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दख़ल: कांग्रेस की विचारधारा की रीढ़ है राष्ट्रवाद, एकजुट रहकर सामजिक बुराइयों से जूझना

विचारधारा किसी राजनीतिक पार्टी का ह्रदय स्थल है, उसमें मिलावट या हीला-हवाली की गुंजाइश नहीं होती।

SIR SYED DAY: जिन्‍होंने कहा था, हिन्दू और मुसलमान भारत की दो आँखें

ऐसे महान समाज सुधारक और भविष्यदृष्टा थे, जिन्होंने शिक्षा के लिए जीवन भर प्रयास किया।

साबरमती का संत-40: क्‍या महात्‍मा गांधी ने ऐसे ही स्वराज्य की कल्‍पना की थी, जहां है सिर्फ अफ़रातफ़री 

रवीन्द्रनाथ टैगोर, विवेकानंद, गांधी और भगतसिंह वगैरह आपस में बौद्धिक जिरह नहीं कर पाए।

पाकिस्तान और बांग्लादेश: अल्‍पसंख्‍यकों के साथ हिंसा के मामले फिर

‘जमाते-इस्लामी' को यह बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं है कि दुर्गा-पूजा के नाम पर बांग्लादेश में हजारों पंडाल सजाए जाएं।

साबरमती का संत-39: गांधी में आत्मस्वीकार और आत्मविश्वास है ही नैतिक अहम्मन्यता भी

हताशा की हालत में भी गांधी घटनाओं से निरपेक्ष लेकिन जीवनमूल्यों की अपनी प्रतिबद्धता से सापेक्ष रहकर कालजयी नायकों जैसा बर्ताव करते हैं।

वीर !: जिन्ना को तो जानते ही हैं, पाकिस्‍तान के लिए सावरकर कितना दोषी

1937 में सावरकर ने द्विराष्ट्र सिद्धांत की स्पष्ट सार्वजनिक अभिव्यक्ति की

साबरमती का संत-38: गांधी के वक्त इंटरनेट, कम्प्यूटर, दूरसंचार वगैरह की दुनिया इतनी समुन्नत नहीं थी

गांधी क्लास को थर्ड क्लास का समानार्थी कहता हिकरत भरा एक अज्ञानी जुमला गांधी पर चस्पा कर दिया जाता है।

शक्ति वामा-9: शत्रुपक्ष की स्त्री का अपमान करके प्रतिशोध लेना कितना नैतिक !

'यह स्त्री को पुरुष की वस्तु या संपति समझने की घृणित मानसिकता है।

साबरमती का संत-37: गांधी को समाजवाद से नफरत नहीं थी, मार्क्सवादी होने का बस दावा नहीं करते थे

गांधी का रचनात्मक कार्यक्रम देश के कोई काम नहीं आया। उनका ब्रह्मचर्य देश में बलात्कार से हार रहा है। उनकी अहिंसा नक्सलवाद और पुलिसिया बर्बरता से पिटकर भी जीवित रहना चाहती है।

इस बाइस्कोप से जानिये डेढ़ सौ साल पहले का समय और पत्रकारिता

उन्नीसवीं सदी में पत्रकार विज़िटिंग कार्ड का इस्तमाल करने लगे थे। पत्रकारों को ब्रिटिश हुकूमत के कार्यक्रमों और निजी पार्टियों में बुलाया जाने लगा था।

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