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अबुआ राज की भावना के साथ PESA पूर्ण रूप से लागू हो, JPRA में संशोधन की भी मांग

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रांची
झारखंड जनाधिकार महासभा ने राज्य सरकार से मांग की है कि "अबुआ राज" की भावना के अनुरूप पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 (PESA) को पूर्ण रूप से लागू किया जाए। इसके लिए झारखंड पंचायत राज अधिनियम, 2001 (JPRA) में आवश्यक संशोधन कर PESA के सभी प्रावधानों को सम्मिलित करने की जरूरत है। साथ ही, महासभा ने PESA की राज्य नियमावली के मसौदे में सुधार की भी मांग की और इस संबंध में अपने संशोधित ड्राफ्ट को जारी किया।
आदिवासी अधिकारों पर लगातार हमले
महासभा ने कहा कि झारखंड में दशकों से आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक स्वायत्तता और संसाधनों पर हमले होते रहे हैं। इनमें निजी व सामुदायिक भूमि पर अतिक्रमण, बिना ग्राम सभा की सहमति के धार्मिक निर्माण, पुलिस कैंपों की स्थापना, वन विभाग द्वारा फर्जी मामले दर्ज करना, भाषा-संस्कृति और सामुदायिक प्रबंधन को उचित संरक्षण न मिलना जैसी समस्याएँ शामिल हैं। हालाँकि, इन समस्याओं से निपटने के लिए कई संवैधानिक और स्थानीय कानून मौजूद हैं, लेकिन उनका प्रभाव सीमित रहा है। ऐसी स्थिति में, सामूहिक संघर्ष के तहत PESA एक प्रभावी समाधान के रूप में कार्य कर सकता है।


PESA के क्रियान्वयन में बाधा 
PESA के तहत अनुसूचित क्षेत्रों में त्रि-स्तरीय पंचायत व्यवस्था लागू की जानी चाहिए, लेकिन आदिवासी सामुदायिकता, स्वायत्तता और पारंपरिक स्वशासन को इसका मूल आधार बनाया जाना आवश्यक है। वर्तमान में, झारखंड पंचायत राज अधिनियम (JPRA) में PESA के अधिकांश प्रावधान सम्मिलित नहीं हैं। PESA के अनुसार, राज्य के पंचायत अधिनियम को अनुसूचित क्षेत्रों की परंपराओं और सामुदायिक प्रबंधन व्यवस्था के अनुरूप होना चाहिए, लेकिन JPRA में यह प्रतिबिंबित नहीं होता। इसलिए, JPRA में संशोधन अत्यंत आवश्यक है।
ग्रामसभा के अधिकार और JPRA की कमियां
PESA के तहत ग्राम सभा को कई अधिकार प्राप्त हैं, लेकिन JPRA में वे शामिल नहीं किए गए हैं। इनमें प्रमुख अधिकार हैं:
1.    भूमि अर्जन और पुनर्वास से पहले ग्राम सभा की अनिवार्य सहमति।
2.    गौण खनिजों पर ग्राम सभा का नियंत्रण।
3.    गौण वन उपजों पर ग्राम सभा का मालिकाना हक।
4.    गैर-कानूनी तरीके से अधिग्रहित भूमि की वापसी का अधिकार।
5.    सामुदायिक संसाधनों के पारंपरिक प्रबंधन का अधिकार।
इसके अतिरिक्त, JPRA में अनुसूचित क्षेत्रों के लिए कई ऐसे प्रावधान हैं जो PESA की मूल भावना के विपरीत हैं। उदाहरण के लिए:
•    ग्राम सभा की बैठक के लिए सिर्फ 1/3 सदस्यों की उपस्थिति को पर्याप्त माना गया है, जिससे सामूहिकता कमजोर होती है।
•    पंचायत सचिव को ही ग्राम सभा का सचिव बनाया गया है, जिससे प्रशासन ग्राम सभाओं पर प्रभाव डाल सकता है।
•    JPRA में ग्राम पंचायतों, पंचायत समिति और जिला परिषद को ऐसे अधिकार दिए गए हैं जो PESA के तहत ग्राम सभा के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करते हैं।
महासभा द्वारा प्रस्तुत संशोधनों में इन सभी कमियों को दूर कर, PESA के प्रावधानों को पूरी तरह शामिल किया गया है और राज्य के सभी संबंधित कानूनों में आवश्यक संशोधन की अनुशंसा की गई है।
PESA नियमावली में कमियां
महासभा ने कहा कि बिना मूल कानून (JPRA) में संशोधन किए, केवल नियमावली बनाना व्यर्थ होगा क्योंकि इससे PESA को कानूनी बल नहीं मिलेगा। पंचायत राज विभाग द्वारा तैयार नियमावली में कई गंभीर खामियां हैं।
•    PESA के अनुसार, ग्राम का गठन समाज की परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार होना चाहिए, लेकिन वर्तमान नियमावली में केवल "ग्राम सभा गठन" का उल्लेख है।
•    PESA के अनुसार, ग्राम सभा को आदिवासी भूमि के गलत हस्तांतरण को रोकने और उसे वापस लेने का अधिकार है, लेकिन मौजूदा नियमावली में इस निर्णय का अधिकार उपायुक्त को दिया गया है।
•    नियमावली में आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान और सामुदायिक स्वायत्तता की रक्षा हेतु कोई प्रभावी प्रक्रिया शामिल नहीं की गई है।
महासभा ने इन खामियों को दूर करने के लिए आवश्यक सुधार प्रस्तावित किए हैं।
PESA लागू करने की प्रक्रिया पर भ्रामक धारणाएं 
महासभा ने यह भी स्पष्ट किया कि PESA के कार्यान्वयन को लेकर कई भ्रामक धारणाएँ फैलाई जा रही हैं। जैसे कि, PESA लागू होने से पंचायत प्रणाली समाप्त हो जाएगी या इसे राज्य के पंचायत कानून के बिना सीधे लागू किया जा सकता है। महासभा ने इस विषय में कई जानकारीपूर्ण पर्चे जारी किए हैं ताकि PESA अधिकारों और उनकी क्रियान्वयन प्रक्रिया को स्पष्ट किया जा सके।
राजनीतिक समर्थन और सरकार की उदासीनता
गठबंधन सरकार ने अपने चुनावी वादे में PESA को पूर्ण रूप से लागू करने का आश्वासन दिया था। विधानसभा सत्र में झामुमो विधायक हेमलाल मुर्मू सहित कई विधायकों ने भी इस मुद्दे को उठाया है। बावजूद इसके, राज्य सरकार ने अब तक कोई स्पष्ट प्रतिबद्धता नहीं दिखाई है।
महासभा ने राज्य सरकार से मांग की है कि:
1.    JPRA में संशोधन कर PESA के सभी प्रावधान जोड़े जाएँ।
2.    उसके अनुरूप नियमावली बनाई जाए।
3.    प्रशासन और पुलिस को ग्राम सभा के अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाए।
4.    यह सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी सरकारी तंत्र ग्राम सभा के अधिकारों का उल्लंघन न करे।
महासभा ने जोर देकर कहा कि जब तक JPRA में आवश्यक संशोधन नहीं होते, तब तक PESA का प्रभावी क्रियान्वयन संभव नहीं होगा।

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