logo

चुनावी वादों वाले 'विकास' से अलग है लातेहार के इन गांवों की हकीकत, 2 दशक बाद भी नहीं बदली तस्वीर

12856news.jpg

गोपी कुमार सिंह, लातेहार: 

झारखंड में इन दिनों नमाज़ के लिए आवंटित कमरे पर बहस छिड़ी हुई है। विपक्ष कमरे का विरोध कर रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी भोजपुरी और मगही पर पर बयान देकर विवाद खड़ा कर दिया है। विपक्ष भी इन्हीं मुद्दों पर सरकार को घेरने में पूरी तरह मशगूल है, लेकिन झारखंड के किसी गांव-कस्बे में बैठे आदिम जनजाति समुदाय के लोग इस बात की बाट जोह रहे है कब उनकी तक़दीर बदलेगी। कब उनके यहां वादों में सुनाई देने वाला विकास दस्तक देगा। 

लातेहार जिला के कई गांवों तक नहीं पहुंचा विकास
बात लातेहार की है। जिला मुख्यालय से तकरीबन 101 किलोमीटर दूर गारू के बारेसाढ़ थाना क्षेत्र अंतर्गत स्थित मंगरा, हेठडीह और उसके आस-पास पड़ने वालों गांवों की स्थिति बदहाल है। इन गाँवों में विकास की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी पुल और सड़क नहीं है। गांव के लोग घने जंगलों के बीच से चलकर बनाए हुए कच्ची सड़कों और पगडंडियों के रास्ते आना-जाना करते हैं। रास्ता उतना आसान नही है। रास्ते मे जंगली जानवर, दुर्गम पहाड़ियों और नक्सलियों के द्वारा लगाए जाने वाले आईडी बम। इनसे किसी भी वक्त ग्रामीणों का सामना हो सकता है। दुर्गमता चुनौती है। 

शाम ढलते ही आवागमन में होती है काफी परेशानी
कोई गांव से बाहर गया है और कहीं शाम ढल गई तो समझिए घर तक पहुंचना किसी जंग से कम नही है। गांव तक पहुंचने के 2 रास्ते हैं। एक मुख्य पथ है लेकिन सिर्फ पैदल ही गांव तक जाना होगा। आप बाइक या कोई दूसरा वाहन लेकर गांव तक नहीं पहुंच सकेंगे। चूंकि रास्ते मे नदी है और नदी पर पुल नही है, दूसरा रास्ता ग्रामीणों ने खुद बनाया है। घने जंगलों के बीच से 4 किमी पैदल चलकर गांव तक पहुंचना होता है। यही कारण है कि यहां के अधिकतर युवा पलायन कर चुके हैं। गांव में एक बड़ी समस्या लोगों को धीरे-धीरे अपनी गिरफ्त में लेती जा रही है।

सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में धर्मांतरण का खेल जारी! 
दरअसल रिपोटिंग के दौरान हमारी टीम ने य देखा कि कई लोगों के गले मे क्रॉस का प्रतीक चिन्ह बना माला लटका हुआ है। क्रॉस बना हुआ माला क्रिश्चियन समुदाय के लोग पहनते है। वे ईसा-मसीह को भगवान मानते हैं, जबकि आदिम जनजाति समुदाय के लोग हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार भगवान की पूजा करते हैं। मतलब साफ़ है इन इलाकों में धर्म परिवर्तन का खेल चल रहा है। ख़बर यह भी है कि पूरे जिले भर में धर्म परिवर्तन जोरों पर हो रहा है।

ग्रामीणों को नसीब नहीं है एक अदद दवाई और इंजेक्शन
अगर मंगरा और हेठडीह गांव की आबादी की बात करें तो दोनों गांवों को मिलाकर कुल 25 घर हैं। जहां लगभग 200 से अधिक आदिम जनजाति परिवार के लोग निवास करते हैं। गांव में खेती के अलावा कोई दूसरा साधन नहीं है। लोग खेती पर ही आश्रित हैं। गांव में सरकारी सुविधा के नाम पर महज एक स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्र मिला हुआ है। आंगनबाड़ी केंद्र बंद रहता है। स्कूल में शिक्षक पहुंच नहीं पाते,क्योंकि गांव तक जाने का रास्ता बदहाल और बदतर है। स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्र का भवन खंडहर में तब्दील हो चुका है। गांव में गिनती से एक -दो लोगो को आवास मिला हुआ है जिसका निर्माण सालों बाद भी अधूरा है। मतलब यह योजना भी बिचौलियों की भेंट चढ़ चुकी है। गांव के लोग अगर बीमार पड़ते हैं तो इलाज का कोई प्रबंध नहीं है। दवाई की एक गोली या इंजेक्शन भी नसीब नहीं हो पाता है।

झोला-छाप डॉक्टर से इलाज करवाते हुए बच्ची की मौत
गांव से तकरीबन 4 किमी घने जंगलों से होकर गुजरने के बाद बारेसाढ़ पहुंचने के बाद इलाज या दवाई मिल जाती है लेकिन वो भी झोला छाप डॉक्टरों से। इस बात से ही आप अंदाजा लगा सकते है कि गांव में अगर अचानक कोई किसी बीमारी से ग्रसित हो जाये और उसे तत्काल इलाज की जरूरत हो तो किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। ग्रामीण जोसेफ ब्रिजिया ने बताया कि गांव के कई लोग बिन इलाज काल के गाल में समा चुके हैं, लेकिन सुविधाओं आज भी वही हैं। हम सालों-साल से देखते आ रहे हैं। मतलब गांव के लोगों का जीवन पूरी तरह नारकीय हो चुका  है। 13 सितंबर दिन सोमवार को इसी गांव में बीरेंद्र ब्रिजिया की 5 वर्षीय बेटी अनुष्का कुमारी अज्ञात बीमारी के कारण मौत के मुंह में समा चुकी है। अनुष्का विगत कई दिनों से बीमार थी। गांव वालों में जानकारी का अभाव है। वे उसे किसी सरकारी अस्पताल में न ले जाकर एक झोलाछाप डॉक्टर से दवाई करा रहे थे।

गारू रेफरल अस्पताल में भी इलाज की समुचित सुविधा नहीं
इस लापरवाही का जिम्मेदार गारू रेफ़रल अस्पताल के चिकित्सा को ठहराया गया है। बारेसाढ़ निवासी पत्रकार उमेश कुमार यादव ने गांव में लोगों के बीमार होने की ख़बर उन्हें दी थी, लेकिन उन्होंने गंभीरता नही दिखाई। इस बात की कीमत अनुष्का को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। हालांकि अनुष्का की मौत के बाद में स्वास्थ्य विभाग की टीम पहुंची। 25 घरों में सर्दी, ज़ुखाम, दस्त, बुखार आदि की दवा लोगों को दी। इसके आलावा बीमार कई लोगो को रेफ़रल अस्पताल साथ लेकर गई। गांव में कई ऐसे और लोग थे जिन्हें उपचार की जरूरत थी। आरोप है कि स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उनके इलाज में दिलचस्पी नहीं दिखाई। इससे यह साफ है कि स्वास्थ्य विभाग की टीम महज खाना पूर्ति करने के लिए गांव पहुंची थी। उसी गांव के जोसेफ ब्रिजिया की 19 वर्षीय बेटी आरती कुमारी तेज बुखार के कारण एक कम्बल के सहारे जमीन पर सो रही थी।जोसेफ ब्रिजिया की दूसरी बेटी को भी बुख़ार था।

स्वास्थ्य विभाग की टीम ने गांव जाकर की खानापूर्ति
जब हमारी टीम उस गांव में थी उस वक्त वो कुछ लकड़ियां जलाकर आग के पास बैठी हुई थी। नाम न लिखने की शर्त पर गांव के ही एक ग्रामीण ने बताया कि गांव में 25 घर हैं। सभी घर मे 1-2 लोग बीमार है। बीमार लोगों में बुजुर्ग, बच्चे एवं नवयुवक शामिल हैं। स्वास्थ्य विभाग कुछ ही लोगों को इलाज़ के लिए गारू रेफ़रल अस्पताल लेकर गई है। गारू रेफ़रल अस्पताल में भी इलाज की कितनी सुविधा है और कितने होनहार डॉक्टर हैं किसी से छिपा नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि रेफ़रल अस्पताल में डॉक्टर ग्रामीणों का इलाज सही ढंग से नहीं करते हैं। कमोबेश हुआ भी हूबहू यही। जिन लोगों को गारू रेफ़रल अस्पताल इलाज के लिए ले जाया गया था, उन्होंने दूसरे दिन सुबह अस्पताल से गांव के लिए रवाना कर दिया। 

खराब पड़ा है जलमीनार, चुवाड़ी का पानी पीते हैं ग्रामीण
अब यह तो डॉक्टर ही जानें कि रात भर में ऐसा कौन सा रामबाण इलाज कर गांव वालों को घर भेज दिया गया। बहरहाल, गांव में शुद्ध पेयजल नहीं होना भी गांव के लोगो को हो रही बीमारी का मुख्य कारण हो सकता है। इसकी जांच करना स्वास्थ्य विभाग की टीम ने मुनासिब नहीं समझा, जबकि लोग बताते है कि गांव में एक सोलर मोटर टंकी लगा हुआ। धूप नहीं होने के कारण हमलोग उसका लाभ कम ही ले पाते हैं। पीने का पानी चुवाड़ी से लेकर आते हैं। उसे ही सभी लोग पीते भी हैं। बता दें कि चुवाड़ी का पानी पूरी तरह मटमैला होता है। उससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। 

भाजयुमो कार्यसमिति सदस्य आशुतोष सिंह ने किया दौरा
पांच वर्षीय अनुष्का की अज्ञात बीमारी से मौत की ख़बर सुनते ही भाजयुमो के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य आशुतोष सिंह चेरो ने भरी बारिश के बीच घने जंगलों से होते हुए मंगरा एवं हेठडीह गांव का निरीक्षण किया। वे बिरेंद्र ब्रिजिया के घर पहुंचे। बिरेंद्र ब्रिजिया के बड़े बेटे रंजन कुमार एवं बेटी सुसीता कुमारी ने घटना की पूरी जानकारी दी। बिरेंद्र ब्रिजिया गारू रेफ़रल अस्पताल इलाज़ के लिए गए हुए थे, जिस कारण उनसे मुलाक़ात नही हो पाई। आशुतोष ने पूरे गांव का भ्रमण किया। लोगों से बातचीत कर उनकी समस्या से रूबरू हुए। गांव की वस्तुस्थिति से अवगत होने के बाद उन्होंने कहा आधुनिकता के इस दौर में आदिवासी आज भी मूलभूत सुविधा से वंचित हैं। गांव के अधिकतर लोग बीमार हैं।  स्वास्थ्य विभाग की टीम को इस गांव में शिविर लगाकर लोगों की जांच करनी चाहिए। यह दुर्भाग्य है स्वास्थ्यकर्मी सिर्फ खानापूर्ति के लिए रात भर लोगों को अस्पताल में रखकर सुबह घर भेज दे रहे हैं। 

लातेहार के ग्रामीण इलाकों में अधिकांश बच्चे हैं अशिक्षित
कहा कि गांव में अधिकतर बच्चे अशिक्षित हैं। इसका मुख्य कारण सरकार की लापरवाही है। अगर इस गांव से शहरी इलाकों तक जाने इंतजाम होता तो शायद ये बच्चे भी एक अच्छा मुक़ाम का सपना देख सकते थे। यह सरकार और सिस्टम की उदासीनता है। उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं भी मयस्सर नही हैं। आशुतोष कहते है कि यही कारण है कि गांव में एक भी युवा नहीं। यहां के अधिकतर युवा रोजगार के लिए बाहर पलायन कर चुके हैं। बाकी जो लोग गांव में है उनका भी बहला-फुसलाकर धर्म परिवर्तन किया जा रहा है। मैंने खुद कई लोगो के गले मे मिशनरी का प्रतीक चिन्ह लटका हुआ देखा है, जबकि मैं ख़ुद एक आदिवासी समुदाय से आता हूं।  हम लोगों के समुदाय का ऐसा कोई प्रतीक चिन्ह नहीं होता है। उन्होंने कहा कि जरूरी है कि सिस्टम और जनप्रतिनिधि ऐसे गांवों का दौरा कर स्थिति से अवगत हों। 

जंगल से लकड़ियां बीनने में बीत जाता है पूरा बचपन
मंगरा और हेठडीह गांव के बच्चो को देखें तो वे या घर के काम मे हाथ बंटाते हुए नजर आए या फ़िर गांव के किसी खाली खेत मे बिना चप्पल नंगे बदन अठखेलियां खेलते हुए नजर आएंगे। अब ऐसा नही है कि उनकी चाहत नहीं है कि वे टीवी देखते, इंटरनेट की दुनिया से जुड़कर देश दुनिया मे क्या चल रहा है उससे रूबरू होते। विडंबना है कि वे उस गांव में पैदा हुए जहां से विकास कोसों दूर हैं। गांव में न बिजली है और न ही इंटरनेट की कोई सुविधा। गांव में आज तक किसी के घर मे न टीवी है और न ही मोबाइल। अधिकतर बच्चे पढ़ने-लिखने की उम्र में या खेतों में काम करते नजर आए या जंगलों में शाम के वक्त का खाना बनाने के लिए सब्जियों और लकड़ियों का प्रबंध करते हुए। 

पूर्ववर्ती विधायक को तो गांवों का नाम तक नहीं पता! 
पूर्ववर्ती रघुवर सरकार का यह दावा था कि ग्रामीण इलाकों में सड़कों का जाल बिछा है। गांव को कस्बे से और कस्बों को शहर से जोड़ने में कामयाब मिली है। दावा ये भी था कि गांव में स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय बनाकर लोगों को खुले में शौच मुक्त करने का काम भी हमारी सरकार ने किया है। हकीकत इसके उलट है। जिस गांव के नाम का जिक्र हमने इस ख़बर मे किया है, वहां न तो सड़क है और न ही एक भी ऐसा शौचालय जिससे ये कहा जा सके लोग खुले में शौच मुक्त हुए है। अब आप विकास की अहम कड़ी को समझ लीजिए। दरअसल झारखंड की बाग़डोर जब मुख्यमंत्री रघुवर दास के हाथ में थी उस वक्त के मनिका विधानसभा से हरेकृष्णा सिंह विधायक हुआ करते थे। हरेकृष्णा सिंह 10 साल तक इस विधानसभा से विधायक रहे हैं, लेकिन इन 10 सालों में उन्होंने मंगरा और हेठडीह गांव का एक बार भी दौरा नहीं किया है। ख़बर ये भी है कि उन्हें इन गांवों का नाम तक पता नहीं है।

गांव तक विकास की रोशनी नहीं पहुंचने का जिम्मेदार कौन
अब यह तय आपको करना है कि इन गांवों में विकास नहीं पहुंच पाने का रोड़ा किसे समझते है। हालांकि इस मसले पर बातचीत के लिए पूर्व विधायक और वर्तमान में भाजपा जिला अध्यक्ष से हमने फोन कर संपर्क करने की कोशिश की। 4 दफ़ा फोन करने के बाद भी उन्होंने फोन उठाने की ज़हमत नहीं उठाई। बहरहाल, अब मनिका विधानसभा के वर्तमान विधायक रामचंद्र सिंह की बात भी कर लेते है। यहां एक बात बताना बेहद जरूरी है। पूर्व और वर्तमान दोनों ही विधायक आदिवासी समुदाय से आते हैं। वर्तमान विधायक रामचंद्र सिंह की बात की जाए तो अभी तक इन क्षेत्रों के लिए कुछ खास नहीं कर पाए हैं। या यूं कहें कि आदिवासी हित का दावा कर पूर्व विधायक हरेकृष्णा सिंह को हराने के बाद अभी तक आदिवासी इलाकों में एक भी ऐसा कार्य नही हुआ है जिससे आदिवासियों का भला हो सके। इन गांवों की हालिया स्थिति ये बताती है कि अभी भी ग्रामीण इलाकों में सरकार और सिस्टम का विकास कार्य कितना पीछे है।