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मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव गए विदेश, यहां सचिवालयों में पसरा है सन्नाटा

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द फॉलोअप डेस्क
प्रोजेक्ट भवन, नेपाल हाउस, एमडीआई बिल्डिंग समेत झारखंड सरकार के अन्य सचिवालयों में सन्नाटा पसरा है। विभागों में न तो काम को लेकरअधिकारियों कर्मचारियों में कोई जोश या जज्बा दिख रहा है और ना ही कोई जिम्मेदारी का भाव या भय। टेकेन फॉर ग्रांटेड के तौर पर सचिवालयों में अधिकारी और कर्मचारी काम करते दिख रहे हैं। पूछने पर सीधा और साफ जवाब मिलता है। कोई काम ही नहीं है। न किसी नयी योजना को लेकर विभागों में चर्चा है और ना ही सरकार का किसी योजना को पूरा करने का दबाव। वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में ली गयी योजनाओं की खानापूर्ति करना, सचिवालयकर्मियों की एक मात्र जिम्मेदारी दिखती है। उसी काम को पूरा करने में दिन भर का समय खत्म हो रहा है।


हालांकि विधानसभा के बजट सत्र के बाद ही सचिवालयों में यह माहौल दिखने लगा था। लेकिन मुख्यमंत्री के विदेश दौरे पर जाने के बाद सचिवालयों में ना काम का भाव और गाढ़ा हो गया है। क्योंकि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में स्वीडन और स्पेन के दौरे पर जानेवाली 11 सदस्यीय टीम में राज्य के सभी आलाधिकारी भी शामिल हैं। राज्य की मुख्य सचिव अलका तिवारी, मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव अविनाश कुमार के अलावा उद्योग सचिव, उद्योग निदेशक व अन्य अधिकारी इनमें प्रमुख हैं। वित्त सचिव प्रशांत कुमार सात मई तक छुट्टी पर हैं। इसी तरह कुछ और भी अधिकारी लंबी छुट्टी पर हैं।
टास्क का कोई बड़ा असर नहीं दिखता
वैसे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन विदेश यात्रा पर जाने से पूर्व विभागीय सचिवों को टास्क देकर जरूर गए हैं। उन्हें प्राथमिकता के आधार पर जनहित से जुड़ी तीन-तीन योजनाओं के चयन का निर्देश दे गए हैं। उसे अगले डेढ़ साल में जमीन पर उतारने की समय सीमा भी तय कर दी है। लेकिन सरकार के इस तरह के आदेश का कोई तनावपूर्ण असर अधिकारियों पर नहीं दिख रहा है। इसके लिए सचिव रेस नहीं हैं। और जब सचिव रेस न हों तो कनीय अधिकारियों-कर्मचारियों का मनोभाव स्वतः समझा जा सकता है।


अब भी सचिवालयों में मंईयां योजना की ही चहुंओर चर्चा
हां मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना की चर्चा हर विभाग में है। भले ही यह योजना समाज कल्याण विभाग से सीधा जुड़ा है। मंईयां सम्मान योजना के लिए राशि की चिंता दूसरे विभाग ज्यादा कर रहे हैं। चर्चा के क्रम में राज्य में विकास से जुड़ी किसी बड़ी योजना के अमल में आने की संभावना को समाप्त र रहे हैं। बातचीत के क्रम में राज्य सरकार के आलाधिकारी भी कहते हैं-अब सरकार के भीतर और बाहर की गतिविधियों में तेजी का असर अगले चुनाव से एक-डेढ़ साल पहले ही दिखनेवाला है। फिलहाल उन लोगों के लिए लीजर पीरियड है। इस पीरियड में कुछ विशेष करना या न करना, कोई मायने नहीं रखता है। 

न अभी कोई चुनाव है और ना नगर निकाय चुनाव कराने की कोई जल्दीबाजी

राज्य में अभी कोई आम चुनाव नहीं है। ना ही विधानसभा चुनाव, ना लोकसभा चुनाव। ना ही कोई उप चुनाव। नगर निकायों का चुनाव कराने की एक मात्र जिम्मेदारी राज्य सरकार पर है। नगर निकायों के चुनाव 2020 से लंबित है। लेकिन चुनाव कराने को लेकर सरकार के शीर्ष स्तर पर कहीं कोई जल्दीबाजी नहीं है। राज्य निर्वाचन आयुक्त डॉ डीके तिवारी का कार्यकाल 25 मार्च को समाप्त हो चुका है। नये निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति नहीं हो सकी है। नगर निकायों में ओबीसी आरक्षण को लेकर ट्रिपल टेस्ट कराने की प्रक्रिया कछुए की गति से चल रही है। राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग में भी अध्यक्ष व सदस्यों का पद रिक्त है। सत्ता शीर्ष पर बैठे अधिकारी अब मानसून बाद ही नगर निकाय चुनाव की संभावना देख रहे हैं।

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