मनोहर महाजन, मुम्बई:
हिंदी सिनेमा के गीतों को पूर्वांचली भाषाओं की ख़ुशबू से महकाने वाले गीतकार का नाम 'अनजान' (28 अक्टूबर1930-13 सितंबर1997) ही तो था। अजी बनारस निवासी लाल जी पांडे की बात कर रहा हूँ..सही समझे!! सही मायनों में इंसानी एहसासों और जज़्बात को गीतों में ढालने वाले चितेरे थे। सरल, सहज अल्फ़ाज़ के ज़रिए वो लोगों के दिलों में अपनी सल्तनत क़ायम कर लेते थे। बनारस के रहने वाले लाल जी पांडे यानी अनजान का गीतकार बनने का सफ़र बड़े ही पेचीदा मोड़ से होकर गुज़रा है। चलिये, आपको थोड़ा अतीत की तरफ़ ले चलते हैं। एक बार गायक मुकेश बनारस आए हुए थे। मुकेश वहां के मशहूर होटल क्लार्क में ठहरे थे। होटल के मालिक ने उनसे गुज़ारिश की कि वह एक दफ़ा लालजी पांडे याने 'अनजान' साहब की कविता सुन लें। मुकेश ने जब कविता सुनी तो बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने अंजान को फ़िल्मों में गीत लिखने की सलाह दी। उस समय अनजान 'अस्थमा' के रोग से जूझ रहे थे। उन्होंने मुकेश की सलाह पर अमल नहीं किया. अनजान के बेटे समीर जो ख़ुद भी एक सफल और लोकप्रिय गीतकार हैं, एक इंटरव्यू में बताया :"पापा का अस्थमा बहुत बढ़ गया था और डॉक्टरों ने मशविरा दिया कि अगर किसी सागर के तट पर जाएंगे,तभी अस्थमा कंट्रोल हो पाएगा. ड्राइ क्लाइमेट में रहेंगें तो बचने की संभावना बहुत कम रहेगी." अंततः उन्हें बनारस के पुरसुकून और ख़ुशगावर माहौल को इस बीमारी की वजह से ही छोड़कर मुंबई का रूख़ करना पड़ा।
28 अक्टूबर 1929 को बनारस में पैदा हुए अंजान ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.कॉम की पढ़ाई की। 1953 में मुंबई आ गए। ज़िंदगी को दोबारा शुरू करने के लिए उन्होंने मुकेश जी से मुलाक़ात की। जिसके बाद मुकेश ने उन्हें एक्टर निर्देशक प्रेमनाथ से मिलवाया, जो अपनी फ़िल्म के लिए किसी गीतकार की तलाश में थे। अनजान ने प्रेमनाथ की फ़िल्म 'प्रिजनर-ऑफ-गोलकोंडा' के लिए गाने लिखे। लेकिन गाने मक़बूल नहीं हुए। पहली फ़िल्म मिलने के बाद भी 'शोहरत' उन्हें काफ़ी बाद में जाकर मिली। समीर बताते हैं कि सफ़लता की सारी ऊंचाईयों पर उन्हें फ़िल्म 'डॉन' ने पहुंचाया। अनजान ने वैसे तो अपने समय के सभी दिग्गज संगीतकारों के साथ काम किया, लेकिन कल्याणजी आनंदजी के साथ उनकी जोड़ी खूब जमी.फ़िल्म डॉन के बाद अनजान का सदी के नायक अमिताभ बच्चन से ख़ास तरह का रिश्ता बन गया था.उन्होंने अमिताभ की कई फ़िल्मों के लिए गाने लिखे. जिनमें 'डॉन', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'याराना', 'नमक हलाल' और 'शराबी' उनके करियर में चमचमाते मील का पत्थर रहीं. अपने गीतों के माध्यम से सितारों की जगमगाती दुनिया में अनजान ने एक ऐसा मुक़ाम हासिल किया,जो ताज़िन्दगी संगीतप्रेमियों के दिलों में क़ायम रहेगा।
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उनके लिखे यादगार गीतों में, 'ओ खाइके पान बनारस वाला, खुल जाए बंद अकल का ताला...' 'इंतहा हो गई इंतज़ार की'आई ना कुछ खब़र, मेरे यार की...', 'गोरी हैं कलाईयां तू ला दे मुझे हरी हरी चूड़ियां..' 'तेरे जैसा यार कहां, कहां ऐसा याराना...,'छू कर, मेरे मन को, किया तूने, क्या इशारा..' 'मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है'... जैसे बेहतरीन गीत क्या भुलाए जा सकते हैं( हिंदी सिनेमा को एक से एक सोने की डालियों जैसे गीत देने वाले इस गीतकार को अपने कुछ गीतों पर एतराज़ भी रहा( बेटे समीर बताते हैं, "जब पापा ने फ़िल्म 'डिस्को-डांसर' के गाने लिखे तो उन्होंने मुझसे कहा कि ऐसा लग रहा जैसे मैं अपने क़लम के साथ दुष्कर्म कर रहा हूँ। लोग ये कैसे-कैसे गाने लिखवा रहे हैं।" अनजान को एक बात का और भी सालती रही है कि कई 'सदाबहार और कालजयी नग़मे' लिखने के बावजूद उन्हें 'फ़िल्म फेयर' का कोई भी अवॉर्ड नहीं दिया गया। सिनेमा को भोजपुरी और पूर्वांचली भाषाओं की खुश्बू से महकाने वाले गीतकार 'अनजान' आख़िर इस दुनिया से 3 सितंबर 1997 को कूच कर गए.लेकिन अपने गीतों में वो हमेशा ज़िंदा रहेंगे। आज ऐसे ही शानदार गीतकार की 92वीं सालगिरह है।
(मनोहर महाजन शुरुआती दिनों में जबलपुर में थिएटर से जुड़े रहे। फिर 'सांग्स एन्ड ड्रामा डिवीजन' से होते हुए रेडियो सीलोन में एनाउंसर हो गए और वहाँ कई लोकप्रिय कार्यक्रमों का संचालन करते रहे। रेडियो के स्वर्णिम दिनों में आप अपने समकालीन अमीन सयानी की तरह ही लोकप्रिय रहे और उनके साथ भी कई प्रस्तुतियां दीं।)
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