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मीराबाई चानू: लकड़ियां बीनने वाली लड़की कैसे बनी ओलंपिक चैंपियन, जानिए! संघर्ष की पूरी कहानी

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द फॉलोअप टीम, रांची: 

 

टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत के पदकों का खाता खुला। भारत की मीराबाई चानू ने वेटलिफ्टिंग में सिलवर मेडल जीतकर पदकों का खाता खोला। मीराबाई चानू सोशल मीडिया में ट्रेंड कर रही हैं। तमाम आम और खास लोग मीराबाई चानू को बधाइयां दे रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी मीराबाई चानू को बधाई दी। मीराबाई चानू के गले में चांदी का तमगा चमक रहा है। खुद मीराबाई किसी सितारे की तरह चमकी हैं। सालों मेहनत के बाद मीराबाई ने ये कामयाबी हासिल की है। इस स्टोरी में हम आपको उनके संघर्ष की दास्तां सुनाएंगे। 

तीरंदाजी से वेटलिफ्टिंग की तरफ कैसे मुड़ीं
पीडब्ल्यू-डी में काफी निचले स्तर पर काम करने वाले पिता और एक छोटी सी दुकान चलाने वाली मां की बेटी मीराबाई चानू का बचपन अभाव में बीता। मणिपुर की राजधानी इंफाल से 20 किमी सुदरवर्ती एक पहाड़ी के पास मौजूद गांव में मीराबाई का जन्म हुआ था। मीराबाई स्कूल में पढ़ाई के दरम्यान तीरंदाज बनना चाहती थीं। उन दिनों मीराबाई अपनी बड़ी बहन सनातोम्बा के साथ जलावन के लिए लकड़ियां बीनने जाया करती थीं। ये कोई साल 2007-8 की बात है। एक दिन दोनों बहनों ने जलावन के लिए लकड़ी इकट्ठा की। लकड़ियों का गट्ठर उस दिन कुछ भारी था। तब मीराबाई की उम्र यही कोई 12 साल रही होगी। उनकी बड़ी बहन गट्ठर को उठा नहीं पा रही थीं। अचानक मीराबाई ने कहा कि मैं कोशिश करूं। सनातोम्बा को लगा कि जो गट्ठर उनसे नहीं उठाया जा रहा है मीराबाई क्या उठाएंगी। फिर भी उन्होंने हां कह दिया। वो तब हैरान रह गईं जब मीराबाई ने ये कर दिखाया। 

वेटलिफ्टिंग की नैसर्गिक प्रतिभा थीं चानू में 
मीराबाई में ये शायद नैसर्गिक प्रतिभा थी। उनमें कुदरती ताकत थी। वो लकड़ियों का भारी से भारी गट्ठर आसानी से उठा लेती थीं। हालांकि, ऐसा नहीं था कि मीराबाई ने ठान लिया था कि वो वेटलिफ्टिंग करेंगी। हमने आपको पहले ही बताया कि मीराबाई तीरंदाज बनना चाहती थीं। गौरतलब है कि जब मीराबाई 8वीं कक्षा में थीं तो उनकी किताब में मशहूर वेटलिफ्टर कुंजरानी देवी का जिक्र था। इंफाल की रहने वाली कुंजरानी ने भारतीय वेटलिफ्टिंग इतिहास में सबसे ज्यादा पदक जीता था। कुंजरानी की कहानी ने ही मीराबाई को वेटलिफ्टिंग को बतौर करियर चुनने के लिए प्रेरित किया। यहीं से उनकी यात्रा शुरू हुई जिसका पहला पड़ाव था 2014 का ग्लासगो कॉमनवेल्थ। 

वेटलिफ्टिंग में मीराबाई चानू को आई मुश्किलें
मीराबाई चानू ने तय तो कर लिया था कि उनको वेटलिफ्टर बनना है लेकिन कैसे। केवल लकड़ियों का गट्ठर उठाकर तो वेटलिफ्टिंग नहीं की जा सकती थी। इसके लिए नियमित और अच्छे प्रशिक्षण की जरूरत थी। मीराबाई ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वेटलिफ्टिंग के लिए सबसे नजदीकी भी काफी दूर था। रोज 60 किमी का सफर तय करना होता था। इसमें से भी काफी हिस्सा पैदल तय करना था। पर, मीराबाई ने इसे बहाना नहीं बनाया। वो लगी रहीं। माता-पिता और बड़ी बहन ने साथ भी दिया। वो एक-एक पायदान चढ़ती गईं और आखिरकार 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में मीराबाई ने रजत पदक जीतकर इतिहास रच दिया। पहली बार मीराबाई नोटिस की गईं। 2016 के रियो ओलंपिक्स के ट्रायल में मीराबाई ने कोच कुंजरानी का राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया। 

जब मीराबाई ने तोड़ा वेटलिफ्टिंग का राष्ट्रीय रिकॉर्ड
राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़कर मीराबाई सुर्खियों में आ गईं। वो रियो ओलंपिक्स के लिए क्वालीफाई कर चुकी थीं। उनको पदक का सबसे बड़ा दावेदार बताया जा रहा था। हालांकि रियो ओलंपिक्स में मीराबाई के साथ-साथ पूरे देश को निराशा हाथ लगी। मीराबाई क्लीन एंड जर्क के अपने तीनों प्रयासों में नाकाम रही। पदक तो दूर, मीराबाई वजन ही नहीं उठा पाई। उनकी खूब आलोचना हुई। उनके कोच विजय शर्मा पर भी खूब आरोप लगे। तब मीराबाई ने आलोचनाओं का जवाब देते हुए कहा कि ओलंपिक्स के लिए किसी ने मेरा समर्थन नहीं किया। मैं जब ओलंपिक्स में मेडल जीतने से चूक गई तो लोग मेरी और कोच की आलोचना कर रहे हैं जबकि मैं केवल इन्हीं की बदौलत यहां तक पहुंची। मीराबाई चानू ने कहा कि मैं आप सभी को भरोसा दिलाती हूं कि मैं खत्म नहीं हुई। 

कॉमनवेल्थ गेम्स से लेकर एशियन गेम तक सितारा बुलंद
मीराबाई ने सही ही कहा था। 2017 के वर्ल्ड चैंपियनशिप में मीराबाई चानू ने स्वर्ण पदक जीता। कर्णम मल्लेश्वरी के बाद मीराबाई दूसरी भारतीय वेटलिफ्टर थीं जिन्होंने गोल्ड जीता हो। इसके बाद 2018 के कॉमनवेल्थ गेम्स में मीराबाई चानू ने गोल्ड जीता। 2021 के एशियन चैंपियनशिप में मीराबाई ने ब्रॉंच जीता। अब रियो ओलंपिक में हुई आलोचनाओं का जवाब देते हुए मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में रजत पदक जीत लिया है।