प्रोफ़ेसर बनाये गए और फिर राज्यसभा सदस्य। लेकिन उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई। परिवार की पीड़ा से वह कभी मुक्त नहीं हुए।
पौरुष और पावक जवानी और रवानी, उर्जा और उमंग के प्रतीक का पर्याय हैं दिनकर
साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए उनकी चयनित पुस्तक थी ‘संस्कृति के चार अध्याय‘। यह याद करना भी रोचक है कि ‘राष्ट्रकवि‘ दिनकर को सन 1973 में जब ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला तो उसकी कसौटी ‘उर्वर्शी‘ बनी थी, नकि ‘हुंकार‘, ‘रेणुका‘, ‘रश्मिरथी या ‘कुरुक्षेत्र‘।
''हम लोग कभी चापाकल नहीं देखे हैं सर। गांव में कुआं भी नहीं है। कई बार आवेदन दिए लेकिन चापाकल भी नहीं लगा। क्या करें। डाढ़ी का पानी पीना पड़ता है। पानी गंदा है। इसके कपड़ा से छानते हैं लेकिन उससे क्या होगा। गर्म करके पीते हैं लेकिन हमेशा ऐसा करना संभव नही
चेखव का चित्र, उनके द्वारा उपयोग किये गए समान, बॉक्स, मेज जैसा मेज, आदि रखा गया है।
स्वामी विवेकानन्द की दुनिया - हिन्दुत्व, जातिवाद और मतछुओवाद
गांधी आश्रम मेमोरियल एंड प्रेसिंट डेवलॅपमेंट प्रोजेक्ट के विरोध में 130 गांधीवादियों ने सरकार को लिखा पत्र
'सुजदाल में एक चर्च का सम्पूर्ण कार्यभार औरतों के हाथ में है। वे हैं पादरी हैं और व्यस्थापक भी।
बंग्लादेश, सीमांत गांधी, जनरल शहनवाज़ और पटना से जुड़े महात्मा गांधी के प्रसंग
'पूर्वग्रहों और समूचे अज्ञान को लेकर दिमाग को आधुनिकता में रोशन करना मुश्किल
पूछिए साबूदाना कैसे बनता है या हींग कहाँ से निकलती है। अगर कोई बच्चा दिखे तो उससे पूछिए बेसन और आटा कहाँ से आता है या पॉपकॉर्न कहाँ उगता है।