता उसे हर महीने 500 रुपये भेजा करते थे। हालांकि, इन 500 रुपयों के लिए भी उनको कड़ी जद्दोजहद करनी पड़ती थी। 

रेलवे की नौकरी के बाद कम हुआ आर्थिक संघर्ष

बरियातू हॉकी सेंटर में उन्होंने 1990 से लेकर 1996 तक 6 साल ट्रेनिंग ली। 1997 में रेलवे ने उनको नौकरी दी तो परिवार का आर्थिक संघर्ष कुछ कम हुआ। इस बीच उनकी बड़ी बहन करुणा को पढाई छोड़ देनी पड़ी। बहन की इस कुरबानी को सुमराय टेटे आज भी याद करती हैं। बताती हैं कि कैसे बरियातू हॉकी सेंटर में लड़कियां रेत के मैदान पर प्रैक्टिस करती थीं। तब वहां एस्टोटर्फ का इस्तेमाल वही लड़कियां कर सकती थीं जिन्हें किसी टूर्नामेंट के लिए चुन लिया गया हो। सुमराय बताती हैं इन सबसे अहम बात ये है कि आदिवासी, झारखंड और हॉकी के बीच बहुत गहरे संबंध रहे हैं। खेल आदिवासी समाज की जड़ों में है। लोक कथाओं में बताया गया है कि आदिवासी मवेशियों को चराते समय बांस की डंडियां अपने साथ ले जाया करते थे और उन्हें हॉकी स्टिक की तरह इस्तेमाल करते थे। आदिवासी समाज में खस्सी और मुर्गा टूर्नामेंट का जो चलन रहा है इसके तार भी कहीं न कही से हॉकी खेल से जुड़े हुए हैं। 

सुमराय की उपलब्धियां 
बहरहाल, सुमराय की उपलब्धियों की बात करें तो वो भारतीय टीम की कप्तानी करने वाली झारखंड की पहली महिला खिलाड़ी रही हैं। सुमराय एक दशक तक भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रहीं। 2002 के कॉमनवेल्थ खेलों में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता। इसी साल जोहांसबर्ग चैंपियंस ट्रॉफी में ब्रांन्ज हासिल किया। मैनचेस्टर राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण और 2003 में बुसान एशियन गेम्स में मेडल जीता। 2004 में उन्होंने नई दिल्ली में हुए एशिया कप में गोल्ड और 2006 में मेलबोर्न राष्ट्रमंडल खेलों में सिल्वर जीता। 2011 से 2014 तक वे भारतीय हॉकी टीम की सहायक कोच रहीं। 
हॉकी के इस शानदार और स्वर्णिम सफर का अंत 2006 में तब हो गया जब एक प्रैक्टिस के दौरान उनको घुटने में चोट लगी। इस चोट ने सुमराय टेटे के इंटरनेशनल करियर का अंत कर दिया। फरवरी 2011 में जब राष्ट्रीय खेलों का आयोजन रांची में हुआ तो सुमराय को डॉक्टरों ने खेलने से मना कर दिया। बहरहाल, 2017 में उनको ध्यानचंद लाइफटाइम अवार्ड के लिए नॉमिनेट किया गया। फिलहाल समुराय टेटे रांची रेलवे में कार्यरत हैं और झारखंड हॉकी की ब्रांड एंबेस्डर की भूमिका के साथ ही रांची रेलवे हॉकी टीम और राज्य के खिलाड़ियों के लिए कोच की भूमिका निभाती रही हैं।

 

हमारे वाट्सअप ग्रुप से जुड़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें : https://chat.whatsapp.com/FUOBMq3TVcGIFiAqwM4C9N