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जयंती: मुहं टेढ़ा होने के कारण मां-बाप ने जिस बेटी को किसी और को सौंप दिया, वह बनीं नृत्य की सितारा

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मनोहर महाजन, मुम्बई:

सितारा देवी का जन्म 8 नवंबर 1920 को कोलकाता में हुआ था। इनका मूल नाम 'धनलक्ष्मी' और घर में 'धन्नो' था। इनके पिता का नाम पंडित सुखदेव महाराज था-जो एक नृत्यकार थे। उनकी तीन पुत्रियाँ थीं अलक नंदा, तारा और सितारा। सितारा सबसे छोटी थी। सितारा को बचपन में मां-बाप के लाड-दुलार से वंचित होना पड़ा था। कारण था - उनके मुंह का टेढ़ा होना। भयभीत मां-बाप ने उसे एक दाई को सौंप दिया जिसने आठ साल की उम्र तक उसका पालन-पोषण किया। इसके बाद ही सितारा देवी अपने मां बाप को देख पाईं। उस समय की परम्परा के अनुसार सितारा देवी का विवाह आठ वर्ष की उम्र में ही कर दिया गया। ससुराल वाले चाहते थे कि वह घरबार संभालें लेकिन वह स्कूल में पढना चाहती थीं। स्कूल जाने  की इसी ज़िद के कारण उनका विवाह टूट गया और उन्हें 'कामछगढ हाई स्कूल' में दाखिल कराया गया। स्कूली शिक्षा के दौरान उन्होंने 'सत्यवान और सावित्री' की पौराणिक कहानी पर आधारित एक नृत्य नाटिका में एक शानदार भूमिका निभाई। एक अखबार ने उनके नृत्य प्रदर्शन के बारे में लिखा था,"एक बालिका धन्नो ने अपने नृत्य प्रदर्शन से दर्शकों को चमत्कृत किया।" इस खबर को उनके पिता ने भी पढा और बेटी के बारे में उनकी राय बदल गई।

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इसके बाद धन्नो का नाम सितारा देवी रख दिया गया और उनकी बडी बहन तारा को उन्हें नृत्य सिखाने की जिम्मेदारी सौंप दी गई। बाद में सितारा देवी ने शंभु महाराज और पंडित बिरजू महाराज के पिता अच्छन महाराज से भी नृत्य की शिक्षा ग्रहण की। दस वर्ष की उम्र होने तक वह एकल-नृत्य का व्यवसायिक प्रदर्शन करने लगीं।। वो पिता के एक मित्र के सिनेमा हाल में फिल्म के बीच में पंद्रह मिनट के मध्यान्तर के दौरान अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया करती थीं। नृत्य की लगन के कारण उन्हें स्कूल छोडना पड़ा और ग्यारह वर्ष की आयु में उनका परिवार मुम्बई चला गया। मुंबई आने के बाद सितारा देवी ने 'आतिया बेगम पैलेस' में कथक की प्रस्तुति दी। इस कार्यक्रम में रविंद्रनाथ टैगोर, सरोजनी नायडू और सर जहांगीर भी शामिल थे। रबीन्द्र नाथ टैगोर उनके नृत्य से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें 'नृत्य साम्राज्ञी' का नाम दिया दे दिया।

यहीं से कथक के विकास और उसे लोकप्रिय बनाने की दिशा में उनके साठ साल लंबे नृत्य व्यवसाय का आरंभ हुआ। अपने लंबे नृत्य कार्यकाल के दौरान सितारा देवी ने देश-विदेश में कई कार्यक्रमों और महोत्सवों में चकित कर देने वाले लयात्मक ऊर्जा से भरपूर नृत्य प्रदर्शनों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया है। वह लंदन में प्रतिष्ठित 'रायल अल्बर्ट' और 'विक्टोरिया हाल' तथा न्यूयार्क में 'कार्नेगी हाल' में अपने नृत्य का जादू बिखेर चुकी हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि सितारा देवी न सिर्फ कथक बल्कि भारतनाट्यम सहित कई भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों और लोकनृत्यों में भी पारंगत थीं। उन्होंने 'रूसी बैले' और पश्चिम के कुछ और नृत्य भी सीखें । सितारा देवी के कथक में 'बनारस' और 'लखनऊ' घराने के तत्वों का उच्चस्तरीय सम्मिश्रण दिखाई देता था। वह उस समय की कलाकार हैं- जब पूरी-पूरी रात कथक की महफिल जमी रहती थी।

 

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सितारा देवी के व्यक्तित्व का एक भाग चलचित्र से भी जुडा है। सवाक फिल्मों के युग में उन्होंने कुछ फिल्मों में भी काम किया। फिल्म निर्माता और नृत्य निर्देशक निरंजन शर्मा ने फ़िल्म 'उषा हरण' के लिए उन्हें तीन माह के अनुबंध पर चुना और वह 12 वर्ष की उम्र में ही सागर स्टूडियोज के लिए नृत्यांगना के रूप में काम करने लगीं। शुरुआती फिल्मों में उन्होंने मुख्यत छोटी भूमिकाएं निभाईं और नृत्य प्रस्तुत किए। उनकी फिल्मों में 'शहर का जादू' (1934), 'जजमेंट ऑफ अल्लाह' (1935), 'नगीना', 'बागबान', 'वतन' (1938), 'मेरी आंखें' (1939) 'होली', 'पागल', 'स्वामी' (1941), 'रोटी' (1942), 'चांद' (1944), 'लेख' (1949), 'हलचल' (1950) और 'मदर इंडिया' (1957) प्रमुख हैं। उस दौर में उन्हें 'सुपर-स्टार' का दर्जा हासिल था। इसके अलावा वह मधुबाला, रेखा, माला सिन्हा और काजोल की नृत्य गुरू भी रहीं। लेकिन नृत्य की ख़ातिर आगे चलकर उन्होंने फ़िल्मों से किनारा कर लिया।


कला और नृत्य में विशेष योगदान देने के लिए सितारा देवी को 1970 में पद्मश्री और 1994 में कालीदास सम्मान मिला था । इसके अलावा 1969 में उन्हें 'संगीत नाटक अकादमी' पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। साल 2002 में उन्हें 'पद्मभूषण' सम्मान दिया जाने वाला था लेकिन उन्होंने ये पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था। इसको न लेने की वजह बताते हुए सितारा देवी ने कहा था कि वो 'भारत रत्न'से कम कोई अवॉर्ड नहीं लेंगी। सितारा देवी की तीन शादियां हुईं। तीसरी शादी से उनको एक बेटा हुआ जिसका नाम रंजीत बरोट है, जो एक ख्यातिप्राप्त म्यूज़िक कंपोजर हैं। लंबी बीमारी के बाद 25 नवंबर 2014 को सितारा देवी का मुंबई में निधन हो गया। आज भले ही सितारा देवी हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन उनकी पहचान उनकी कला और घुंघरुओं पर थिरकती उनकी छवि हमेशा लोगों के ज़हन में जिंदा रहेगी। उनकी 101 वीं सालगिरह पर हम उनका नमन करते हैं।

 

 

(मनोहर महाजन शुरुआती दिनों में जबलपुर में थिएटर से जुड़े रहे। फिर 'सांग्स एन्ड ड्रामा डिवीजन' से होते हुए रेडियो सीलोन में एनाउंसर हो गए और वहाँ कई लोकप्रिय कार्यक्रमों का संचालन करते रहे। रेडियो के स्वर्णिम दिनों में आप अपने समकालीन अमीन सयानी की तरह ही लोकप्रिय रहे और उनके साथ भी कई प्रस्तुतियां दीं।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।