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साबरमती का संत-42: सभी धर्मों और जातियों की एकाग्रता के प्रतीक थे गांधी, मिलावट के नहीं

बस यही वह बिंदु था जो कुछ संकीर्ण विचारकों को पसंद नहीं आया।

वीर! -3 : सावरकर के माफीनामा की भाषा दीनता की चरम सीमा का स्पर्श

क्या स्वाधीनता संग्राम को गति देने के लिए सावरकर जेल से बाहर आना चाहते थे?

दस्‍तावेज़-2: अल्बर्ट आइंस्टीन के चर्चित लेख -समाजवाद क्‍यों- की अंतिम किस्‍त

यदि हम स्वयं से पूछें कि मानव जीवन को संभव रूप से ज्यादा से ज्यादा संतोषजनक बनाने के लिए समाज और आदमी की सांस्कृतिक दृष्टिकोण की संरचना को कैसे परिवर्तित किया जाना चाहिए

दस्‍तावेज़-1: अल्बर्ट आइंस्टाइन ने 72 साल पहले क्‍यों उठाया था समाजवाद का सवाल

'विश्व प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन का लेख समाजवाद क्यों? (Why Socialism?) मूल रूप से Monthly Review (मई 1949) के प्रथम अंक में प्रकाशित हुआ था। यह बाद में MR के पचासवें वर्ष को मनाने के लिए मई 1998 में भी प्रकाशित किया गया था।

साबरमती का संत-41: गांधी ने कहा था, मरीज की लाश को वेंटिलेटर पर डालकर गरीब परिवार का आर्थिक बलात्कार

संसार में केवल गांधी बोले थे कि वे रोज़ अपने को सुधारते हैं। पीढ़ियां और इतिहासकार उनकी आखिरी बात को सच मानें।

वीर! -2: क्या सावरकर की जीवन यात्रा को दो भागों में मूल्यांकित करना चाहिए

क्रांतिकारी गतिविधियों में संलिप्तता के कारण सावरकर को अंडमान की सेल्युलर जेल भेजा गया था

दख़ल: कांग्रेस की विचारधारा की रीढ़ है राष्ट्रवाद, एकजुट रहकर सामजिक बुराइयों से जूझना

विचारधारा किसी राजनीतिक पार्टी का ह्रदय स्थल है, उसमें मिलावट या हीला-हवाली की गुंजाइश नहीं होती।

SIR SYED DAY: जिन्‍होंने कहा था, हिन्दू और मुसलमान भारत की दो आँखें

ऐसे महान समाज सुधारक और भविष्यदृष्टा थे, जिन्होंने शिक्षा के लिए जीवन भर प्रयास किया।

साबरमती का संत-40: क्‍या महात्‍मा गांधी ने ऐसे ही स्वराज्य की कल्‍पना की थी, जहां है सिर्फ अफ़रातफ़री 

रवीन्द्रनाथ टैगोर, विवेकानंद, गांधी और भगतसिंह वगैरह आपस में बौद्धिक जिरह नहीं कर पाए।

पाकिस्तान और बांग्लादेश: अल्‍पसंख्‍यकों के साथ हिंसा के मामले फिर

‘जमाते-इस्लामी' को यह बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं है कि दुर्गा-पूजा के नाम पर बांग्लादेश में हजारों पंडाल सजाए जाएं।

साबरमती का संत-39: गांधी में आत्मस्वीकार और आत्मविश्वास है ही नैतिक अहम्मन्यता भी

हताशा की हालत में भी गांधी घटनाओं से निरपेक्ष लेकिन जीवनमूल्यों की अपनी प्रतिबद्धता से सापेक्ष रहकर कालजयी नायकों जैसा बर्ताव करते हैं।

वीर !: जिन्ना को तो जानते ही हैं, पाकिस्‍तान के लिए सावरकर कितना दोषी

1937 में सावरकर ने द्विराष्ट्र सिद्धांत की स्पष्ट सार्वजनिक अभिव्यक्ति की

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