दिक्कत धर्म में नहीं, धर्मों में बढ़ते कट्टरपंथ की वजह से है। उसके राजनीतिक इस्तेमाल की वजह से है।
भाषाएँ धर्म की पहचान नहीं करातीं। भाषाओं का संबंध संस्कृति से होता है।
''सावरकर के आधुनिक पाठ में उन्हें वैज्ञानिक, आधुनिक और तार्किक हिंदुत्व के प्रणेता तथा हिन्दू राष्ट्रवाद के जनक के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
'गांधी पाठशाला में गांधी से मुठभेड़-किसान आन्दोलन और गांधी
जी हाँ वध स्थल था पहले, जहाँ संयुक्त राष्ट्र सचिवालय बनाया गया। अब यहाँ मानवता, समानता, विश्व कल्याण की बातें होती हैं।
इलाहाबाद शहर के वास्तविक संस्थापक थे सम्राट अकबर!
'‘आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था’ - आइंस्टीन
भारत में जिस तरह बहुसंख्यक हिन्दुओं का वर्चस्वप्राप्त तबका धार्मिक उन्माद खड़ा कर अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है ,वैसा ही बांग्लादेश का मुस्लिम वर्चस्वप्राप्त तबका भी करता है।
धर्मयुग पत्रिका का जुलाई 1964 ई. का अंक -नेहरू की मौत पर आवरण कथा लेकिन..
भारत का यह किसान आंदोलन राष्ट्रीय पर्व की तरह याद रखा जाएगा। वह अवाम के एक प्रतिनिधि अंश का आजादी के बाद सबसे बड़ा जनघोष हुआ है।
अनेक बुद्धिजीवी और वामपंथी मानवाधिकार का सवाल आते ही भड़कते हैं।