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दिन रेख़्ता-़3: वह इत्रदान-सी एक ज़बान- दिलों में नाज़ुकी और हवा में ख़ुशबू

विडंबना है कि आज हिंदी को हिंदुओं की और उर्दू को मुसलमानों की भाषा बताया जाने लगा है।

दिन रेख़्ता-़2: आख़िर हम भी उर्दू में पास कर गए ग़ालिब-विनीत कुमार

उर्दू की परीक्षा में पास( 62%) कर गया। ज़िंदगी में एक और ख़ूबसूरत चीज़ जुड़ गयी। एक हसरत रही जो पूरी हो गयी।

दिन रेख़्ता-़1: जब इश्क़ हुआ उर्दू  से और पहचान की गठरी उतारकर ज़बान की कक्षा में हो गए दाख़िल 

नहीं खेल ऐ 'दाग़' यारों से कह दो कि आती है उर्दू ज़बाँ आते आते। 

एड के बहाने 21वीं सदी का सबसे बड़ा सबक़ - बदलावों के लिए हमेशा तैयार रहें

'वर्ल्ड कप पर आने वाले एड में छुपी है दुनिया में बदलाव की आहट

कितना है बदनसीब 'ज़फ़र' दफ्न के लिए, दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में...

1857 में क्रांति की चिंगारी भड़की तो सभी विद्रोही सैनिकों और राजा-महाराजाओं ने उन्हें हिंदुस्तान का सम्राट माना और उन्होंने भी अंग्रेजों को खदेड़ने का आह्वान किया।

सामयिक : छठ के बहाने पारंपरिक लोकगीतों में लड़कियों के स्वर कितने मुखर

छठ के गीतों में बेटी की कामना के स्वर परांपरागत तौर पर मिलते हैं। बिंष्यवासिनी देवी का तो लोकप्रिय छठ गीत ही था-रुनुकी झुनुकी के बेटी मांगीला।

जब तक चाहें युवा बने रह सकते हैं आप, 2045 के बाद मौत महज़ हादसों से होगी ना कि किसी बीमारी से!

अगर रिसर्च के बाद सामने आई एक पुस्तक की मानें तो ऐसा निकट भविष्य में सच होने जा रहा है।

सोचो ज़रा: कहीं आप भी बनाई जा रही धारणाओं के शिकार तो नहीं, जानिये नुक़सान

धारणाओं के ज़रिए लोगों में फुट डाली जाती है, उन्हें आपस में लड़वाया जाता है।

बचपन में जिसे ज़हर देकर मारना चाहा, उसी लड़की ने रुकवाए 1400 से अधिक बाल विवाह

''हौसले और हिम्मत से जयपुर की डॉ कीर्ति भारती बदल रही समाज

ज्योति पर्व-दीपावली: खिल उठा खुशियों का सहस्त्रदल कमल, बजे उठे आनंद के अनगिनत सितार

तमसो मा ज्योतिर्गमय-दीपावली की शुभकामनाएं हार्दिक

अगर आप सोशल मीडिया के चंगुल में हैं तो बचाएं मन-मस्तिष्क अपना

प्रभावशाली मीडिया, नेता, पार्टियां पत्थर फेंकने का काम कर रही हैं।

गोविंद निहलानी की 'आक्रोश' से कितनी अलग है नई फिल्म 'जय भीम'

'जय भीम' की तरह 'आक्रोश' के केंद्र में भी आदिवासी थे। वहाँ भी एक समाजकर्मी था। एक वकील था। एक पब्लिक प्रासिक्यूटर था। पुलिस थी। नेता थे। अन्याय था। अन्याय के खिलाफ कानूनी संघर्ष था। दोनों फिल्में सच्ची घटना पर आधारित हैं। अंतर क्या है?

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