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राष्ट्रीय पुस्तक मेला में 'समय के सवाल' श्रृंखला के तहत प्रकाशित हरिवंश की 10 पुस्तकों पर हुआ संवाद 

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रांची

आज राष्ट्रीय पुस्तक मेला, रांची में लेखक-पत्रकार हरिवंश की 10 किताबों पर संवाद-परिचर्चा का आयोजन हुआ। 'समय के सवाल' श्रृंखला के तहत दस खंडों में प्रकाशित इन किताबों में देश-दुनिया के विविध विषयों के साथ ही दो विशेष खंड झारखंड पर केंद्रित है। ये आलेख हरिवंश के चार दशक की पत्रकारिता में विभिन्न प्रकाशन संस्थानों/पत्र-पत्रिकाओं में लिखे गये आलेखों का संकलन हैं। उल्लेखनीय है कि चार दशक की पत्रकारिता में हरिवंश ने धर्मयुग, रविवार, प्रभात खबर जैसे संस्थान के साथ काम किया है। इनमें करीब तीन दशक कार्यक्षेत्र झारखंड ही रहा है।

आयोजन में मुख्य अतिथि, वरिष्ठ पत्रकार-लेखक बलबीर दत्त ने कहा कि एक साथ दस किताबों का लोकार्पण ऐतिहासिक है। यह असंभव इसलिए संभव हुआ क्योंकि हरिवंश खूब लिखते पढ़ते हैं। दत्त ने कहा हरिवंश की ये किताबें 1977 से 2019 तक पर हैं। ये चार दशक पत्रकारिता के लिए अहम कालखंड रहा है। इस कालखंड में हरिवंश ने जनमुद्दों की पत्रकारिता की इसलिए इनका लेखन जन इतिहास भी है। 


बीज वक्तव्य देते हुए लेखक-प्राध्यापक और अध्येता रविदत्त वाजपेयी ने कहा कि इस श्रृंखला का नाम समय के सवाल है लेकिन हरिवंश जी अपने लेखन से सवालों का जवाब भी देते हैं। 1948 में कहा गया कि समाचार इतिहास का पहला रफ ड्राफ्ट होता है। लेकिन समय के साथ रफ शब्द हट गया। हरिवंश का लेखन रफ वाला हिस्ट्री नहीं बल्कि समय का प्रामाणिक दस्तावेज है, जिसका हमेशा महत्व है। 
आयोजन में विशिष्ट अतिथि के तौर पर अपना वक्तव्य देते हुए साहित्यकार महादेव टोप्पो ने कहा कि हरिवंश ने पत्रकार और संपादक के रूप में झारखंड और झारखंडियों को गढ़ा। एक पत्रकार का काम ही होता है समाज को आगे बढ़ाना। हरिवंश ने यही काम पत्रकार रूप में किया। इसलिए इन किताबों का महत्व हमेशा बना रहेगा। 

इस आयोजन में विशिष्ट वक्तव्य देने के लिए वरिष्ठ पत्रकार-लेखक अनुज कुमार सिन्हा और पत्रकार-सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला की उपस्थिति रही। अनुज कुमार सिन्हा ने कहा कि हरिवंश जी का पत्रकारिता में हमेशा अलग तेवर रहा। हरिवंश जी ने पत्रकारिता में हमेशा जीवंत अनुभव को लिखा। इन दस खंडों में प्रकाशित किताबों में है। लेखन में बेबाकीपन इनकी हमेशा रही। पत्रकार रहते हुए भी वह किसी समकालीन अध्येता, आंदोलनकारी, शोधकर्ता की तरह काम करते रहे इसलिए इनके लेखन में हमेशा प्रामाणिकता बनी रही। 

 दयामनी बारला ने कहा कि मेरा निजी अनुभव लंबा है। संपादक काल में न जाने कितने दलितों, आदिवासियों, वंचितों को पत्रकारिता में लाया। हरिवंश जी ने पत्रकारिता में सिर्फ सवाल नहीं उठाए बल्कि समाधान भी बताए। हरिवंश जी ने आदिवासी समाज को स्वर दिया। 

इस आयोजन में लेखकीय संवाद का आयोजन हुआ, जिसमें रांची के युवा प्राध्यापक प्रो विनय भरत ने पुस्तकों के लेखक  हरिवंश से बातचीत की। इस बातचीत में प्रो विनय भरत के सवालों का जवाब देते हुए हरिवंश ने कहा कि 21वीं सदी की चुनौती अलग है। अपढ़ वे नहीं होते जो पढ़ या लिख नहीं सकते बल्कि वे हैं जो समय के साथ नहीं चल सकते। आज की दुनिया में जगह बनाने के लिए किसी मुल्क के लिए सबसे जरूरी है तकनीक की ताकत बनना और आर्थिक महाशक्ति बनना। इन दोनों पैमाने पर अगर हम सक्षम नहीं हुए तो बड़ी चुनौती सामने होगी। लेकिन अगर इसे समाज और व्यक्ति के तौर पर देखें तो सबसे बड़ी चुनौती चरित्र और भोगवाद की बढ़ती प्रवृत्ति की है। आज दुनिया उपभोक्तावाद के कब्जे में है, पर भारत अपने मूल्यों का वाला देश रहा है। 


झारखंड के संदर्भ में बात करते हुए हरिवंश ने कहा कि यह तभी संभव है जब सबका मन बने। बिहार से अलग होने के बाद बिहार के सामने चुनौती बड़ी थी। बिहार के पास संसाधन नहीं थे। पर वही बिहार आज विकास में आगे निकल गया। झारखंड में तो सभी संभावनाएं हैं। यहां आदिवासी समाज रहता है। आदिवासी समाज की संस्कृति से दुनिया प्रेरणा लेती है। यहां के लोगों में नैतिक ताकत है। झारखंड विकसित राज्य बनेगा तो देश का मॉडल बनेगा क्योंकि यहां के निवासियों की नैतिक ताकत मजबूत है। 
आयोजन की शुरुआत में सभी अतिथियों का स्वागत प्रकाशन संस्थान के प्रमुख हरिश्चंद्र शर्मा ने किया। उन्होंने स्वागत वक्तव्य में पुस्तक संस्कृति के संकट पर सवाल उठाये और कहा कि पाठकों के साथ ही सरकारों का भी दायित्व है कि पुस्त्कालयों का विकास, पुस्तक संस्कृति का विकास हो। पुस्तकों का सेट और अंगवस्त्र देकर सभी अतिथियों का सम्मान लेखक हरिवंश ने किया। आयोजन का संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी और लेखक अनीश अंकुर ने किया।


 

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