उनके उम्दा कामों की लंबी फेहरिस्त है, प्रिविपर्स की समाप्ति, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, सोवियत रूस से मैत्री, सफल विदेश नीति, अंतरिक्ष में राकेश शर्मा से बात, बांग्लादेश का उदय, सिक्किम को भारत में विलय, कश्मीर में प्रधानमंत्री पद ख़त्म करना प्रमुख हैं।
ऐसे समय में जब हमारी राजनीति उग्र राष्ट्रवाद की गिरफ्त में है और मुल्क की पूरी अर्थसत्ता पूंजीपतियों के कब्जे में, हमें उनकी बातें, उनके विचार और उनकी चेतावनी अपनी ओर खींच रहे हैं।
भारत की अखंडता और धर्मनिरपेक्षता के विरोधी उग्र वादियों के समक्ष घुटने नहीं टेके।
'भारत की एकता के सूत्रधार सरदार पटेल की जयंती पर विशेष
आज का दिन केवल भाभा को याद करने का दिन नहीं होना चाहिए ; इस दिन हम सब को भारतीय समाज को वैज्ञानिक चेतना संपन्न बनाने का संकल्प भी लेना चाहिए ।
'सावरकर 1857 के स्वाधीनता संग्राम के अपने विश्लेषण में परंपरावादी और कट्टर धार्मिक शक्तियों के साथ खड़े नजर आते हैं।
सावरकर दर्शन- गांधीवाद का विलोम
बिहार उपचुनाव में एक सीट पर कांग्रेस का खड़ा होना भाजपा का परोक्ष समर्थन
'आज अंतिम किस्त: ‘आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था’ - आइंस्टीन
'पत्र में शिवाजी के माध्यम से अकबर के प्रति उनकी प्रजा की भावनाएं भी उजागर होती है।
क्योंकि अप्रासंगिक हो जाने' से बढ़कर कोई दुःख नहीं-बता रहे हैं मनोवैैैैैैज्ञानिक डॉ. अबरार मुल्तानी
'सावरकर की हिंसा और प्रतिशोध की विचारधारा को समझने के लिए उनकी पुस्तक भारतीय इतिहास के छह स्वर्णिम पृष्ठ का अध्ययन आवश्यक