शिक्षा एक ऐसा साधन है जो, राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में जीवंत भूमिका निभा सकता है। इसके लिए अगर जरूरत पड़े तो पाठ्यपुस्तकों में बदलाव भी किया जाना चाहिए। लेकिन उसकी मूल भावना से छेड़छाड़ करना कतई उचित नहीं है। सीबीएसई के सिलेबस में नये पाठ्यक्रम में एक साल के लिए 30 प्रतिशत घटाया गया है। इस नये पाठ्यक्रमों पर शिक्षाविदों और राजनीतिज्ञों की क्या राय है, इसे 'द फॉलोअप' ने जानने की कोशिश की है।
नारायण विश्वकर्मा
कोरोना काल में पिछले 5 माह से देश के सभी स्कूलों में ताले लटके हैं। इसके लिए स्कूली बच्चों को ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा देने का काम चल रहा है। बदले हुए माहौल को देखते हुए सरकार ने सीबीएसई के सिलेबस को 30 प्रतिशत तक घटाने का निर्णय ले लिया है। सीबीएसई ने नये सत्र 2020-21 का नया कैरीकुलम छात्रों के लिए जारी कर दिया है। सिलेबस में ये बदलाव सिर्फ नौवीं से 12वीं तक की कक्षाओं के लिए किया गया है। हम आपको यहां बता दें कि मानव संसाधन मंत्रालय अप्रैल माह में ही सीबीएसई की कक्षा 9वीं से लेकर 12वीं तक के सिलेबस में बदलाव की रणनीति पर काम चल रहा था। अब यह आकार लेकर चुका है।
भाजपा पर शिक्षा के भगवाकरण का आरोप
विपक्ष यह आरोप लगाता रहा है कि भाजपा शिक्षा का भगवाकरण करने पर आमादा है। ऐसा लगता है कि सरकार को शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण बदलाव से कोई लेना-देना नहीं है। शायद इसीलिए सीबीएसई की बोर्ड परीक्षा में अगले साल शामिल होनेवाले विद्यार्थियों को धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद, नागरिकता, नोटबंदी और लोकतांत्रिक अधिकारों के बारे में पढ़ने की जरूरत नहीं होगी। विद्यार्थी अब राष्ट्रवाद को दीनदयाल उपाध्याय के नजरिये से धर्मनिरपेक्षता को जानेंगे। जरा सोचिये यह अपने आप में कितना विरोधाभासी है।
शिक्षा में सर्वव्यापकता जरूरी : डॉ. रमेश शरण
ऑनलाइन क्लासेज के नाम पर शिक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। विघटनकारी तत्वों को बढ़ावा देने के बदले हमें राष्ट्रप्रेम की शिक्षा से विद्यार्थियों को उत्प्रेरित करना चाहिए, क्योंकि शिक्षा में सर्वव्यापकता जरूरी है। यह कहना है विनोबा भावे विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और अर्थशास्त्री डॉ. रमेश शरण का। डॉ. शरण राष्ट्रवाद को धर्म-जाति से ऊपर मानते हैं। वे कहते हैं कि शिक्षा में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि वह मानव से मानव को जोड़ सके। फिर स्कूलों के बच्चे तो अधिक अपरिपक्व होते हैं। देशप्रेम की शिक्षा से ही उनमें राष्ट्रीय भावना जागृत होगी। इसके अलावा संविधान में वर्णित धर्मनिरपेक्षता, नागरिक के अधिकार और कर्तव्य के बारे में स्कूली जीवन से ही इसकी शिक्षा मिलनी चाहिए। फिर ये जानने का उन्हें मौलिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक पद्धति में हर तरह की विचारधारा का समावेश होना चाहिए, उन्हें विकल्प चुनने की आजादी होनी चाहिए। तभी सही ढंग से उसका मूल्यांकन संभव है, तभी बच्चों को एक्सपोजर मिलेगा।
संघ का शिक्षा के भगवाकरण पर जोर : सुप्रियो भट्टाचार्य
सिलेबस को छोटा करने और इसमें आमूलचूल परिवर्तन करने पर जेएमएम के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने संघ पर निशाना साधा है। उन्होंने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि शिक्षा में संघ का दखल बढ़ता जा रहा है। संघ अक्सर शिक्षा को ही टारगेट करता है। जेएमएम किसी कीमत पर शिक्षा का भगवाकरण नहीं होने देगा, और पार्टी केंद्र सरकार की मंशा को कभी सफल नहीं होने देगी। उन्होंने कहा कि सिलेबस को छोटा करने के बहाने शिक्षा की मूल भावना पर ही प्रहार किया गया है। अगर अभी इसका विरोध नहीं किया गया तो संघवाद की प्रेतछाया भारतीय इतिहास को भी तहस-नहस कर देगी।
पीएम को छात्रों के नहीं, अपने मन की बात से मतलब : राजेश ठाकुर
झारखंड प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कहा कि प्रधानमंत्री जिस तरह से एक-एक कर संवैधानिक संस्थाओं के अधिकारों का हनन कर रहे हैं, उसी तरह से अब शैक्षणिक संस्थाओं के साथ भी यही किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल के 6 माह बीत गये, लेकिन स्कूल नहीं खुले। सीबीएसई में शिक्षाविदों से रायशुमारी होती, इसके बाद कोई निर्णय लिया जाना था। लेकिन पीएम को हर काम की जल्दी है और जल्दीबाजी का काम शैतान का होता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री सिर्फ अपने मन की बात करते हैं, उन्हें छात्रों के मन की बातों से कोई लेना-देना नहीं है।
टॉपिक का समराइज हो, छेड़छाड़ नहीं : याज्ञवल्क्य शुक्ल
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदेश संगठन मंत्री याज्ञवलक्य शुक्ल मानते हैं कि सिलेबस में कंटेन्ट के शब्दों में कमी कर दी जाये, लेकिन टॉपिक के साथ छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। श्री शुक्ल का कहना है कि टॉपिक की व्याख्या को थोड़े शब्दों में किया जा सकता है, लेकिन विषयवस्तु की सार्थकता का मूल स्वरूप नहीं बदलना चाहिए। हमें यथास्थिति कायम रखनी चाहिए, इससे स्कूली बच्चों को आलोचनात्मक समीक्षा करने में सुविधा होगी। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन पढ़ाई बोझिल नहीं होना चाहिए, इसलिए सिलेबस को घटाना समय की मांग है। क्योंकि कोरोना काल में विषयों को बदलने से उसकी मौलिकता को नष्ट करना उचित नहीं होगा। उन्होंने कहा कि हालांकि एक साल में 30 प्रतिशत सिलेबस छोटा होने से विशेष अंतर नहीं पड़ेगा, इसलिए इसपर राजनीति नहीं होनी चाहिए।